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अंधेरे की ओर प्रदेश की ऊर्जा 

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प्रदेश को ऊर्जित करने और घर-घर में उजाला पहुंचाने वाले उाराखण्ड पावर कारपोरेशन को बिजली चोर, बकायादार और सरकार की गलत नीतियों के कारण पहुंच रहा है बड़ा नुकसान

जयसिंह रावत

घर-घर में उजाला पहुंचाने वाले उाराखंड पावर कारपोरेशन को बिजली चोर, बकायादार और सरकार की गलत नीतियां अंधेरे की और धकेलने पर तुली हुई हैं। कारपोरेशन का भट्टा बिठाने में वे कर्मचारी और अधिकारी भी शामिल हैं, जो लगभग मुफ्त में ही बिजली का उपभोग कर रहे हैं, मगर बकायादारों से वसूली करने के बजाय बिजली चोरी को बढ़ावा दे रहे हैं।
उाराखंड में कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के कारण हर साल अरबों रुपये मूल्य की बिजली या तो बेकार जा रही है या फिर चोरी चली जा रही है। उाराखंड पावर कारपोरेशन (यूपीसीएल) द्वारा लाइन लॉस घट कर लगभग 12.85 प्रतिशत हो जाने का दावा किया जा रहा है, जबकि सच्चाई यह है कि कारपोरेशन की सुपुर्दगी से लगभग 18.01 प्रतिशत बिजली गायब हो रही है।
सूचना का अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष जनवरी से लेकर जुलाई तक की छह माह की अवधि में उाराखंड जल विद्युत निगम समेत विभिन्न श्रोतों से उाराखंड पावर कारपोरेशन को कुल 7511.385 मिलियिन यूनिट बिजली प्राप्त हुई। जिसमें से कुल 6081.019 मिलियिन यूनिट बिजली की ही बिक्री हो पायी। बाकी 1430.366 मिलियिन यूनिट बिजली कहां गयी, इसका कारपोरेशन को भी पता नहीं है। गायब होने वाली यह बिजली लगभग 18 प्रतिशत से अधिक बैठती है, जबकि सूचना के अधिकार के तहत मिले जवाब के अनुसार इस अवधि में लाइन लॉस और कमिर्शियल लॉस मात्र 12.85 प्रतिशत था। शेष 5.16 प्रतिशत बिजली कहां गयी, इसका न तो पावर कोरपोरेशन को पता है और न ही कारपोरेशन ने गायब बिजली के बारे में दरियाफ्त करने की जरूरत समझी है।
दरअसल यह 5.16 प्रतिशत बिजली सीधे-सीधे चोरी चली गई, जिसकी कीमत कई करोड़ बैठती है। गायब हुई बिजली में बाजार से 3.42 रुपये प्रति यूनिट से खरीदी गयी बिजली भी शामिल है। अगर इसी दर से गायब हुई बिजली का मूल्य आंका जाए तो वह लगभग 489 करोड़ रुपये बैठता है। अगर सतर्कता और ईमानदारी बरती जाती तो पावर कारपोरेशन की छह माह में ही इतनी बड़ी रकम बर्बाद होने से बचती और बिजली की किल्लत से भी मुित मिलती। मिली जानकारी के अनुसार पावर कारपोरेशन ने बची हुई 6081.019 मिलियन यूनिट बिजली की बिक्री में 3084.72 करोड़ रुपये की बिलिंग की थी। जिसके सापेक्ष कारपोरेशन ने 3477.12 करोड़ की वसूली की। इस साल अप्रैल से लेकर जुलाई तक की तिमाही की स्थिति और अधिक चिंताजनक नजर आ रही है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार यूपीसीएल ने केवल 78.82 प्रतिशत बिजली की ही बिलिंग की तथा उसमें से केवल 80.91 प्रतिशत की ही वसूली हो पायी। यूपीसीएल ने इस तिमाही में लाइन एवं टेिनकल लॉस 36.23 प्रतिशत बताया है।
