आकाश नागर
उत्तराखण्ड में राजस्व के दो बड़े स्रोत शराब और खनन हैंं। सरकारी खजाने में सबसे ज्यादा रकम देने वाले इन दोनों ही स्रोतों के जरिए कालाधन पैदा होता है। इस पैदावार के हिस्सेदार होते हैं राजनेता, नौकरशाह और खनन कारोबारी। वैध के साथ बड़े पैमाने पर अवैध खनन से मां गंगा तक नहीं बच सकी है। धर्म और आस्था अपनी जगह है, अवैध कमाई अपनी जगह। इस बार वर्ष 2016 में राज्य की नदियों में आने वाली बाढ़ से प्रभावित इलाकों को बचाने के लिए बनी रिवर ट्रेनिंग नीति की आड़ में जिला ऊधमसिंह नगर प्रशासन और खनन कारोबारियों के द्वारा की गई अवैध खनन की लूट को सामने रख रहा है। निश्चित ही इस लूट में जिले के आला अफसर और नेताओं की सहभागिता है, अन्यथा खुलेआम हो रहे इस अवैध खनन को यूं नहीं होने दिया जाता। यह खोजी रिपोर्ट एक बार फिर स्थापित करती है कि नौकरशाह, राजनेता और कारोबारी की नापाक तिकड़ी देवभूमि को लूटने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैैै।
क्या होता है खनन धरती से धातुओं, अयस्कों, औद्योगिक एवं अन्य उपयोगी खनिजों को निकालना खनिकर्म या खनन है। उत्तराखण्ड में मुख्य नहरों, नदियों आदि में उपखनिजों (आरबीएम) के चुगान की व्यवस्था है। राज्य में खनन दो तरीके से होता है। एक पट्टों के जरिए दूसरा डी-सिल्टिंग यानी नदी आदि की ऊपरी सतह पर जमा सिल्ट को हटाना। पट्टों को लेने के लिए नेताओं से सिफारिश करवानी पड़ती है। नेता पट्टों का उद्घाटन भी करते हैं। पहले पट्टे छह महीने के लिए होते थे, लेकिन अब सरकार इन्हें पांच साल के लिए देने की योजना बना रही है। उत्तराखण्ड की नई खनन नीति में यह प्रस्तावित है। पट्टों की आड़ में अवैध खनन किया जाता है। वैज्ञानिक तरीके से अगर खनन किया जाए तो वह सिर्फ एक से तीन फीट गहराई तक ही किया जा सकता है, लेकिन खनन माफिया 10 से 15 फीट तक गहरे गड्ढे कर देते हैं। खनन पट्टे अक्सर नदियों के किनारे और किसानों के उन खेतों में दिए जाते हैं जहां नहर, नदी आदि से बरसात के मौसम में उप खनिज बहकर आ जाते हैं। किसान अपने खेतों में जमा सिल्ट हटवाने की प्रशासन से मांग करते हैं। उसके बाद प्रशासनिक टीम मौके पर पहुंचकर निरीक्षण करती है। स्थानीय निरीक्षण में जब यह बात सिद्ध हो जाती है तो किसानों के खेतों में भी पट्टे करा दिए जाते हैंं, लेकिन इन पट्टों की आड़ में खनन माफिया नदियों और खेतों में जेसीबी और पोकलेंड मशीनें लेकर उतर जाते हैं। नदियों और खेतों को छलनी कर अंधाधुंध मात्रा में उपखनिज निकाल लेते हैं। कोई भी पट्टा एक तयशुदा समय के लिए किया जाता है। मसलन जून से सितंबर तक खनन बंद होता है। लेकिन इसके बावजूद अंधेरे में पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से अंधाधुंध खनन होता है। इसे अवैध खनन के दायरे में लाया जाता है।
