पवलगढ़ के प्रधानाचार्य द्वारा लिखे गए इस दुर्भाग्यपूर्ण – कुप्रयोजनयुक्त – गैरजिम्मेदाराना पत्र को पढ़ कर जो पहली बात मेरे दिमाग में आती है ,वह है – ” हद दर्जे की बदतमीजी” ( और यह बात मैं पूरी जिम्मेदारी से साभिप्राय लिख रहा हूँ ) I
किसी भी संस्था के प्रमुख का यह अधिकार है कि वह पर्याप्त आधार होने की स्थिति में अपने मातहत कर्मी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी कर सकता है , किन्तु टिप्पणी करने से पूर्व उसे इस सबंध में आवश्यक प्रक्रियाओं को पूरा करना होता है (नियमतः प्रतिकूल टिप्पणी गोपनीय होती है ) I तथापि प्रतिकूल टिप्पणी करने का यह अर्थ नहीं कि मातहत कर्मी को सार्वजनिक रूप से बेइज्जत किया जाय I
संक्षेप में इतना ही कहूँगा कि संबधित शिक्षक /शिक्षिका को न सिर्फ प्रधानाचार्य के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करना चाहिए, अपितु साथ में अविलम्ब उच्च अधिकारी के समक्ष परिवाद निवारण हेतु आवेदन करना चाहिएI
जनपद कार्यकारिणी से अपेक्षित है कि वह मानहानि का मुकदमा एवं परिवाद निवारण आवेदन के लिए शिक्षक /शिक्षिका की मदद करे एवं अपने स्तर से मामला अविलम्ब उच्चाधिकारियों के संज्ञान में लाये I
(नोट – पहचान छुपाने के लिए शिक्षक /शिक्षिका नाम छुपा दिया है )
लेखक : मुकेश प्रसाद बहुगुणा शिक्षक