भूपेंद्र कुमार
मुख्यमंत्री के ओएसडी जेसी खुल्बे के खिलाफ भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में देहरादून के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मनिंद्र मोहन पांडे ने मुकदमा दर्ज कर दिया है।
यह मुकदमा उनके खिलाफ कृषि विभाग में हुए बहुत बड़े घोटाले और भ्रष्टाचार के मामले में हैं। यह मुकदमा मुख्यमंत्री के ओएसडी जेसी खुल्बे सहित तत्कालीन कृषि अधिकारी ओमवीर सिंह आदि पर है।
भ्रष्टाचार, कूट रचना और गबन के मामले
इन्होंने अनेक सरकारी दस्तावेजों में कूट रचना करके फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे और सरकारी मद से लगभग ₹70,00000 से अधिक का गबन करके जनता के पैसों का दुरुपयोग कर स्वयं अनुचित लाभ कमाया और जनता तथा सरकार को अनुचित हानि पहुंचाई थी।
वर्ष 2015 में मुख्यमंत्री के ओएसडी भूमि संरक्षण अधिकारी के रूप में तैनात थे और उन्होंने वर्ष 2015 में आई डब्ल्यू एमपी योजना के अंतर्गत नियम विरुद्ध कार्य किया तथा फर्जी अनुमति पत्र तैयार किया गया। श्रमिकों की फर्जी सूची तैयार की गई और ₹70,00000 से अधिक की धनराशि का गबन किया गया।
मजिस्ट्रेट ने इसे काफी गंभीर माना है। वर्ष 2015 में विकासखंड चकराता कालसी में कार्यरत रहने के दौरान उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित आई डब्ल्यू एमपी योजना के लाखों रुपए ठिकाने लगा दिए और नियम विरुद्ध तरीके से अग्रिम धनराशि खातों से निकाल कर गबन कर दी।
यह धनराशि इन्होंने प्रधानों, ग्राम समितियों के अध्यक्षों और सचिवों के माध्यम से बंदरबांट की थी।
इसकी एक शिकायत कृषि विभाग के ही एक पूर्व अधिकारी रमेश चंद्र चौहान ने थाना पटेलनगर को 30 अगस्त 2018 को की थी और 13 सितंबर 2018 को एसएसपी देहरादून को की थी लेकिन उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की।
फिर श्री चौहान ने इसकी शिकायत देहरादून न्यायालय में की थी। श्री चौहान की ओर से अधिवक्ता संजय कुकरेती ने इस केस की पैरवी की।यह एक कंप्लेन केस था।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट देहरादून मनिंदर मोहन पांडे ने खुद ही इस मामले में मुकदमा दर्ज कर जिलाधिकारी को भी आवश्यक निर्देश जारी दिया है।
अधिवक्ता संजय कुकरेती ने पर्वतजन को बताया कि उन्होंने तो यह मामला 156/ 3 में न्यायालय में दिया था, ताकि इस मामले में पुलिस को सुसंगत धाराओं में मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया जा सके। लेकिन कोर्ट ने इस मामले को काफी गंभीर मामला माना और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मनिंदर मोहन ने संलग्न दस्तावेजों का अवलोकन करके पाया कि इसकी जांच पुलिस से कराए जाने के स्थान पर धारा 202 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत किसी सक्षम अधिकारी अथवा संस्था से कराया जाए। यह भी हो सकता है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट इसकी जांच अपने ही देखरेख में करें।
क्योंकि वर्तमान में जेसी खुल्बे सरकारी कर्मचारी हैं और मुख्यमंत्री के ओएसडी है, इसलिए मजिस्ट्रेट ने जिला अधिकारी को आदेश दिया है कि पुलिस को अन्वेषण का आदेश दिए जाने के स्थान पर राज्य सरकार द्वारा अनुमति प्राप्त करके मामले में संज्ञान लेकर मामले को मुकदमे के रूप में दर्ज कर दिया जाए।
मजिस्ट्रेट ने राज्य सरकार की अनुमति धारा 197 दंड प्रक्रिया संहिता के बाबत आदेश की प्रति संलग्नकों के साथ जिलाधिकारी देहरादून को भी प्रेषित करने के आदेश दे दिए हैं।
अपने ही ओएसडी के खिलाफ भ्रष्टाचार तथा गबन के मामलों में न्यायालय से मुकदमा दर्ज होने के बाद मुख्यमंत्री की जीरो टोलरेंस की नीति को बड़ा धक्का लग सकता है।
शासन में दबी कृषि निदेशालय की जांच रिपोर्ट
जेसी खुल्बे के खिलाफ कृषि निदेशालय द्वारा भी भ्रष्टाचार के मामले में जांच और कार्यवाही प्रचलित है लेकिन जेसी खुल्बे ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके यह जांच सितंबर 2016 से दबा कर रखी है।
देहरादून डीएम की रिपोर्ट भी दबाई
देहरादून के जिलाधिकारी ने भी जेसी खुल्बे सहित अन्य अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार और गबन में जांच करके इन्हें दोषी ठहराते हुए कार्यवाही की संस्तुति करते हुए शासन को अपनी जांच रिपोर्ट दे दी थी लेकिन यह जांच रिपोर्ट भी शासन में दबी पड़ी है।
अब लोकायुक्त के गठन की मांग भी तेजी पकड़ सकती है। यह माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री अपने खिलाफ तथा अपने लोगों के खिलाफ कार्यवाही होने के डर से लोकायुक्त का गठन नहीं होने देना चाहते।
यह बात इसलिए भी साफ हो जाती है कि तमाम कार्यवाही पूरी होने के बावजूद और सभी जगह से ओके होने के बावजूद लोकायुक्त का गठन अब सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री की हां और ना पर ही टिका है।
और यह बिल्कुल शीशे की तरह साफ हो चुका है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ही लोकायुक्त का गठन नहीं होने देना चाहते।
इस खुलासे के बाद सबकी नजरें इस बात पर टिकी रहेंगी कि जीरो टोलरेंस और भ्रष्टाचार पर प्रहार के विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च करने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने ओएसडी के भ्रष्टाचार के खिलाफ कब तक और क्या कार्यवाही करते हैं !!