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राज्यपाल की “सहर्ष स्वीकृतियों” से पब्लिक परेशान !

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तीन महीने मे ही उत्तरकाशी जिला अस्पताल से फिजीशियन का ट्रान्सफर! 
पहाड़ के डॉक्टर्स  को ही रास नहीं आ रहे पहाड़ के अस्पताल।
सुविधाओं की कमी खल रही या मैदानों की भारी-भरकम प्रैक्टिस?
गिरीश गैरोला/ उत्तरकाशी
उत्तरकाशी जिला अस्पताल मे तीन महीने के अंदर ही फिजीशियन डॉ जगदीश ध्यानी का तबादला कर दिया गया है।गौरतलब है कि पूर्व मे इनके प्रतिस्थानी डाक्टर रौतेला उत्तरकाशी से जाना नहीं चाहते थे फिर भी उन्हे ट्रान्सफर कर डॉ ध्यानी को उत्तरकाशी भेजा तो गया किन्तु तीन महीनों मे ही फिर से ट्रान्सफर के आदेश पर अब कई प्रकार की चर्चा होने लगी है। दरअसल ध्यानी पहले कोटद्वार में ही तैनात थे और उन्होंने कोटद्वार छोड़ने से मना कर दिया था। ट्रांसफर होने की स्थिति में उन्होंने वी आर एस लेने तक की चेतावनी दी थी। उस दौरान ध्यानी को कोटद्वार में ही रोक के रखने के लिए कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने शासन पर बहुत दबाव भी बनाया था। किंतु उनकी एक भी नहीं चली। आखिरकार उन्हें ट्रांसफर पर उत्तरकाशी जाना पड़ा। किंतु 3 महीने के अंदर ही उनके वापस कोटद्वार भेजे जाने के आदेश हो गए हैं। आखिर यह क्या मजाक है कि पहले डॉक्टर ध्यानी को कोटद्वार से उत्तरकाशी भेजे जाने के लिए राज्यपाल की सहर्ष स्वीकृति हुई और 3 महीने के अंदर-अंदर ही डॉक्टर ध्यानी को वापस कोटद्वार भेजे जाने के लिए राज्यपाल की सहर्ष स्वीकृति हो गई है। आखिर राज्यपाल की सहर्ष स्वीकृति का क्या पैमाना है! क्या राज्यपाल की सहर्ष किस में है अथवा किस में नहीं, इसके लिए राज्यपाल की भी स्वीकृति अथवा संज्ञान मे यह मामला लाया भी जाता है कि नहीं। राज्य के प्रथम पुरुष राज्यपाल आखिर कैसे इस तरह के विवेकहीन स्थानांतरण को सहर्ष स्वीकृति दे सकते हैं। इससे एक ओर तो कोटद्वार की जनता परेशान है तो दूसरी ओर उत्तरकाशी के लोग भी खासी दिक्कत में है डॉक्टर ध्यानी आजकल अवकाश पर हैं।
तीन महीने मे ही जिला अस्पताल से फिजीशियन के ट्रान्सफर के बाद चर्चा हो रही है कि आखिर क्यों पहाड़ के डॉक्टर ही पहाड़ों मे सेवा देने से कतराने लगे हैं ?
