कृष्णा बिष्ट
निम के पूर्व प्रधानाचार्य तथा केदारनाथ पुनर्निर्माण को लेकर खासे लोकप्रिय हुए कर्नल कोठियाल के खिलाफ वन विभाग द्वारा वन संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन के विषय में दर्ज कराया गया केस हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2005 मे रक्षा मंत्रालय के आदेश पर अजय कोठियाल तथा उनकी टीम को एक सैन्य अभियान के तहत चमोली के त्रिशूल चोटी को फतह करने का टास्क सौंपा गया था। इस दौरान नंदा देवी नेशनल पार्क के वन अधिकारियों से कर्नल कोठियाल तथा उनकी टीम का मतभेद हो गया।
बात इतनी बढी कि वन विभाग ने वर्ष 2005 मे कर्नल कोठियाल तथा सुनील कोटनाला के खिलाफ वन संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन को लेकर चमोली की मुंसिफ कोर्ट में मुकदमा दर्ज करा दिया।
वन विभाग में इन सैन्य अधिकारियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे में आपत्ति जाहिर की थी कि इन अधिकारियों ने न तो वन विभाग के सदस्यों को अपने साथ टीम में लिया न ही वन विभाग द्वारा बताए गए रास्ते का अनुसरण ही किया बल्कि अपने लिए अलग से रास्ता बनाया। इसके साथ ही उन्होंने क्षेत्र में आग जलाई और लकड़ियां तोड़ी। इसके साथ ही अजय कोठियाल ने फॉरेस्ट गार्ड को धमकाया तथा वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ साथ जनरेटर का भी इस्तेमाल किया।
इस केस की पैरवी हाई कोर्ट के अधिवक्ता विपुल शर्मा ने की। विपुल शर्मा ने पर्वतजन से बताया कि केस वन विभाग द्वारा शुरू से ही आधारहीन तथ्यों पर चलाया गया था।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि इस मामले में पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ केस चलाए जाने से पहले सीआरपीसी की धारा 197 के अधीन भारत सरकार से परमिशन ली जानी जरूरी थी लेकिन यह परमिशन भी नहीं ली गई।
जस्टिस बीके बिष्ट की अदालत ने 28 सितंबर को चमोली के न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि मेजर कोठियाल ने अपनी ऑफिसियल ड्यूटी की है। उन्होंने रक्षा मंत्रालय द्वारा दिया गया टास्क बखूबी पूरा किया है। उनके खिलाफ यह केस किया ही नहीं जाना चाहिए था। जस्टिस बीके बिष्ट ने अपने आदेश में वन विभाग को लताड़ लगाते हुए कहा कि इस तरह के केस आर्मी के मोराल को प्रभावित करने वाले होते हैं।