जनता मिलन कार्यक्रमों में मीडिया के कैमरों तथा मोबाइलों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारियां आखिरकार सरकार ने वापस ले ली।
गौरतलब है कि उत्तरा प्रकरण के बाद जनता दरबार को मीडिया के लिए प्रतिबंधित किए जाने की तैयारियां हो चुकी थी। 4 दिन से देहरादून के मीडिया जगत में इसको लेकर काफी हलचल थी। 2 जुलाई को टाइम्स ऑफ इंडिया में वरिष्ठ पत्रकार योगेश कुमार द्वारा सरकार की तैयारियों का खुलासा किया गया, तब से समूचे मीडिया जगत में सरकार के इस कदम को लेकर काफी आलोचना हो रही थी।
पर्वतजन ने अपने सूत्रों के आधार पर आज सुबह 5 जुलाई को यह खबर आपके प्रिय पोर्टल पर प्रकाशित की तो जनमानस में प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।
इससे विचलित सरकार के मीडिया कोऑर्डिनेटर दर्शन सिंह रावत ने अधिकृत बयान जारी करके कहा कि इस तरह की कोई योजना नहीं है।
मुख्यमंत्री के मीडिया कॉर्डिनेटर श्री दर्शन सिंह रावत ने मुख्यमंत्री जी के जनता मिलन कार्यक्रमों में मीडिया पर पाबंदी की खबरों को निराधार बताया है। उन्होंने कहा है कि उनके द्वारा इस तरह का कोई बयान नही दिया गया है। मुख्यमंत्री जी के जनता मिलन कार्यक्रमों में मीडिया के प्रवेश पर रोक संबंधी कोई निर्णय नही लिया गया है। और न ही इस तरह का कोई प्रस्ताव विचाराधीन है। पर्वतजन अपने सभी पाठकों और उनकी प्रतिक्रियाओं के लिए धन्यवाद और आभार व्यक्त करता है।
कौन कहता है कि फर्क नहीं पड़ता !
हालांकि एक सवाल अभी भी अपनी जगह है कि यदि सरकार मीडिया को प्रतिबंधित नहीं करना चाहती तो सचिवालय के अनुभागों में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी क्यों लगाई गई है ?
यह खबर किसी को व्यक्तिगत रुप से दोषी ठहराने की नहीं है। इसलिए बिना नाम लिए पर्वतजन एक और खुलासा करना चाहता है कि मुख्यमंत्री के करीबी व्यक्ति ने पिछले दिनों एक मीडिया कर्मी के सचिवालय के अफसर के साथ बैठे होने पर अफसर को जमकर लताड़ लगाई थी, इस पर अफसर और उक्त व्यक्ति में काफी गर्मागर्मी भी हो गई थी और बात यहां तक पहुंच गई थी की यदि कोई किसी का दोस्त है तो क्या वह साथ में बैठ भी नहीं सकते !
यदि खबर ही लीक करनी होगी तो इसके कई तरीके हो सकते हैं। लिहाजा इस तरह की पाबंदियां न ही थोपी जाए तो बेहतर होगा।
पर्वतजन इस बात का चश्मदीद गवाह है कि सचिवालय प्रशासन के तत्कालीन प्रमुख सचिव आनंद वर्धन सचिवालय के अनुभवों में स्वयं जाकर इस बात की तस्दीक करते थे कि कोई मीडिया कर्मी वहां तो नहीं घूम रहा !
इसके अलावा एक बड़ा तथ्य यह भी है कि आधा साल गुजर गया लेकिन सचिवालय की खबरें कवर करने वाले पत्रकारों के भी कार पास नहीं बन पाए हैं। यह मीडिया पर प्रतिबंध नहीं तो और क्या है यदि वाकई सरकार लोकतंत्र और पारदर्शिता के प्रति संकल्पबद्ध है तो उन्हें पत्रकारों के सचिवालय में प्रवेश को इस तरह से हतोत्साहित नहीं करना चाहिए।
बहरहाल 4 घंटे में ही खबर के इस असर का श्रेय टाइम्स आफ इंडिया और पर्वतजन के पाठकों को ही जाता है। यदि हमारेे सभी पाठक सक्रियता से जन भावनाएं व्यक्त करतेे हैं तो फर्क जरूर पड़ता है। सभी पाठकों से अनुरोध है कि सामाजिक हितों पर की जा रिपोर्टिंग का इसी तरह गर्मजोशी से स्वागत करेंगे ।