क्या वेतन भत्तों मे कोई कमी है? अथवा उन्हे उचित सुविधाओं का अभाव महसूस हो रहा है ? ट्रान्सफर न मिलने पर वीआरएस लेने को आतुर डॉक्टर की  मनोस्थिति को समझे बिना इस समस्या का स्थाई समाधान संभव नहीं लगता।
नयी सरकार के गठन के बाद सीमांत जनपद उत्तरकाशी के जिला अस्पताल मे सीटी स्कैन की आधुनिक मशीन के साथ जरूरी डॉक्टर की तैनाती के साथ आम लोगों को बेहतर स्वास्थ्य की उम्मीद अब टूटती नजर आ रही है।
प्रभारी सीएमएस डॉक्टर शिव कुडियाल ने बताया कि जिला अस्पताल मे सीटी स्कैन के प्रतिदिन 8 से 10 केस आ रहे हैं, जिनमे बीमार और घायलों को गंभीर बीमारी मे राहत मिल रही है। रिपोर्ट आने के बाद जरूरत के मुताबिक इलाज के लिए फिजीशियन और सर्जन का होना जरूरी है अन्यथा सीटी स्कैन मशीन की  उपयोगिता कैसे साबित हो सकेगी ? उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों से पहाडी पृष्ठभूमि के डॉक्टर्स  ही मुंह मोड़ने लगे हैं ।
 सूत्रों की मानें तो फिजीशियन डॉक्टर जगदीश ध्यानी ने ट्रान्सफर न होने पर वीआरएस लेने की धमकी दी थी।
डॉक्टरों के उत्तरकाशी छोड़ने की आतुरता का अंदाज इसी बात  लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य मंत्री से हरी झंडी नहीं मिलने पर राजभवन से डॉक्टर ध्यानी के तबादले की संस्तुति मिली है।
उत्तरकाशी जिला अस्पताल मे तैनात ईएनटी सर्जन डॉ विजय ढौंडियाल पूर्व मे ही नौकरी छोड़ने की मनसा से लंबी छुट्टी पर जा चुके हैं।
 जानकारी मिली कि उन्हे स्वास्थ्य विभाग ने रहने के लिए आवास तक नहीं दिया गया था और वे बाजार मे कहीं रहकर परेशान हो  गए थे। लंबे समय से पहाड़ों मे सेवा दे रहे सर्जन डॉ अश्वनी चौबे और एनेस्थेसीयन डॉ संजीव कटारिया का भी ट्रान्सफर किच्छा कर दिया गया है। सीएमएस डॉ शिव कुड़ियाल ने बताया कि फिलहाल सर्जन के पद पर डॉ एसडी सकलानी और एनेस्थीसियन के पद पर डॉ विभूति भूषण तैनात हैं। किन्तु कब इनके लिए भी बड़े ऑफिस से फरमान निकल जाए, कहा नहीं जा सकता। उन्होने कहा है कि फिलहाल डीएम के निर्देश पर प्रतिस्थानी के आने तक डॉक्टर ध्यानी को रिलीव नहीं किया जाएगा।
 जानकारों की माने तो सेना के जवानों की तैनाती की तर्ज पर आवश्यक सेवा मानते हुए डॉक्टर्स की तैनाती के साथ उनके खाने-रहने और अन्य सुविधाओं पर मंथन करना जरूरी होगा। अन्यथा अपनी जवानी के महत्वपूर्ण वर्ष पढ़ाई मे ही गुजार देने वाले डॉक्टर्स को महज भारी वेतन भत्तों के सहारे पहाड़ों मे रोक कर रखना संभव नहीं हो सकेगा।
बताते चलें कि सेना के ऑफिसर को दुर्गम मे तैनाती के समय इस बात की कोई चिंता नहीं होती कि उनका परिवार और बच्चे कहा रहेंगे और कहां पढ़ेंगे क्योंकि इसकी पूरी ज़िम्मेदारी सरकार अपने ऊपर लेती है। इसके लिए यात्रा काल की व्यवस्था की तर्ज पर रोटेशन मे डॉक्टर्स की तैनाती भी बेहतर विकल्प साबित हो सकती है। बशर्ते उन्हे निश्चित समय के बाद वापसी का भरोसा मिले।   किन्तु स्वास्थ्य विभाग मे ऊपरी स्तर पर हालत इतने बुरे हैं कि एक बार जो पहाड़ी दुर्गम अस्पताल मे चला जाता है, उसे वापस बुलाने की फिर कोई सुध नहीं लेता है। लिहाजा कोई भी इस झांसे मे आना ही नहीं चाहता और मैदान के आसपास ही नौकरी का जुगाड़ तलाश लेता है ताकि बड़े ऑफिस तक लाईजनिंग भी बनी रहे।
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