प्रदेश के अधिकांश बिजलीघरों के 35 साल से कहीं अधिक उम्र हो जाने के कारण उनकी अधिकतम स्थापित क्षमता का दोहन न हो पाने तथा टरबाइनें चलाने के लिये बरसात के सीजन के अलावा बाकी समय में पूरा पानी न मिलने से प्रदेश का बिजली उत्पादन घटता जा रहा है और बिजली की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। इसलिए पावर कारपारेशन को बाहर से महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है। पीक आवर्स में तो घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए कभी-कभी बाहरी श्रोतों या बाजार से 10 रुपये यूनिट तक भी बिजली खरीदनी पड़ रही है। सूचना के अधिकार के तहत यूपीसीएल द्वारा उपलध कराई गयी जानकारी के अनुसार वर्ष 2015-16 में 4308.52 करोड़ की बिजली 3.42 रुपये प्रति यूनिट की दर से खरीदी गयी। इस साल जनवरी से लेकर अगस्त तक 3188.13 करोड़ की बिजली खरीदी गयी। अगर बिजली चोरी रोकी जाती तो कारपोरेशन को लगभग एक हजार करोड़ रुपये की बचत होती। सर्व विदित ही है कि राज्य में सर्वाधिक बिजली चोरी हरिद्वार जिले के औद्योगिक क्षेत्र में होती है। हरिद्वार जिले में भी रुड़की क्षेत्र में सबसे अधिक चोरी होनी बताया जाती है। सूत्रों के अनुसार यह चोरी मोटी रकम लेकर करायी जाती है। रुड़की अलावा कुमाऊं के औद्योगिक क्षेत्रों में भी बिजलीचोरी की शिकायतें आती हैं।
आम उपभोता अगर बिजली के बिलों का समय से भुगतान न कर पाये तो कुछ सौ या एक दो हजार की बकाया रकम के लिये ही उनके कनेशन काट कर घरों में अंधेरा कर दिया जाता है, लेकिन सरकार के अपने ऐसे विभाग और उपक्रम हैं जो उाराखंड पावर कारपोरेशन के बिजली के बिलों की करोड़ों की रकम दबाये बैठे हैं। ऊपर से तुर्रा ऐसा कि पावर कारपोरेशन न तो उनसे वसूली कर पा रहा है और न ही उनके कनेशन काटने की हिम्मत जुटा पा रहा है। सरकारी विभाग ही नहीं, बल्कि कुछ बड़े उद्योगों भी बिजली के 20 करोड़ से ज्यादा के बकाया बिल दबाये बैठे हुए हैं। बकायादारों में राज्य के पांच पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, जिन पर पावर कारपोरेशन का 58,83 411 रुपये के बिल बकाया हैं। इनमें भगत सिंह कोश्यारी, नारायण दा तिवारी, भुवनचन्द्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक और विजय बहुगुणा शामिल हैं।
कुछ सरकारी विभागों और उद्योगों पर कारपोरेशन के बिजली बिलों की 57,99,62,907 रुपये की रकम बकाया है। कारपोरेशन के बड़े बकायादार सरकारी विभागों पर 37,56,91,548 रुपये के बिल बकाया हैं। इनमें सबसे बड़ा बकायादार उाराखण्ड जल संस्थान है, जिस पर 19,11,01,548 रुपये के बिल बकाया हैं। इनमें रामनगर नैनीताल, अल्मोड़ा, पौड़ी, श्रीनगर और कोटद्वार के अधिशासी अभियंता शामिल हैं। पेयजल निगम के कोट-झण्डी डिविजन पर भी बिजली का 22,010,114 रुपया बकाया है। इनके अलावा गंगा प्रदूषण नियंत्रण ऋषिकेश पर 4,39,21,706 और बनबसा बैराज टनकपुर पर 5,54,89,274 रुपये की रकम बकाया है।
कुछ बड़े उद्योगों ने भी ऊर्जा निगम के करोड़ों रुपये के बिलों का भुगतान करना है। इनमें से श्री श्याम पल्प एण्ड बोर्ड मिल, काशीपुर पर 9,22,16,834, मै. बी.टी.सी. इण्डस्ट्रीज प्रा. लि. किच्छा पर 4,31,42,821रुपये, मै. एमआइआरसी इलेट्रॉनिक लि. रुड़की पर 2,06,83,095 रुपये, मै. उारांचल आइरन एण्ड इस्पात कोटद्वार पर 1,76,37,839 रुपये, मै. श्रृष्टी स्टील इंडस्ट्रीज काशीपुर पर 72,81,100 रुपये, मै. एनटीपीसी एन्मथ, जोशीमठ पर 70,64,933 रुपये मै. साई इंटरप्राइजेज रुद्रपुर पर 46,59,573 रुपये, प्रबंधन गढ़वाल मण्डल विकास निगम जोशीमठ पर 41,00,421 रुपये, मै. जिन्दल रिफाइनरीज लि. काशीपुर पर 37,53,129 रुपये और मै. जीएम आइडीपीएल, ऋषिकेश पर 37,31,614 रुपये की बकाया है, जो कि लंबे समय से वसूल नहीं हो पा रही है। ज्यादातर लौह भट्टियां अपने ऊंचे रसूखों के चलते बिजली के बिलों का भुगतान जरूरी नहीं समझ रही हैं। अगर यही हाल रहा तो उार प्रदेश राज्य विद्युत परिषद की तरह ही यूपीसीएल का भविष्य भी अंधकारमय ही समझें।

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