केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा आज देहरादून पहुंचे और कांग्रेस काल के आपातकाल पर जमकर बरसे। पाठकों को याद होगा की वर्ष 1975 में कांग्रेस ने आपातकाल लागू किया था। आज भारतीय जनता पार्टी उसकी 43वीं वर्षगांठ मना रही है।
जे पी नड्डा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भाजपा आपातकाल को काले दिवस के रूप में मना रही है। नड्डा का कहना था कि जनता ने इस आपातकाल के दौरान दूसरी आजादी की लड़ाई लड़ी। यह बात हर कोई जानता है कि वह दौर लोकतंत्र के लिए सबसे घातक दौर था। इस दौर में हजारों पत्रकारों को तंग किया गया। 110806 लोगों को गिरफ्तार किया गया और राजनीतिक बंदियों से देश की अधिकांश जेलें भर दी गई थी।
श्री नड्डा के आपातकाल से जुड़े कुछ सवाल
किंतु नड्डा की प्रेस कॉन्फ्रेंस कुछ अहम सवाल जरूर खड़े कर गई।
सबसे पहला सवाल तो यह है कि आपातकाल की 43 वीं वर्षगांठ मनाने की अचानक क्या जरूरत पड़ गई! यदि यह कोई सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली टाइप की कोई वर्षगांठ होती तो इसका एक औचित्य भी था। यदि 43 वीं वर्षगांठ मनाने ही थी तो 40 वीं, 41वीं और 42 वी क्यों नहीं मनाई गई ?
लोकसभा चुनाव के नजदीक आने पर आपातकाल को काला दिवस मनाए जाने के जाहिर है कि राजनीतिक मंतव्य हैं।
इस दौरान जब पत्रकारों ने उनसे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के बारे में सवाल पूछे तो वह चुप्पी साध गए और इसे राज्य का विषय बताते हुए इस से किनारा कर गए।
पत्रकारों ने जब उनसे एम्स में भर्तियों के नाम पर लाखों के गड़बड़ घोटाले ध्यान खींचा तो उन्होंने इस पूरे प्रकरण से अनभिज्ञता जाहिर कर दी और कहा कि आइंदा भर्तियों में पारदर्शिता बरती जाएगी।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा का आज का दौरा केवल आपातकाल का काला दिवस याद दिलाने पर ही केंद्रित था।
जाहिर है कि वर्ष 1975 से अब तक देश का लोकतंत्र काफी लंबा रास्ता तय कर चुका है और विश्वव्यापी सहज सुलभ मीडिया के इस दौर में अब उस तरह की कोई गुंजाइश नहीं है।
इधर कांग्रेस ने बीजेपी के आपातकाल पर काला दिवस मनाने को लेकर पलटवार किया है। कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दशौनी ने पलटवार करते हुए कहा कि बीजेपी आपातकाल के बजाय गोधरा कांड की हकीकत जनता को बताए। गरिमा दशौनी ने आरोप लगाया कि आगामी लोकसभा से पहले बीजेपी अपने गिरते ग्राफ से बौखला गई है। दशौनी ने कहा कि केंद्रीय मंत्री अपने विभागों से जुड़े कार्यों की समीक्षा करते तो बेहतर होता।
हालांकि कांग्रेस के कार्यकाल में भी कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री भी राज्य में आकर इसी तरह की राजनीति करते थे और तब विपक्ष में बैठी भाजपा भी उन पर ऐसे ही आरोप प्रत्यारोप करती थी।
इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि काफी लंबे समय से प्रदेश में “मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना” पटरी से उतरी हुई है। जन औषधि केंद्रों का बुरा हाल है। डॉक्टर धड़ल्ले से निजी अस्पतालों और केमिस्टों के लिए जांच और दवाइयों के लिए मरीजों को रेफर कर रहे हैं। एनएचएम योजना के तहत घोटालों का कोई ओर-छोर नहीं है। लेकिन इन सब पर बात करने के बजाए केवल आपातकाल तक खुद को सीमित रखेंगे, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से आम जनता की यह अपेक्षा नहीं थी। स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर पूछे गए हर सवाल को जेपी नड्डा ने राज्य का विषय बता कर कन्नी काट ली। जाहिर है कि भाजपा अभी से चुनावी मोड में आ गई है।