स्पेशल माइनिंग विजिलेंस फोर्स इस फोर्स का गठन अवैध खनन पर रोक लगाने के मकसद से किया गया है। 9 अक्टूरबर 2013 को जब इस फोर्स का गठन हुआ तो उत्तराखण्ड देश का पहला ऐसा राज्य बना जहां अवैध खनन को रोकने के लिए अलग से विशेष दल का गठन किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने फोर्स के प्रमुख पद पर डीआईजी स्तर के अधिकारी संजय गुंज्याल को नियुक्त किया था। इसके तहत जिन स्थानों को खनन के लिए स्वीकøत किया जाना था वहां पर कैमरे लगाए जाने थे। पूरी जिम्मेदारी पुलिस विभाग की तय की गई थी, जबकि इसका सारा खर्च खनन विभाग के जिम्मे डाला गया था। कुछ दिन तक तो फोर्स ने सही काम किया। लेकिन बाद में इसको लेकर सवाल खड़े होने लगे। खासकर उस समय जब इसके अधिकारी अपने कार्य क्षेत्र से बाहर जाकर काम करने लगे थे। सफेद सोने का काला कारोबार उत्तराखण्ड में अवैध खनन का कारोबार खनन माफिया, राजनेताओं और नौकरशाहों के लिए सफेद सोना साबित हो रहा है। इस कारोबार में ये तमाम लोग रातोंरात मालामाल हो गए। इनकी तिकड़ी के कारण राज्य सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि होती रही है। खनन के पट्टों की स्थिति उत्तराखण्ड में शराब के बाद खनन राजस्व का दूसरा बड़ा माध्यम है। लेकिन लचर खनन नीति और बड़े पैमाने पर राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते खनन का विवादों से नाता भी बना रहा है। इससे निपटने के लिए सरकार ने इस बार ई-टेंडरिंग व्यवस्था की है। राज्य में खनिज और उपखनिज के खनन पट्टे दिए जाते हैं। उपखनिज-बालू, बजरी, बोल्डर के कुल 339 खनन पट्टे दिए जाते हैंं। इनके अलावा खनिज-सोप स्टोन के 105, मैनेसाइट के 3, लाईम स्टोन के 4, स्टोन क्रशर और स्क्रीनिंग प्लांट के 276, प्लवाईजर प्लांट के 25 खनन पट्टे दिए जाते हैं। क्या है रिवर टेªनिंग नीति 2016 वर्ष 2016 में बनाई गई इस नीति के अंतर्गत राज्य की नदियों में बाढ़ नियंत्रण एवं आपदा से बचाव के उपाय निश्चित किए गए हैं। इसमंे नदियों के प्राकøतिक प्रवाह को बनाए रखने के उद्देश्य से नदियों में जमा सिल्ट एवं आरबीएम को हटाने का कार्य किया जाना था। यह कार्य वर्षाकाल से पूर्व कराना जरूरी होता है। हाईकोर्ट में याचिका दायर पौड़ी जिले के धुमाकोट निवासी विनोद बिष्ट ने 28 जनवरी 2018 को उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि प्रदेश में 30 सितंबर 2016 से रिवर टेªनिंग पॉलिसी 2016 लागू है। इस नीति के तहत उप खनिजों के चुगान के लिए कोई पारदर्शी व्यवस्था लागू नहीं की गई है। नीति संबंधी कार्यों का पूरा दायित्व संबंधित जिलाधिकारी को दिया गया है। पारदर्शिता नहीं होने से जिलाधिकारी स्वेच्छा से कभी भी खनन की अनुमति दे सकते हैं।
याचिका में सरकार को नीति में पारदर्शिता की कमी को दूर करने तथा निश्चित प्रक्रिया के लिए प्रावधान शामिल करने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई। आखिर में कहा गया है कि बरसात में प्रदेश की छोटी नदियों, गाड-गधेरों में भारी मात्रा में बोल्डर पत्थर, सिल्ट आदि जमा हो जाते हैं। बाढ़ के खतरे से बचने के लिए बरसात से पहले इन उपखनिजों को हटाना जरूरी हो जाता है। यह काम किस तरह किया जाए यह रिवर टेªनिंग पॉलिसी में तय किया जाता