तीन साल में किसानों की आय दोगुनी करने के मिशन पर काम करते हुए पशुपालन, डेरी तथा पर्यटन सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम ने नस्ल सुधार से लेकर दूध के अधिक से अधिक दाम प्राप्त करने के लिए समयबद्ध रणनीति तैयार की है
पर्वतजन ब्यूरो
नौकरशाहों की काबिलियत इसी में होती है कि मिट्टी में भी हाथ डाल दें तो उसे भी सोना बना लें। आर. मीनाक्षी सुंदरम चंद ऐसे ही नौकरशाहों में शुमार हैं। उन्होंने प्रगतिशील कार्यशैली के द्वारा देहरादून में रियल एस्टेट सेक्टर को नई ऊंचाइयां दी और एमडीडीए को भी नक्शे पास करने वाली छवि से बाहर निकालकर निजी रियल एस्टेट सेक्टर की प्रतिस्पद्र्धा में ला खड़ा किया।
नई सरकार के शपथ ग्रहण के साथ ही हुए नौकरशाही के फेरबदल में उनसे आवास और एमडीडीए जैसे विभाग हटाकर पशुपालन और मत्स्य जैसे महत्वहीन समझे जाने वाले विभाग थमा दिए गए, किंतु मीनाक्षी सुंदरम ने इन्हीं महत्वहीन समझे जाने वाले विभागों में तमाम योजनाओं की शुरुआत करके यह साबित कर दिया कि पशुपालन ही उत्तराखंड की आर्थिक मजबूती का मूल आधार है। उन्होंने तीन साल में किसान की आमदनी को दोगुना करने का न सिर्फ लक्ष्य तय किया, बल्कि इसके लिए समयबद्ध कार्य योजनाएं बनाने के साथ-साथ केंद्र से योजनाओं को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए अच्छा-खासा बजट जारी करने के लिए केंद्र सरकार को भी मना लिया।
अपनी योजनाओं के सफल संचालन के लिए उन्होंने केंद्र सरकार के अफसरों और मंत्रियों को एक साथ साधने की नीति पर काम किया।
उनकी दिलचस्प रणनीति का एक उदाहरण देखिए कि पिछले दिनों नैनीताल के प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान में पशुपालन और डेरी व्यवसाय से जुड़े देश के तमाम अफसरों के साथ एक बड़ी मीटिंग का आयोजन किया गया था। इसमें केंद्रीय कृषि सचिव दीपेंद्र चौधरी भी आए हुए थे। दो दिवसीय इस बैठक में कृषि सचिव को पहले दिन की बैठक में भागीदारी के दौरान ही किसी आवश्यक कार्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली बुला लिया। केंद्रीय सचिव ने अगले दिन की बैठक में शामिल न हो पाने के प्रति अफसोस जाहिर करते हुए वापस लौटने की बात कही तो सुंदरम आगे आए और उनसे आग्रह किया कि पूरे देश के अफसरों के साथ होने वाली उनकी यह मीटिंग बेहद जरूरी है तथा उन्होंने केंद्रीय सचिव के लिए हैलीकॉप्टर की व्यवस्था करते हुए अनुरोध किया कि वह यदि दिल्ली की मुलाकात संपन्न करके अगले दिन वाली बैठक में भागीदारी कर सकें तो सौभाग्य होगा। उत्तराखंड के पशुपालन सचिव की तत्परता, व्यवस्था और आग्रह से केंद्रीय सचिव इतने खुश हुए कि उन्होंने वायदा किया कि उत्तराखंड से जो भी प्रस्ताव आएगा, वह उन्हें तुरंत स्वीकृत कर देंगे।
सुंदरम की सफलता को देखते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने दो माह में ही खुश होकर पर्यटन सीजन की चुनौतियों को देखते हुए उन्हें पर्यटन व्यवस्था को सफलतापूर्वक संचालित करने की पूरी जिम्मेदारी सौंप दी।
