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‘टै्किंग की राह का रोड़ा बना ईको टैक्स!’

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ईको टैक्स के नाम पर की जा रही है मनमाने तरीके से वसूली

विनोद कोठियाल

साहसिक पर्यटन के लिए यदि कोई पर्यटक आता है और उत्तराखंड की हिमालय श्रंृखलाओं का दीदार करना चाहता है तो उसे वन विभाग द्वारा लगाये गये भारी भरकम टैक्सों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में आने वाला पर्यटक यहां आने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाता। यही कारण है कि प्रदेश में अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों और सुदूर इलाकों मे पर्यटन नहीं पहुंच पाया है। जिससे पलायन को बढ़ावा मिला है, जबकि इसके ठीक विपरीत पड़ोसी राज्य हिमाचल में इको टैक्स के रूप में ली जाने वाली धनराशि उत्तराखंड की तुलना मे काफी कम है। इसी कारण वहां फिल्मों की शूटिंग और ट्रैकिंग जैसे साहसिक पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है।
घपले घोटालों के लिए विख्यात वन विभाग हमेशा से ही अपने अलग अलग कारनामों के लिए चर्चाओं में बना रहता है। इसी कड़ी में एक घटना यह है कि इको टैक्स के नाम पर वन विभाग के पैसे वसूली के मानक अलग-अलग है। कोई नीति-रीति नहीं है, जिस व्यक्ति से जितना मर्जी वसूल किया जा रहा है। स्थानीय पर्यटकों और कैम्पिग साइड चलाने वाले ऑपरेटरों का इस संबंध में कहना है कि इको टैक्स के नाम पर दी जाने वाली रसीद मे धनराशि कुछ और होती है और कार्बन हटा कर कुछ और कर दी जाती है। इस प्रकार से घटना को अंजाम दिया जाता है।
इसका एक प्रमाण रसीदों मे साफ दिखायी देता है। माह मई 2016 में एक ही स्थान के लिए अलग अलग लोगों से अलग-अलग धनराशि वसूली गई। इससे प्रतीत होता है कि इसमें कोई कायदा कानून मायने नहीं रखता। एक दिन के लिए जाने वाले पर्यटक से अपने मनमाने तरीके से पैसा वसूला जाता है, जबकि बाहर से बड़ी-बड़ी कंपनियां, जो बुग्यालों में ट्रैकिंग व कैम्पिंग कराती है, उनसे मिलने वाली धनराशि का वन विभाग के पास कोई लेखा-जोखा नहीं होता जैसे रूप कुण्ड ट्रैक पर कुछ कम्पनी लगभग दो माह तक लगातार अपने दर्जनों टैन्ट अलग अलग पड़ावों पर जैसे वेदनी बुग्याल में, भगवाबासा में तथा पातर नचौनिया आदि स्थानों में लगा कर रखते हंै, जो कि एक दो न होकर बड़ी-बड़ी टेंट कालोनी बनायी जाती है और महीनों तक पर्यटकों का संचालन करती है, परंतु इन कैंपों को इको शुल्क का लेखा-जोखा वन विभाग के पास नहीं मिलेगा। वन विभाग अपने अंधे-कानून को चलाने में लगा है, जिसका उपयोग केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के अलावा और कुछ भी नहीं है।
३ मई २०१६ को कुंदन सिंह वेदनी अपने ग्रुप के साथ जाते हैं तो उन्हें पांच लोगों के लिए रहना, घोड़ा, एंट्री फीस आदि सब मिलाकर कुल 1275 रुपए का भुगतान किया गया, जबकि इसी रसीद संख्या 1086 में कुल धनराशि का योग 1375 व प्राप्ति में 1175 दर्शाया गया है।
इस तिथि में कुंदन सिंह से कैंपिंग साइड फीस के नाम पर १०० रुपया प्रति कैंप प्रति नाइट वसूला गया, जबकि इससे पहले कुंदन सिंह से ५.१०.२०१५ को वेदनी जाने हेतु रसीद नंबर १०१७ से कैंप लगाने के लिए रुपए ४०० वसूला गया था। मई २०१६ में एक अन्य पर्यटक सारंग द्वारा कैंप साइड के नाम से लिए जाने वाला शुल्क रसीद नंबर ११२७ द्वारा प्रति कैंप रुपए २०० प्रति नाइट वसूला गया, जबकि जून २०१६ में एल्पाइन एडवेंचर ग्रुप के पर्यटकों से फिर कैंपिंग साइड के लिए रसीद नंबर १२०५ द्वारा प्रति कैंप रुपए ४०० वसूला गया।
१८.०७.२०१६ को ए. बालान जोशीमठ घूमने गए। जिसमें पांच सदस्य थे। जिनसे रुपए मात्र ८० ही फीस ली गई, जबकि १७.०८.२०१६ को अर्चना शाह जब इसी स्थान पर अपने ग्रुप के साथ घूमने जाती है तो उसे प्रति व्यक्ति १५० रुपए प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क लिया जाता है।
कुल मिलाकर पांच सदस्यों का प्रवेश शुल्क १५० की दर से ७५० व अतिरिक्त ४५० की भी वसूली की जाती है। इस वसूली में कोई नियम कानून नाम की चीज नहीं है। विभाग की जिससे जितनी मर्जी आती है, उससे उतना पैसा वसूला जा रहा है।
जिला चमोली ही नहीं, उत्तरकाशी और देहरादून जनपद के हरकीदून में भी वन विभाग की ऐसी अवैध वसूली चल रही है। १०.०५.२०१५ से १२.०५.२०१५ तक पर्यटक विलप कुमार व अतुल कुमार अलग-अलग ग्रुपों में हरकीदून घूमने गए। जिनसे रुपए १५० प्रति व्यक्ति ११ व्यक्तियों का कुल २५५० रुपए रसीद संख्या ३३ व ३४ द्वारा वसूला गया, जबकि १९.०५.२०१५ से २१.०५.२०१५ तक पर्यटक धीरज देसाई, जो कि सात लोग थे, से रुपए १५० प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क व १८७ रुपए अतिरिक्त शुल्क वसूला गया। विभाग खुद भी यह बताने में सक्षम नहीं है कि अलग-अलग पर्यटकों से अलग-अलग कीमत वसूले जाने का क्या कारण है।
इस संबंध में अल्मोड़ा निवासी मोहित गुप्ता द्वारा आरटीआई में जानकारी मांगी गई तो विभाग द्वारा कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। सूचना आयोग ने भी इस मामले को काफी गंभीरता से लिया और कार्यवाही का सुझाव दिया।

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