है। लेकिन इन नियम-कानूनों का कोई पालन नहीं होता है। ऊधमसिंह नगर जिले में रिवर टेªनिंग नीति 2016 में जमकर खनन का खेल हुआ। इस नीति में सिंचाई विभाग द्वारा सूखी नदी से मिट्टी/सिल्ट, निकालकर बाहर रख दिया गया। इसके बाद 1700 घन मीटर मिट्टी/सिल्ट का टेंडर निकाला गया। यह टेंडर सितारगंज व्यापार मंडल अध्यक्ष संजय गोयल के नाम छोड़ा गया। टेंडर के अनुसार 17000 घन मीटर मिट्टी/सिल्ट का उठान किया जाना था। लेकिन संजय गोयल ने मिट्टी/सिल्ट उठाने की आड़ में नदी में अपनी जेसीबी और पोकलैंड मशीनें उतार दी। दिन-रात नदी में अवैध खनन होता रहा और प्रशासन सोता रहा। प्रशासन की नींद तब खुली जब सितारगंज के निवासियों ने अवैध खनन के मुद्दे पर धरना-प्रदर्शन कर सरकार के पुतले फूंके। 19 अप्रैल 2017 की मीटिंग उत्तराखण्ड रिवर टेªनिंग नीति 2016 की बाबत ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी नीरज खैरवाल ने पहली मीटिंग 19 अप्रैल 2017 को की। जिसमें पुलिस वन विभाग, सिंचाई विभाग, राजस्व विभाग, भू-वैज्ञानिक, परिवहन विभाग, खनन विभाग एवं उप जिलाधिकारी के साथ विचार-विमर्श किया गया। जिसमें जिलाधिकारी ने उक्त सभी विभागों की एक जिला खनन समिति बनाई और अधिकारियों को निर्देश दिए कि जनपदों के अंतर्गत नदियों का सर्वेक्षण कर उन्हें बताएं साथ ही जिन नदियों में आरबीएम, सिल्ट अत्यधिक मात्रा में जमा है, वहां की रिपोर्ट दें। 24, अप्रैल 2017 की मीटिंग इसमें सिंचाई विभाग द्वारा कैलाश, सूखी और बैगुल नदी में पूर्व के वर्षों में बाढ़ से पूर्व एवं बाढ़ के दौरान के फोटोग्राफ जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किए गए।
मीटिंग में फोटोग्राफ के आधार पर जोर देकर बताया गया कि उपरोक्त नदियों के दोनांे तरफ बसने वाली आबादी को वर्षाकाल के दौरान बाढ़ से गंभीर खतरा उत्पन्न होता रहा है। इसी के साथ जिलाधिकारी की अध्यक्षता में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रभागीय वनाधिकारी, उपजिलाधिकारी, भू-वैज्ञानिक, अधिशासी अभियंता सिंचाई के साथ-साथ उप निदेशक खनन एवं परिवहन विभाग के अधिकारियों के साथ नियंत्रित रीति से नदियों को चैनेलाइज करने के लिए आरबीएम, सिल्ट की निकासी हेतु बैठक की गई। जिसमें निर्णय लिया गया कि मानूसन अवधि से पूर्व चुगान कराया जाए। साथ ही चुगान कराने के लिए कुछ सुझाव भी सामने रखे गए।
26-27 अप्रैल 2017 की मीटिंग इस मीटिंग में नदियों का स्थलीय निरीक्षण, तहसील के अंतर्गत स्थानीय निवासियों, स्टोन क्रशर स्वामियों, खनन पट्टेधारकों, वाहन स्वामियों, वाहन चालकों एवं खनन व्यवसाय से जुड़े मजदूरों के साथ अवैध खनन की रोकथाम, रिवर टेªनिंग नीति 2016 के अंतर्गत आरक्षित वन क्षेत्रों एवं राजस्व क्षेत्रों में खनन कार्यों के संबंध में विचार- विमर्श किया गया। सुझाव प्राप्त किए गए। स्थानीय निवासियों एवं स्टोन क्रशर स्वामियों के द्वारा अवगत कराया गया कि वर्षाकाल में नदियों में अत्यधिक मात्रा में आरबीएम सिल्ट जमा होने के कारण पानी सड़क एवं खेतों की ओर आ जाता है। जिससे कøषि भूमि एवं सड़क का कटाव होता है। इसके साथ ही यह भी अवगत कराया गया कि नदियों में आरक्षित वन क्षेत्रों एवं राजस्व क्षेत्रों में अत्यधिक मात्रा में आरबीएम, सिल्ट जमा होने के कारण अवैध खनन की संभावना अत्यधिक है। इन क्षेत्रों से वैध खनन की अनुमति न होने के कारण चोरी-छिपे खनन माफियाओं एवं स्थानीय निवासियों द्वारा अवैध खनन किया जाता है।
