कृष्णा कृष्णा
जीरो टाॅलरेंस की बात करने वाली डबल इंजन की प्रदेश बी.जे.पी सरकार भ्रष्टाचार के प्रति कितनी टाॅलरेंस रखती है, इस का छोटा सा उदाहरण चम्पावत का पूर्व डी.अफ.ओ ए.के.गुप्ता का केस है। इसकी जाँच रिपोर्ट पिछले 6 महीने से एक विभाग से दूसरे विभाग व एक टेबल से दूसरे टेबल सिर्फ चक्कर काट रही है, जो सीधे तौर पर कहीं न कहीं जीरो टोलरैंस का दम भरने वाली डबल इंजन सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करती है।
सितम्बर 2017 में चम्पावत के तत्कालीन डी.अफ.ओ ए.के.गुप्ता का 3 रुपये प्रति टिन का कमीशन मांगने वाला कथित ऑडियो वनविभाग के ठेकेदार द्वारा सार्वजनिक करने के बाद पूरे वन विभाग मे हडकंप मच गया था। विभाग को फ़जीहत से बचाने के लिये तत्कालीन मुख्या सचिव एस. रामास्वामी द्वारा ए.के.गुप्ता को तत्काल प्रभाव से चम्पावत से हटा कर मुख्य वन संरक्षक उत्तराखंड देहरादून के कार्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया।
साथ मे उसी दिन आनन फ़ानन मे विभाग द्वारा एम्स के पूर्व मुख्य विजिलेंस अधिकारी रहे आई.अफ.एस संजीव चतुर्वेदी को ए.के.गुप्ता की जाँच का ज़िम्मा भी सौंप दिया गया था। चतुर्वेदी जब इस केस की जाँच कर रहे थे तो उनके सामने ए.के.गुप्ता के कई अन्य नये–नये कारनामे भी परत दर परत सामने आने लगे। जिस के बाद संजीव चतुर्वेदी ने विभाग को ऐ.के.गुप्ता की लगभग 2000 पन्नों की जाँच रिपोर्ट सौप दी और जाँच रिपोर्ट मे गुप्ता को दोषी पाते हुए उस के खिलाफ निलंबन, ऑडियो की विजलांस जाँच व उस की चल अचल संपत्ति की जाँच की शिफारिश की गई थी। किन्तु शासन के अधिकारियों ने अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह को इस फाइल की भनक तक नहीं लगने दी और काफी समय तक उत्तराखंड सचिवालय का वन अनुभाग -1 इस जाँच रिपोर्ट पर कुंडली मारे बैठा रहा। जब पर्वतजन ने अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह से इस रिपोर्ट के बारे मे लगभग दो हफ्ते बाद पूछा तो तब कहीं जा कर वन अनुभाग के अधिकारियों को इस रिपोर्ट को मुख्य सचिव रणवीर सिंह के सामने रखना पड़ा।
सूत्रों के अनुसार मुख्य वन संरक्षक जय राज व अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह ने 5 मार्च को गुप्ता के निलंबन व विभागीय जाँच की फाइल वन मंत्री को बढ़ा दी है, उस के बाद आखिरी मुहर मुख्यमंत्री की शेष होगी। अब देखना होगा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध की बात कहने वाली सरकार इस मामले को कब तक लटकाती है।