कुलदीप एस राणा
अपर सचिव आयुष देवेंद्र पालीवाल द्वारा दिनांक 30 नवंबर 2018 को उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अभिमन्यु कुमार को पत्र भेजकर स्पष्ट किया कि वर्तमान समय में विश्वविद्यालय कुलसचिव विहीन है। अतः वह विश्वविद्यालय के अधीन राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेजों में से प्रोफेसरों के 3 नाम को चयन कर कुल सचिव पद हेतु शासन को अवगत कराएं।
ज्ञात हो कि 24 मार्च 2018 को उत्तराखंड शासन ने विश्वविद्यालय के उप कुलसचिव डॉ राजेश कुमार अड़ाना को अग्रिम आदेशों तक विश्वविद्यालय का प्रभारी कुलसचिव नियुक्त किया था। इसी बीच सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 28 मार्च 2018 को एक आदेश जारी कर डॉ मृत्युंजय कुमार मिश्रा तत्कालीन अपर स्थानिक आयुक्त नई दिल्ली के नियुक्ति संबंधी आदेश को निरस्त कर उन्हें तत्काल प्रभाव से अपने मूल विभाग उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में कार्यभार ग्रहण करने का आदेश दिया गया।
डॉक्टर मिश्रा के कार्यभार ग्रहण करते ही डॉ राजेश कुमार अडाना का प्रभारी कुलसचिव के रूप में तैनात किए जाने संबंधी आदेश स्वत: ही समाप्त हो गया।
बदलते घटनाक्रम में डॉ मृत्युंजय कुमार मिश्रा के विरुद्ध लगातार प्राप्त हो रही शिकायतों एवं विवादों के दृष्टिगत आयुष शिक्षा विभाग ने 27 अक्टूबर 2018 को मृत्युंजय कुमार मिश्रा को विभाग से निलंबित करते हुए शासन से संबद्ध कर दिया और डॉ मिश्रा के शासन में संबंद्ध होने के दृष्टिगत उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में कुल सचिव के पद के दायित्वों के निर्वहन हेतु कार्मिक विभाग ने मोहम्मद नासिर अपर आयुक्त कर को वर्तमान पद भार के साथ-साथ कुल सचिव का अतिरिक्त पदभार भी सौंप दिया।किंतु मोहम्मद नासिर द्वारा कतिपय कारणों से कार्यभार ग्रहण नहीं किया। वर्तमान में डॉ मिश्रा भ्र्ष्टाचार के आरोप में विजिलेंस विभाग द्वारा गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं। अर्थात विश्वविद्यालय में कुलसचिव के पद पर किसी की नियुक्ति की नही की गई है। आए दिन विभिन्न प्रकार की अजीबो गरीब कारनामों को लेकर विवादों में रहने वाले आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में यह मामला और दिलचस्प तब हो गया है क्योंकि एक तरफ तो भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दम भरने वाली सूबे की वर्तमान सरकार का कहना है कि कुल सचिव की नियुक्ति करने का अधिकार राज्य सरकार का है और शासन के उक्त पत्र में स्पष्ट लिखा है कि वर्तमान में कोई भी न तो स्थाई कुलसचिव है और ना ही प्रभारी कुलसचिव ! तो भला सूबे के मुखिया के नाक के नीचे उनकी अपने विधानसभा में स्थित इस आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में अवैध रूप से डॉक्टर राजेश कुमार अडाना प्रभारी कुलसचिव के रूप में न सिर्फ कार्य कर रहे हैं बल्कि अनेक नीतिगत फैसले भी ले रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार नियमतः इस दौरान इनके द्वारा लिए गए समस्त नीतिगत निर्णय अवैध माने जाने चाहिए। समस्त सुविधाओं में खर्च सरकारी राशि को इनकी आय से वसूला जाना चाहिए साथ ही इस दौरान डॉक्टरों द्वारा लिए गए समस्त निर्णयों की जांच भी कराई जानी चाहिए। किंतु राज्य सरकार की उदासीनता का आलम यह है कि 6 माह पूर्व उच्च न्यायालय द्वारा एक जनहित याचिका में स्पष्ट आदेश दिया था कि 10 सप्ताह के भीतर विश्वविद्यालय में स्थाई कुलसचिव उप सचिव की बहाली की जाए किंतु आदेशों को नजरअंदाज कर बहाली तो दूर की बात अभी तक उक्त संदर्भ में विश्वविद्यालय द्वारा विज्ञापन जारी कर कार्रवाई भी शुरू नहीं की गई है।
उत्तराखंड इस पर 30 दिसंबर 30 नवंबर 2018 को उत्तराखंड शासन ने ही उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय परिनियमावली 2015 के अंतर्गत विश्व विश्वविद्यालय से अस्थाई व्यवस्था के रूप में कुलसचिव के अतिरिक्त प्रभार हेतु विश्वविद्यालय से प्रोफेसरों में से तीन नामों का पैनल शासन को उपलब्ध कराने का आदेश दिया। एक सप्ताह से अधिक समय बीत जाने के बावजूद भी विश्वविद्यालय द्वारा शासन के उक्त आदेश का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया गया है।