यह तो हुई सचिव सुंदरम की तत्परता और इच्छाशक्ति की बात। आइए देखते हैं उन्होंने पशुपालन और दुग्ध व्यवसाय से तीन साल में आय दोगुना करने के लिए क्या रणनीति तैयार की है।
नस्ल-सुधार का अभियान
सबसे पहले सुंदरम ने पता किया कि राज्य में वर्तमान में १६ लाख मीट्रिक टन दुग्ध उत्पादन होता है। इसके लिए उन्होंने पशुओं की नस्ल सुधार की योजना बनाई और कृत्रिम गर्भाधान को बढ़ावा देने के लिए पशु चिकित्सकों का बाकायदा टारगेट फिक्स कर दिया। उनके लिए दंड तथा प्रोत्साहन भी तय कर लिए। मादा भ्रूण तैयार करने के लिए उन्होंने सेक्स्ड इंसैमिनेशन की तकनीकि इस्तेमाल करने की तकनीकि पर काम किया। जिससे ८० से ८५ प्रतिशत तक गाय तैयार हो सकें।
पहाड़ों में परिवहन की व्यवस्था बनाने के लिए उन्होंने ६०० मोटरसाइकिलों का प्रस्ताव भी तैयार किया, ताकि पशुपालकों तक तत्काल कृत्रिम गर्भाधान की सामग्री तथा दवा आदि पहुंचाई जा सके। केंद्रीय मंत्री ने इस पर अपनी सहमति भी दे दी है। इसके अलावा पशुओं में होने वाली खुरपका और मुंहपका जैसी बीमारियों से उत्तराखंड को बिल्कुल मुक्त करने का अभियान भी उन्होंने शुरू कर दिया है। कृत्रिम गर्भाधान के अलावा उत्तराखंड के ऊंचाई वाले भागों के लिए सुंदरम ने बद्री गाय की प्राकृतिक रूप से नस्ल सुधार की भी योजना तैयार की है। इसके अंतर्गत विभागीय देखरेख में स्वस्थ बद्री गाय से स्वस्थ नर भ्रूण तैयार करके प्राकृतिक गर्भाधान तकनीकि के द्वारा नस्ल सुधार किया जा रहा है।
ऐसे बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन
यह तो रही नस्ल सुधारने की बात। पशुपालकों को दुग्ध उत्पादन और दूध के रेट बढ़ाने के लिए भी उन्होंने कुछ योजनाएं तैयार की। वर्तमान में डेरी विभाग ८ प्रतिशत ही दूध खरीद पा रहा है। पहाड़ में चिलिंग सेंटर के भारी-भरकम खर्चों को देखते हुए श्री सुंदरम ने चिल्ड केन और दूध ले जाने के लिए चिलिंग सिस्टम वाली गाड़ी प्रयोग करने की योजना बनाई है, ताकि कम खर्चे में अधिक से अधिक जगहों से दूध एकत्र किया जा सके और वह जल्दी खराब भी न हो।
इसके अलावा बाजार में नवजात बच्चों के लिए गाय के दूध की आवश्यकता को भी उन्होंने पहचाना। पहाड़ी मूल की गायों में बीटाकेसिन प्रोटीन पाया जाता है, जिसे नवजात शिशु आसानी से पचा सकते हैं। जबकि क्रॉस ब्रीड गाय का दूध बच्चे ठीक से नहीं पचा पाते। डा. सुंदरम ने मूल नस्ल की गाय के दूध को अलग पैकिंग और लगभग ३० प्रतिशत अधिक कीमत पर बेचने के लिए रणनीति बनाई है। इससे पहाड़ के पशुपालकों को अधिक से अधिक दाम मिल सकेगा। इसके सर्टिफिकेशन के लिए एनबीएजीआर नामक केंद्रीय एजेंसी से वार्ता भी चल रही है।
सुंदरम किसानों के फायदे के लिए ‘कोऑपरेट -कारपोरेट टाइअप’ के लिए भी तैयारी कर रहे हैं, ताकि कारपोरेट की ब्रांडिंग और दुग्ध समितियों की पहुंच को एक साथ जोड़ते हुए अधिक से अधिक दूध की खरीद बिक्री-बढ़ाई जा सके। यदि वाकई तीन साल में पशुपालकों की आय दोगुनी होती है तो यह एक नई क्रांति की तरह होगा।