उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने नई खनन नीति लागू करते ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर दिया है। त्रिवेंद्र सरकार ने किसानों की जमीन पर खनन का अधिकार अपने पास रख लिया है। जबकि ऐसे ही केरल सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट पलट चुका है।
उत्तराखंड में खनन के जरिये अपनी आमदनी बढ़ाने के मकसद से राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी नही मान रही है। राज्य सरकार ने खनन के पट्टों की e टेंडर के जरिये नीलामी की नई योजना बनाई।
राज्य के इस फैसले पर अभी नीति बन ही रही थी कि सरकार ने एक और फरमान जारी कर दिया। सरकारी खनन के पट्टों के साथ साथ किसानों की ऐसी भूमि पर भी सरकार ने नजरें गड़ा दी हैं जहां खनन की संभावना है।
अभी तक निजी नाप भूमि पर किसान खेत की सफाई के नाम पर सरकार से इजाजत लेकर खनन करता था। मगर सरकार के ताजे फैसले से अब कोई भी किसान अपने खेत से रेत बजरी का चुगान नही कर सकेगा। बल्कि इसके लिए भी e टेंडर के जरिये नीलामी होनी है। कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश में जुटी है
हैरत की बात तो ये है कि अभी तक सरकार ने निजी भूमि पर खनन की संभावना पर कोई सर्वे पूरा नही किया है। लेकिन जानकारों का मानना है कि सरकार निजी नाप भूमि पर ऐसा फैसला नही कर सकती। केरल सरकार के ऐसे ही एक फैसले को सुप्रीम कोर्ट खारिज कर कर चुका है।
अभी तक राज्य सरकार खनन के जरिये ढाई सौ करोड़ रुपये का राजस्व जुटा पाती है। सरकार की कोशिश इसे 5 से 600 करोड़ रुपये करने की है। लेकिन जल्दी बाजी में लिए गए फैसले में वो सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का उल्लंघन कर बैठी।