अफसोस:त्रिवेंद्र उत्तराखंड के सीएम हैं या सिर्फ भाजपा के !
मुख्यमंत्री जी क्या 13 विधानसभाओं के लोग उत्तराखंड के नागरिक नहीं हैं ? क्या इन 13 विधानसभा के लोगों को विकास नहीं चाहिए है ? या आप की सरकार बनने के बाद इन 13 विधानसभाओं में कोई विकास कार्य हुआ ही नहीं जिन की समीक्षा आप कर सकें ? यह सवाल उठाया है केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने।
यह बात अलग है कि अपने कार्यकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सिर्फ अपने और सहयोगी विधायकों की विधानसभा क्षेत्रों की समीक्षा का चलन शुरु किया था। तब भाजपा के लाख कहने पर भी हरीश रावत ने भाजपा विधायकों की विधानसभा क्षेत्रों की समीक्षा का कोई कार्यक्रम नहीं बनाया।
तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष तथा भाजपा विधायक अजय भट्ट ने तब इस पर बड़ा बवाल मचाया था, आज यही कार्य त्रिवेंद्र सिंह रावत कर रहे हैं और अजय भट्ट खामोश हैं।
दरअसल 4 जुलाई को मुख्यमंत्री के निजी सचिव की ओर से एक पत्र जारी कर राज्य की 57 विधानसभाओं (जंहा से BJP के विधायक जीते हैं ) , के विकास कार्यों की समीक्षा का कार्यक्रम जारी किया है ।
राज्य की विधान सभा के विकास कार्यों की समीक्षा के इस कार्यक्रम से कांग्रेस के 11 विधायकों और 2 निर्दलीय विधायकों की विधानसभाएं गायब हैं ।
केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने पूछा है,-” मुख्यमंत्री जी शायद आप यह भूल गए हैं कि आपने संविधान की शपथ ली है । आप ने शपथ ली थी कि आप राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करेंगे।”
विधायक मनोज मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के नाम जारी एक खुले पत्र के माध्यम से पूछते हैं,-” आप क्यों कांग्रेसी विधायकों और निर्दलीय विधायकों की समीक्षा भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के साथ नहीं करना चाहते हैं ? या आपके अनुसार इन विधानसभाओं के विकास कार्यों की समीक्षा होनी ही नही चाहिए ?
खैर अब BBC जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों ने आपको जिन उपाधियों से नवाजा है उससे यह सिद्ध हो जाता है आप लोकतांत्रिक सरकारों में असली और अंतिम निर्विवाद राजा हैं। फिर आप क्यों विरोधियों की परवाह करेंगे ? ”
तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की तर्ज पर ही त्रिवेंद्र सिंह आप प्रतिपक्षी पार्टी कांग्रेस पार्टी के या निर्दलीय विधायक जीते हैं उन विधानसभाओं की के विकास कार्यों की समीक्षा करना ही नहीं चाहते।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साथ ही घोषणा की थी कि, हर विधायक को एक साल में 10 करोड़ की सड़कें दी जाएंगी और एक साल में उनकी संस्तुति पर 50 लाख रुपए मुख्यमंत्री राहत कोष से जरूरतमंदों को दिए जाएंगे लेकिन एक साल के आंकड़ों को उठाकर देखें तो कांग्रेस के विधायकों को कुछ भी नहीं दिया गया है।
विधायक मनोज रावत अपील करते हैं,-” मुख्यमंत्री जी भले ही आप कांग्रेस के विधायकों को विकास योजनाएं न दें , लेकिन कम से कम गरीब बीमारों और जरूरतमंदों को आवश्यकता पड़ने पर कुछ सहायता तो दें।
बकौल विधायक मुख्यमंत्री जी उत्तरा कांड और पौड़ी की महिला के पत्थर मारकर भगाने वाले बयान के बाद इस आदेश को देख कर मैं निश्चिंत हो गया हूं कि आपके साथी, सहयोगी और सलाहकार आप को राजनीतिक रुप से डुबाने में और भविष्य में समाज से दूर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
बहरहाल कांग्रेस के विधायक मनोज रावत चाहे कोई भी दलील दे जा अपील करें लेकिन सच तो यह है कि पक्षपात का यह बीज पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ही बोया था। अब विपक्ष में बैठी कांग्रेस को भी वही फसल काटनी है।
किंतु एक अहम सवाल यह भी है कि यदि भाजपा को भी कांग्रेस का ही अनुसरण करना है तो फिर कांग्रेस और भाजपा में अंतर ही क्या रह गया !
आखिर यह पक्षपात करने के लिए तो जनता ने हरीश रावत को दोनों सीटों से हराकर प्रचंड बहुमत से भाजपा को नहीं चुना था !