कंपनी राज रिटर्न
उत्तराखंड में शराब माफिया ने आखिर सरकार को अपनी चपेट में ले ली लिया। त्रिवेंद्र सरकार ने आबकारी में पांच बड़े घोटाले किए गए हैं।
पहला घोटाला है कि शराब की दुकानों की लॉटरी रोककर एक समय बढ़ा दिया है। इसके लिए सरकार ने कैबिनेट बैठक होने के बाद भी फैसले को जानबूझकर दबाए रखा, ताकि ऐन मौके पर समय कम होने की बात कहते हुए उन्हीं दुकानों की समय सीमा अप्रैल तक बढ़ा दिया जाए। अगले सत्र के लिए सरकार ने शराब के रेट बढ़ा दिए हैं। ऐसे में इन दुकानदारों ने पुरानी दरों पर अत्यधिक मात्रा में शराब खरीदकर स्टॉक कर लिया है। जिसे वह एक अप्रैल से बढ़ी हुई नई दरों पर बेचेंगे। इससे शराब माफिया सरकार के साथ मिलीभगत कर करोड़ों का वारा न्यारा करेंगे।
दूसरा घोटाला सरकार ने डिपार्टमेंटल स्टोर में खुलने वाली मॉडल शॉप के लिए किया है। सरकार ने उन्हीं डिपार्टमेंटल स्टोरों में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति दी है, जिनका शराब से इतर अन्य बिक्रियों का टर्न ओवर पांच करोड़ रुपए हो। इससे सभी डिपार्टमेंटल स्टोरों से विदेशी मदिरा की दुकानों का अधिकार छिन जाएगा। यह तिकड़म सरकार ने मॉल के मालिकों को ध्यान में रखकर निकाली है। इसमें चार मॉल में तो एक ही लाइसेंसधारक सरोज मल्होत्रा का स्वामित्व है। हालांकि यह अलग बात है कि पांच करोड़ का टर्नओवर वाली शर्त केवल डिपार्टमेंटल स्टोरों पर ही थोपी गई है, जबकि इसके दायरे में मॉल की दुकानों को जानबूझकर छोड़ दिया गया है।
राज्य सरकार ने इस वित्तीय वर्ष के लिए शराब से २५५० करोड़ रुपए राजस्व का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो यह दर्शाता है कि शराब उत्तराखंड के लिए कितनी कीमती हो चुकी है। विदेशी मदिरा के स्टोर, जो कि मॉल (एफएल5-एम) में आते हैं, वहां अनुज्ञापन शुल्क और शर्तें तो सामान्य रखी हैं, लेकिन जो स्टोर मॉल के बाहर १० डिपार्टमेंटल स्टोर को (एफएल5-डीएस) समाप्त करने के लिए ऐसी शर्तें बना दी गई हैं, जो कोई पूरी ही नहीं कर सकता।
नोटबंदी और जीएसटी के बाद पिट चुके बाजार में मदिरा के अतिरिक्त अन्य पदार्थों की पांच करोड़ रुपए की बिक्री की शर्त दर्शाती है कि यह नियम एक मॉल को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है। उक्त मॉल मालिक को फायदा पहुंचाने और विदेशी शराब में उसकी मोनोपॉली चलाने के लिए सरकार ने यह निर्णय लिया है।
तीसरा घोटाला यह है कि शराब के खेल में जो सरकार अब ई-टेेंडरिंग की बात कर रही है, वह सरकार अच्छी तरह जानती है कि ई-टेंडरिंग के बाद उत्तराखंड के ठेकेदार किस प्रकार विगत एक वर्ष से बेरोजगार हैं और उत्तराखंड से बाहर के ठेकेदारों का उत्तराखंड में आधिपत्य हो गया है। इसी प्रकार यदि शराब की दुकानों के लिए ई-टेंडरिंग का प्रावधान होता है तो उत्तराखंड के लोगों का बचा-खुचा काम भी समाप्त हो जाएगा, जो थोड़ा बहुत स्वरोजगार दे रहे थे।
चौथा घोटाला यह है कि नई आबकारी नीति के अनुसार एक पेटी शराब अर्थात नौ लीटर शराब को इधर-उधर ले जाने के लिए अब न तो किसी प्रकार का बिल दिखाना पड़ेगा, न किसी प्रकार की पूछताछ ही होगी। सरकार ने शराब माफियाओं के लिए एक गैंग बनाकर खुलेआम शराब बेचने का बंदोबस्त कर दिया है। इस नियम के अनुसार शराब माफिया २० किमी. की दूरी तक खुलेआम नौ-नौ लीटर शराब को वैध-अवैध रूप से बेच सकते हैं। एक तरह से यह शराब की होम डिलीवरी है।
पांचवां घोटाला यह है कि राज्य बनने के बाद आबकारी विभाग ने कंपनी/बड़े ठेकेदारों की मनमानी तोडऩे के लिए लॉटरी सिस्टम चलाया गया। जिससे बहुत हद तक बड़े ठेकेदारों की मनमानी पर अंकुश लगा। मगर नई आबकारी पॉलिसी में बैकडोर से प्रदेश में चल रही लाभ की दुकानें कंपनी/बड़े ठेकेदारों को सौंपे जाने की तैयारी चल रही है। लॉटरी सिस्टम में कोई भी आम आदमी 50 हजार से भी कम की लागत में ठेके के लिए पर्ची डाल सकता था, मगर नई पॉलिसी में जब दुकानों की बोली लगेगी तो इससे सिर्फ बड़े करोड़पति शराब व्यवसायी ही बोली लगा सकते हैं। नई पॉलिसी में राज्य की ५० प्रतिशत दुकानें नहीं उठ पाएंगी, जिसे बाद में घाटे की दुकान दिखाकर अधिकारियों के साथ मिल-बैठकर कंपनी या बड़े शराब माफियाओं को सौंप दी जाएगी।
उत्तराखंड में राज्य गठन से ही शराब माफियाओं का सरकार में दबदबा देखने को मिला है। पहली बार प्रचंड बहुमत वाली डबल इंजन की सरकार आने के बाद ऐसा महसूस हो रहा था कि अब सरकार माफियाओं के दबाव में काम नहीं करेगी, किंतु जो सेवा शर्तें अब तय की गई हैं, वो वास्तव में माफियाओं को ही पनपाने वाली हैं।