• Home
  • उत्तराखंड
  • सरकारी नौकरी
  • वेल्थ
  • हेल्थ
  • मौसम
  • ऑटो
  • टेक
  • मेक मनी
  • संपर्क करें
No Result
View All Result
No Result
View All Result
Home पर्वतजन

टूरिस्ट को मत टरकाइए!

in पर्वतजन
0
1
ShareShareShare

विनोद कोठियाल

उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश बनाने की बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं, लेकिन पर्यटकों की सुविधाओं के लिए सरकार जरा भी गंभीर नहीं है।

पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश में काफी मारामारी हो रही है। पूरा सरकारी अमला किसी न किसी तरह से इसका श्रेय ले रहे हैं, किंतु अव्यवस्थाओं पर सब एक दूसरे के पाले में गेंद सरका रहे हैं। कुछ जगह पर पर्यटन की राह का रोड़ा बनता है वन विभाग। इस विभाग की गलत कार्य प्रणाली के कारण पर्यटकों में काफी रोष है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है नेलांग घाटी। भारत-चीन युद्ध के बाद पहली बार इस घाटी को विगत वर्ष पर्यटकों के लिए खोला गया, किंतु पर्यटकों को कई विभागों से एनओसी लेने के बाद ही इस घाटी में प्रवेश करने दिया जाता है। जिला प्रशासन व वन विभाग का इसमें सबसे महत्वपूर्ण रोल रहता है। इस प्रक्रिया में पर्यटकों को एक विभाग से दूसरे विभागों में चक्कर काटने पड़ते थे और कई दिन लग जाते थे। इस व्यवस्था को ठीक करने और सुगम बनाने के लिए जिला प्रशासन की एक मुहिम जरूर चली कि इस पूरे सिस्टम को सिंगल विंडो सिस्टम बना दिया। इसका उद्घााटन स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा कराया गया, किंतु इस पूरी व्यवस्था से मुख्यमंत्री को अंधकार में रखा गया। कहा गया कि यह सिस्टम पूर्ण रूप से सिंगल विंडो है और पर्यटकों को एनओसी के लिए अब नहीं भटकना पड़ेगा, जबकि हकीकत यह है कि उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में अभी तक कोई कार्यालय इस कार्य हेतु अमल में नहीं आया, बल्कि अब व्यवस्था और भी ज्यादा जटिल हो गई है। पहले जब कोई पर्यटक नेलांग वैली घूमने आता था तो उसे पता था कि जब तक उसे परमिट जारी नहीं होता, तब तक वह पर्यटक अपने आगे की बुकिंग नहीं करवाता था, किंतु अब सिंगल विंडो सिस्टम होने से पर्यटक से केवल जाने की दिनांक पूछी जाती है और उसके मोबाइल पर एक मैसेज आता है कि आपका प्रार्थना पत्र जमा हो चुका है। इससे आगे की जानकारी पर्यटक को नहीं मिल पाती। तिथि निश्चित होने के कारण पर्यटक अपने आगे की आवासीय व्यवस्था कर लेता है, किंतु जब वह उत्तरकाशी पहुंचता है तो उसे फिर विभागों के चक्कर काटने पड़ते हैं और उस दिन यदि अधिकारी उपलब्ध न हो तो उसका आगे का सारा कार्यक्रम खराब हो जाता है।
वेबसाइट पर किसी भी अधिकारी या कार्यालय का कोई फोन नंबर उपलब्ध नहीं है, जिससे पर्यटक अपने परमिट के संबंध में अग्रिम जानकारी हासिल कर सकें। इन सब अव्यवस्थाओं से उत्तराखंड के पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩा तय है।
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नेलांग घाटी से कभी चीन और भारत का व्यापार होता था। आज भी इस व्यापार के चिन्ह गरतान्गली में पहाड़ी पर बने लकड़ी के पुल से प्रमाणित होते हैं।
भारत-चीन युद्ध के बाद से घाटी के लोगों का विस्थापन किया गया था। ये लोग अब डुंडा व हर्षिल आदि स्थानों पर रहते हैं। इन लोगों को भी घाटी में जाने की अनुमति नहीं है। इनकी राह में रोड़ा वन विभाग बनता है।
पूरी घाटी सेना और आईटीबीपी के अधीन है, किंतु पर्यटकों पर सबसे अधिक अंकुश वन विभाग का है। ऑनलाइन सिस्टम में जो साइट बनी है, उसमें घाटी में घूमने के लिए स्थान निश्चित नहीं है। केवल नेलांग घाटी के नाम से ही बुकिंग होती है, किंतु जब परमिट और काफी जोखिमभरे रास्ते से पर्यटक नेलांग पहुंचता है तो वन विभाग के कर्मचारी पर्यटक को वहीं से वापस कर देते हैं, क्योंकि पर्यटक को बताया जाता है कि आपकी अनुमति यहीं तक है, आगे नहीं जा सकते, जबकि पर्यटक को पता ही नहीं होता कि उसे जाना कहां तक है, क्योंकि घाटी की सुंदरता उसी स्थान से शुरू होती है, जहां पर्यटकों को रोका जाता है। यह सब वन विभाग के रहमोकरम पर निर्भर करता है कि किस पर्यटक को आगे जाने दिया जाएगा और किसे नहीं, जबकि नेलांग से आगे जादोंग गांव है, जो कि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, किंतु विभाग की धींगामुश्ती के कारण पर्यटक तो दूर इस गांव के मूल निवासी भी आज वहां नहीं आना चाहते।
यह मनमानी भारत के सामरिक दृष्टि से तो खराब है ही, उत्तराखंड के पर्यटन के लिए भी काफी नुकसानदायक है। प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से जब नेलांग में स्थानीय समस्याओं और ऑनलाइन सिस्टम की खामियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि व्यवस्थाएं अब पहले से आसान कर दी गई हंै।
इस घाटी में प्रवेश के लिए वन विभाग द्वारा प्रति व्यक्ति १५० व २५० प्रति वाहन का ईको शुल्क लिया जाता है। शुल्क हमेशा से विवादों में रहा। शुल्क का वन विभाग कोई हिसाब नहीं बता पाता कि पर्यटकों से वसूली जाने वाली यह धनराशि किस मद में खर्च की जाती है! घाटी में रखरखाव के नाम पर कुछ नहीं है। सड़क भारत सरकार बना रही है। फिर पर्यटकों से लिए जाने वाले धन का हिसाब न होना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।
उत्तराखंड को भले ही सरकार पर्यटन प्रदेश के रूप में प्रचारित कर रही है, किंतु धरातल पर होने वाली इस प्रकार की परेशानियों से पर्यटक अच्छा अनुभव लेकर नहीं लौट रहे। यह प्रदेश के पर्यटन के लिए शुभ संकेत नहीं है।

