जगमोहन रौतेला
अपने बयान में अप्रत्यक्ष रुप से दुराचार जैसे अपराधों में जेल की सलाखों के पीछे जा रहे कथित संतों व बाबाओं के प्रति सहानुभूति दिखाने और उन्हें एक षडयंत्र के तहत फँसाने का आरोप लगाने के कारण अखिल भारतीय आखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेन्द्र गिरी विवादों में फँस गए हैं . अमर उजाला में 4 अक्टूबर 2017 को प्रकाशित एक बयान में नरेन्द्र गिरी ने कहा कि संतों , महन्तों व बाबाओं को किसी भी महिला के साथ अकेले में मुलाकात नहीं करनी चाहिए . न किसी अकेली महिला को किसी भी स्थिति में अपने आश्रम व अखाड़े में रुकने देना चाहिए . उन्होंने कहा कि एक सुनियोजित तरीके से सनातन धर्म को नुकसान पहुँचाने के लिए ही विभिन्न संतों व बाबाओं को कई तरह के अपराधों में फँसा कर जेल भेजा जा रहा है .
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष नरेन्द्र गिरी ने कहा कि विदेशी ताकतों के इशारे पर संतों को एक षडयंत्र के तहत निशाना बनाया जा रहा है . संतों पर आरोपों के बारे में सरकार व प्रशासन को चाहिए कि गिरफ्तारी से पहले मामले की निष्पक्ष जॉच होनी चाहिए .जब वे दोषी हों , तभी गिरफ्तारी होनी चाहिए . उन्होंने कहा कि संत समाज नारी शक्ति का पूरा सम्मान करता है , लेकिन आजकल देश में ऐसा गिरोह सक्रिय है जो महिलाओं को मोहरा बनाकर मठ , मंदिरों , आश्रमों में कब्जा करने की नियत से संतों , महंतों पर गम्भीर आरोप लगा रहे हैं .
श्रीमहंत गिरी का यह बयान अप्रत्यक्ष तौर पर पिछले कुछ दिनों में दुराचार जैसे गम्भीर अपराधों में जेल की सलाखों में गए कथित बाबाओं व संतों का ही बचाव एक तरह से करता है . अन्यथा गिरी ने इस तरह का बयान क्यों दिया ? पिछले दिनों ऐसा तो कोई मामला सामने नहीं आया जिसमें किसी महिला ने बेवजह किसी कथित संत व बाबा पर गम्भीर आरोप लगाए हों ! गुरमीत राम रहीम , आशाराम बापू , फलाहारी बाबा जैसे जो भी कथित संत पिछले दिनों जेल भेजे गए वे जॉच के बाद ही भेजे गए हैं . राम रहीम को तो बकायदा अदालत द्वारा दुराचार के दो मामलों में 20 – 20 साल की सजा सुनाए जाने के बाद ही जेल भेजा गया है . किसी के खिलाफ पुलिस तभी कार्यवाही करती है , जब वह अपनी जॉच में आरोपों को सही पाती है .
इसके बाद भी नरेन्द्र गिरी ने यह क्यों कहा कि ” जॉच ” के बाद कार्यवाही हो ? ऐसा कहने के पीछे उनकी मंशा क्या है ? वे किस तरह की जॉच में विश्वास करते हैं ? और क्या कथित संत व महंत किसी भी कानूनी प्रक्रिया से ऊपर होते हैं ? या उन्हें कथित संत व महंत होने के कारण किसी भी तरह के आपराधिक मामलों में जॉच में छूट मिलनी चाहिए ? अगर अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष की मंशा कुछ इसी तरह की है तो वे ऐसा क्यों चाहते हैं ? वह भी तब जब गुरमीत राम रहीम के दुराचार में दोषी पाए जाने पर अदालत ने उन्हें सजा सुनाई थी तो उसके बाद अखाड़ा परिषद ने अपनी एक आपात बैठक के बाद देश के कुछ फर्जी संतों , बाबाओं की एक सूची जारी की थी .
उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने गत 10 सितम्बर 2017 को देश के 14 फर्जी बाबाओं की सूची जारी की थी। इलाहाबाद में हुई परिषद की कार्यकारिणी की बैठक के बाद इन बाबाओं की सूची जारी की गई। उस सूची में आसाराम उर्फ आशुमल शिरमानी , सुखविंदर कौर उर्फ राधे मॉ , सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता , गुरमीत राम रहीम ( डेरा सच्चा – सिरसा ) , ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा , निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह , इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी , स्वामी असीमानंद , ऊं नम: शिवाय बाबा , नारायण साईं , रामपाल , खुशी मुनि , बृहस्पति गिरि और मलकान गिरि के नाम शामिल थे .
