देहरादून स्थित दून विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर सुनीत नैथानी द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने के खिलाफ यूनिवर्सिटी के अंदर आक्रोश का ज्वालामुखी दहक रहा है किंतु विश्वविद्यालय प्रबंधन ऊपर से प्रसुप्त अवस्था दिखावा कर रहा है।
हकीकत यह है कि विश्वविद्यालय में एसईएनआर विभाग में कार्यरत सहायक प्रोफेसर सुनीत नैथानी को यौन उत्पीड़न के कुछ मामलों में दोषी पाया गया है, किंतु उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही न करके विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें इसके उलट उच्च पदों की जिम्मेदारी भी दे दी है। इससे विश्वविद्यालय की छात्राओं में भी भय का माहौल है।
दून विश्वविद्यालय में नियुक्ति के आरंभिक वर्ष में ही इनके द्वारा विश्वविद्यालय की एक छात्रा का यौन उत्पीड़न किया गया, जिसके फलस्वरूप इनके ऊपर जेंडर कमेटी में यौन उत्पीड़न का मामला चला और इन को दोषी पाते हुए इनके खिलाफ कार्यवाही की संस्कृति की गई परंतु दून विश्वविद्यालय के प्रशासन ने इनको बचा लिया।
छात्राओं ने की थी उत्पीड़न की शिकायत
जेंडर कमेटी द्वारा स्पष्ट तौर पर निर्णय लिया गया था कि इनको भविष्य में किसी भी प्रकार से जिम्मेदारी वाले पदों पर कार्य करने नहीं दिया जाए, परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन ने सभी निर्णयों की जानकारी होते हुए भी सभी जेंडर कमिटी की रिपोर्टों को धता बताकर इन्हें स्पोर्ट्स कमेटी चेयरमैन और हॉस्टल वार्डन जैसे संवेदनशील पदों की जिम्मेदारी दे दी है। इससे छात्रों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई है।
जेंडर कमेटी की संस्तुति
बार-बार विश्वविद्यालय प्रशासन के संज्ञान में मामला लाया गया, परंतु उनके कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। यही नहीं कुछ समय पूर्व सुनीत नैथानी ने अपनी सहयोगी महिला प्राध्यापकों के साथ भी दुर्व्यवहार और गाली गलौज किया, जिसकी शिकायत फिर से जेंडर कमेटी में की गई।
यद्यपि यूजीसी तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में स्पष्ट किया गया है कि “यौन उत्पीड़न/ महिलाओं से कार्यालय में किए गए दुर्व्यवहार की जांच 3 महीने में पूर्ण कर कार्यवाही की जाए,” परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा पूरे एक साल तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार एमएस मंद्रवाल का कहना है कि यह मामला कोर्ट में भी विचाराधीन है अतः कोर्ट का डिसीजन आने के बाद ही विश्वविद्यालय प्रशासन कोई कार्यवाही करेगा।
संवेदनहीनता की हद है कि विश्वविद्यालय द्वारा सूचना के अधिकार में इस बाबत जानकारी मांगी गई तो पता चला कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कमेटी की उसी रिपोर्ट को खोया हुआ बता दिया गया, जिसमें कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए थे।
इस कमेटी द्वारा नैथानी को दुर्व्यवहार करने का दोषी पाते हुए इनके खिलाफ कार्यवाही करने हेतु कुलपति को संस्तुति की गई थी, परंतु आज तक विश्वविद्यालय द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
अपने ऊपर लगे आरोपों के विषय में डॉ सुनीत नैथानी का कहना है कि यह मामला बहुत पुराना है और पहले तो कमेटी का गठन विधिक रूप से नहीं किया गया था साथ ही आरोपों की सुनवाई भी विधिवत नहीं की गई थी, इसके अलावा जेंडर कमिटी की रिपोर्ट की संस्तुति हूबहू मानने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन बाध्य नहीं है। उन्हें जो भी सजा मिली थी वह मिल चुकी है और अब दोबारा से इस मामले को उठाने वाले लोग खुद ही गलत तरीके से प्रमोशन और वेतन वृद्धि हासिल कर चुके थे जो कि शासन द्वारा वापस ले ली गई है और इस पर जांच बैठी हुई है।” इसी से बौखला कर विश्वविद्यालय की कुछ महिला प्रोफेसर उनके खिलाफ दुर्व्यवहार और गाली गलौज करने का आरोप लगाया है और इस मामले में वे अपने बचाव के लिए कोर्ट गए हैं जहां मामला विचाराधीन है।”
वर्तमान में मी टू जैसे अभियानों से सालों पुराने यौन उत्पीड़न के मामले में कार्यवाही हो रही है, यहां तक कि केंद्र सरकार में स्थापित एक मंत्री तक को अपना इस्तीफा देना पड़ा, वहीं दूसरी ओर दून विश्वविद्यालय में यौन उत्पीड़न को लेकर शुरू हुए इस बवाल के पीछे कितनी हकीकत और कितना फसाना है! यह अपने आप में एक जांच का विषय है। किंतु इतना जरूर है कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी ने जिन सपनों को लेकर दून यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी यह बवाल उसकी छवि के लिए कतई भी शुभ संकेत नहीं है।