Related posts

श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के ईएनटी सर्जन ने पॉच साल के बच्चे की श्वास नली से निकाली सीटी

March 28, 2023
36

श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक सप्ताह का आयोजन

March 28, 2023
19
Previous Post

भय और भ्रष्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार!

Next Post

पर्यटक सूचना केंद्र दुकानदारों के हवाले!

Next Post

पर्यटक सूचना केंद्र दुकानदारों के हवाले!

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Recent News

    • बड़ी खबर: खाई में गिरा पोकलैंड वाहन । एक घायल
    • बड़ी खबर : यहां मेडिकल छात्रों से फिर हुई रैगिंग। कॉलेज प्रशासन ने लिया सख्त एक्शन
    • एक्सक्लूसिव खुलासा : अफसर जी-20 में व्यस्त , माफिया खनन में मस्त । सुने ऑडियो, देखें वीडियो

    Category

    • उत्तराखंड
    • पर्वतजन
    • मौसम
    • वेल्थ
    • सरकारी नौकरी
    • हेल्थ
    • Contact
    • Privacy Policy
    • Terms and Conditions

    © Parvatjan All rights reserved. Developed by Ashwani Rajput

    No Result
    View All Result
    • Home
    • उत्तराखंड
    • सरकारी नौकरी
    • वेल्थ
    • हेल्थ
    • मौसम
    • ऑटो
    • टेक
    • मेक मनी
    • संपर्क करें

    © Parvatjan All rights reserved. Developed by Ashwani Rajput

    error: Content is protected !!