बाघंबरी मठ ( इलाहाबाद ) में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की विशेष बैठक में 13 अखाड़े शामिल थे। इस बैठक में फर्जी बाबाओं के सामूहिक बहिष्कार का भी फैसला किया गया। बैठक के बाद अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने कहा , “ काफी दिनों से फर्जी बाबाओं के द्वारा दुष्कर्म, शोषण और देश की भोली-भाली जनता को ठगने की खबरें आती रही हैं। फर्जी धर्मगुरुओं से सनातन धर्म के स्वरूप को काफी नुकसान पहुँचा है। कई बाबाओं के खिलाफ देश की अदालतें भी फैसला दे चुकी हैं। ऐसे में सनातन धर्म और संत समाज की बदनामी हो रही है , इसलिए परिषद ने ये फैसला लिया है कि वह स्वयं फर्जी बाबाओं की सूची जारी कर दे , ताकि जनता उनसे सचेत रहे।”
उन्होंने बताया था कि हम फर्जी धर्मगुरुओं की सूची बनाकर उसे केंद्र व सभी राज्य सरकारों, चारों पीठ के शंकराचार्य व 13 अखाड़ों के पीठाधीश्वरों को भेजकर सामूहिक बहिष्कार करेंगे। गिरी ने बताया था कि सूची में शामिल फर्जी बाबाओं को कुंभ, अर्धकुंभ और अन्य धार्मिक मेलों में सरकारी सुविधा न मिले, यह पहल भी होगी। उसके बाद सूची में आसाराम बापू का नाम होने पर उनके समर्थकों ने महंत नरेंद्र गिरी को फोन पर जान से मारने की धमकी भी दी थी, जिस पर महंत नरेंद्र गिरी ने हरिद्वार के एसएसपी से मिलकर एफआईआर भी दर्ज कराई थी .
सूची जारी होने के पॉच दिन बाद ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता और श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के कोठारी महंत मोहनदास रहस्यमय परिस्थितियों में लापता हो गए। कथित फर्जी संतों की सूची जारी करवाने में महंत मोहनदास की बड़ी भूमिका थी . वह 15 सितम्बर 2017 को देर रात लोकमान्य तिलक ट्रेन में हरिद्वार से मुम्बई के लिए रवाना हुए थे। पर वे आधे रास्ते में ही ट्रेन से गायब हो गए . ट्रेन की जिस बोगी में महंत मोहनदास सफर कर रहे थे , उसमें उनका सामान मिला । पर उनके पास हमेशा रहने वाला एक छोटा बैग नहीं नजर आया। हरिद्वार पुलिस ने दिल्ली पुलिस से इस बारे में संपर्क साधा। जॉच के लिए पुलिस की एक टीम दिल्ली रवाना भी की गई ।
बताया जा रहा कि कोठारी महंत मोहनदास इलाज के लिए मुम्बई जा रहे थे। 15 सितम्बर को लोकमान्य तिलक ट्रेन में उनका रिजर्वेशन था। ट्रेन कई घंटे लेट होने से देर रात 1:55 बजे हरिद्वार से रवाना हुई थी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अनुसार , ट्रेन के भोपाल पहुँचने पर जब एक सेवक महंत मोहनदास को भोजन देने केबिन में पहुँचा तो महंत सीट पर नहीं मिले। श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के मुंशी अनिल कुमार ने बताया कि 16 सितम्बर 2017 को रात 7 बजकर 45 मिनट पर महंत मोहनदास के गायब होने की सूचना फोन से मिली। पुलिस जॉच में ट्रेन में उनके आसपास बैठे यात्रियों ने बताया है कि दिल्ली स्थित निजामुदीन स्टेशन के बाद से उनको ट्रेन में नहीं देखा गया।
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरी ने तब कहा था कि दीपावली के बाद अखाड़ा परिषद् फर्जी संतों की एक दूसरी सूची जारी करने वाला था , लेकिन मुझे और महंत मोहनदास को धमकी भरे फोन आने लगे। हो सकता है महंत मोहनदास के गायब होने में कथित संतों का हाथ हो। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष नरेन्द्र गिरी के बदले हुए बोल के पीछे कहीं उन्हें दी गई धमकी और महंत मोहनदास के गायब होने का दबाव तो नहीं है ? उल्लेखनीय है कि बीस दिन बाद भी 4 अक्टूबर 2017 तक महंत मोहनदास का कोई पता नहीं लगा है . अन्यथा जिन लोगों के काले कारनामों के बाद अखाड़ा परिषद ने उनके बहिष्कार की घोषणा की और उन्हें फर्जी संत करार दिया , अब अप्रत्यक्ष तौर पर उनका बचाव क्यों किया जा रहा है ?