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एक  अदद टिकट  के लिए भटकते एन डी 

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March 3, 2017
in पर्वतजन
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जगमोहन रौतेला

 तेजी से बदलते राजनैतिक समीकरणों के बीच रोहित की कांग्रेस या भाजपा से अपने जैविक पिता एनडी के राजनैतिक संरक्षण में विधानसभा चुनाव लडऩे की आस पूरी होती नहीं दिख रही हैं

कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे एनडी तिवारी कभी पार्टी में विधानसभा व लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों को टिकट बांटा करते थे। जिस नेता की पीठ पर वह हाथ रख देते, उसे उत्तरा प्रदेश  और उत्तराखंड  में चुनाव लडऩे का मौका अवश्य मिलता। टिकट की चाह रखने वाले नेताओं का जमावड़ा उनके दिल्ली व लखनऊ आवास पर लगा रहता था। वक्त की मार देखिए कि वही एनडी इन दिनों राजनैतिक वनवास के साथ ही उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं। आठ साल की लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद जिस रोहित को वे बेटा मानने को मजबूर हुए, आज उसके राजनैतिक ठौर के लिए वह पार्टी दर पार्टी दस्तक दे रहे हैं। सपा व कांग्रेस से एक तरह से निराशा हाथ लगने के बाद वह भाजपा की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे थे, पर वहां भी अब बात बनती नजर नहीं आ रही है। उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व पर अपनी ओर से इस बात के लिए बहुत दबाव डाला कि उनके जैविक पुत्र को विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाने का आश्वासन मिल जाए, पर ऐसा कोई आश्वासन न मिलने पर एनडी जब गत 18 अक्तूबर 2016 को हल्द्वानी अपना जन्मदिन मनाने पहुंचेे, उन्होंने इस दौरान भाजपा नेताओं से मुलाकात करने में कोई गुरेज नहीं किया।
उनसे मुलाकात करने वालों में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट व नैनीताल के सांसद भगत सिंह कोश्यारी प्रमुख थे। इसके बाद से एनडी के जैविक पुत्र रोहित शेखर के भाजपा में जाने तथा हल्द्वानी या लालकुआं से चुनावी सक्रियता बढ़ाने की चर्चाएं जोरों पर हुई। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी एनडी के जन्मदिन समारोह में शामिल न होकर एक तरह से दूरी बनाकर रखी। वह अपने जैविक पिता एनडी तिवारी व मां उज्जवला शर्मा के साथ जनसम्पर्क के अलावा अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आंदोलन कर लोगों को समर्थन देने भी पहुंचने लगे। रोहित की सक्रियता ने हल्द्वानी सीट पर वित्त मंत्री इंदिरा हृदयेश की राजनैतिक परेशानी बढ़ाई तो लालकुआं सीट पर भाजपा से टिकट के दावेदारों में बैचेनी पैदा कर दी। हल्द्वानी सीट पर लंबे अरसे से अपने गांव को राजस्व गांव बनाने की मांग कर रहे दमुआढुंगा के लोगों को समर्थन देने के लिए रोहित अपने पिता व मां के साथ पहुंच गए। उन्होंने इसके लिए इंदिरा हृदयेश पर अप्रत्यक्ष रूप से जमकर निशाना साधा और कहा कि लोगों का आशीर्वाद उन्हें मिला तो वह उनका हक उन्हें अवश्य दिलाएंगे। रोहित की सक्रियता से परेशान इंदिरा हृदयेश ने भी दमुआढुंगा के लोगों को चेतावनी देने के लहजे में कहा कि वे किसी के भी बहकावे में न आएं। सरकार उनकी परेशानी का हल निकालने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।

तेजी से बदलते राजनैतिक समीकरणों के बीच रोहित की कांग्रेस या भाजपा से अपने जैविक पिता एनडी के राजनैतिक संरक्षण में विधानसभा चुनाव लडऩे की आस पूरी होती नहीं दिख रही हैं

इंदिरा के दबाव में रोहित की सक्रियता पर लगाम लगाने व उन्हें राजनैतिक रूप से साधने के लिए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गत 2 दिसम्बर 2016 को रोहित को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं उत्तराधिकार  कल्याण परिषद का उपाध्यक्ष नियुक्त किया, पर रोहित ने कहा कि वे यह पद तब तक स्वीकार नहीं करेंगे, जब तक कि उन्हें उचित ‘सम्मान’ न मिले। एनडी तिवारी से अपने तल्ख संबंधों को ठीक करने के लिए मुख्यमंत्री रावत ने भी 4 दिसंबर को एनडी से हल्द्वानी में मुलाकात की। मुख्यमंत्री ने रोहित को लेकर कोई आश्वासन देने की बजाय उल्टे रोहित को ‘धैर्य ‘ रखने की नसीहत दे डाली। दोनों नेताओं के बीच राजनैतिक संबंधों की डोर तो मजबूत नहीं हुई, लेकिन 7 दिसम्बर 2016 को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की हल्द्वानी रैली में रोहित के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं इस बीच जोरों पर रही। कांग्रेस भी सधे कदमों से एनडी के अगले कदम पर निगाह रखे रही। इन चर्चाओं को तब और बल मिला, जब रैली से ठीक एक दिन पहले 6 दिसम्बर 2016 को पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने एनडी तिवारी से मुलाकात की। इस मुलाकात पर रोहित ने यह कह कर विराम लगाने की कोशिश की कि भाजपा नेता उनके पिता से आशीर्वाद लेने आए थे और कुछ नहीं। वैसे भी मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है, कल के बारे में मैं कल ही कुछ कहूंगा। रोहित के इस बयान से लगने लगा कि भाजपा के साथ उनकी पटरी नहीं बैठ रही है और हुआ भी वही। अमित शाह की 7 दिसम्बर 2016 की रैली के दिन एनडी अपने परिवार सहित काठगोदाम के सर्किट हाउस में ‘आराम’ करते रहे। यहां तक कि वहां ठहरे हुए पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचन्द्र खंडूड़ी व विजय बहुगुणा तक ने उनसे मुलाकात नहीं की और न ही एनडी की ओर से इस तरह की कोई पहल हुई। अचानक से भाजपा ने एक दिन में ही एनडी से दूरी क्यों बनाई? इस बारे में राजनैतिक चर्चाओं का बाजार गर्म रहा। स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं के विरोध को इसी मुख्य वजह माना गया। इस बीच रोहित की राजनैतिक सक्रियता का दम निकालने और वित्त  मंत्री इंदिरा हृदयेश को राजनैतिक ताकत देने के लिए प्रदेश सरकार ने 16 दिसम्बर 2016 को दमुवाढुंगा को राजस्व गांव बनाने की घोषणा कर दी है। इस तरह तेजी से बदलते राजनैतिक समीकरणों के बीच रोहित की कांग्रेस या भाजपा से अपने जैविक पिता एनडी के राजनैतिक संरक्षण में विधानसभा चुनाव लडऩे की आस पूरी होती नहीं दिख रही हैं, पर राजनीति में कुछ भी संभव है। इसी आस में रोहित शेखर तिवारी अभी भी हैं। देखना है कि उनकी आस पूरी होती है या नहीं!

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