3 मई 2017 को हुआ विरोध अपर जिलाधिकारी को प्रभारी अधिकारी खनन सहित तहसील सितारगंज के अंतर्गत रिवर चैनेलाइजेशन की जांच के लिए खनन समिति के साथ भेजा गया। लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। बकायदा प्रशासन को ज्ञापन भी भेजा। इसकी सूचना मिलने पर उच्च स्तरीय कमेटी की बैठक के दौरान एसएसपी ऊधमसिंह नगर ने कहा गया कि जिन व्यक्तियों द्वारा नदी चैनेलाइजेशन का विरोध किया जा रहा है वे स्थानीय व्यक्ति ही अवैध खनन की गतिविधियों में लिप्त रहते हैं। 7 मई 2017 को विधायक ने लिखा पत्र सितारगंज के विधायक सौरभ बहुगुणा द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया कि नन्धोर, कैलाश एवं सूखी नदी में बरसात के समय जबरदस्त बाढ़ आ जाने के कारण भारी कटाव होने से गांव को खतरा उत्पन्न हो जाता है, घरों में पानी घुस जाता है। सिल्ट की निकासी न किए जाने की स्थिति में बाढ़ का खतरा होने से जन-धन की हानि हो सकती है। पत्र में सिल्ट की निकासी कराए जाने का अनुरोध किया गया। चैंकाने वाली बात यह है कि सितारगंज के विधायक सौरभ बहुगुणा के खास माने जाने वाले व्यापार मंडल अध्यक्ष संजय गोयल द्वारा भी सिल्ट निकासी की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया। याद रहे कि संजय गोयल के नाम बाद में सूखी नदी की सिल्ट हटाने का टेंडर दिया गया।
यह वही संजय गोयल हैं जिन्होंने टेंडर की शर्तों का उल्लंघन करते हुए नियम-कानूनों की जमकर धज्जियां उड़ाई और अवैध खनन का खुलकर खेल खेला। करोड़ों का अवैध खनन भ्रष्टाचार के खिलाफ उत्तराखण्ड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार का जीरो टॉलरेंस का दावा खोखला साबित हो रहा है। इसे सितारगंज में बड़े स्तर पर हुए अवैध खनन से समझा जा सकता है। यहां सरकार की शह पर एक कारोबारी ने कई किलोमीटर तक सूखी नदी को बेतरतीब तरीके से खोद डाला। चैंकाने वाली बात यह है कि कारोबारी को नदी खोदने का नहीं, बल्कि सिंचाई विभाग द्वारा नदी के किनारे जमा की गई सिल्ट को उठाने का ठेका दिया गया था। लेकिन कारोबारी ने सिल्ट को उठाने के बजाय सीधे नदी में अपनी पोकलेैंड और जेसीबी मशीनें उतार दी। मशीनों ने नदी का सीना छलनी- छलनी कर दिया। सिल्ट के साथ ही उपखनिज की भारी लूट हुई। कायदे से कारोबारी को 15 दिन में सिल्ट का उठान कर लेना चाहिए था। लेकिन सिल्ट को उठाने के बजाए वह इसकी आड़ में अवैध खनन में जुट गया। इसके लिए वह कभी बरसात के नाम पर तो कभी रास्ता न मिलने की बात कह बार-बार मिट्टी उठाने का समय बढ़वाता रहा। ऐसा एक नहीं, बल्कि चार बार हुआ। इस दौरान करोड़ों की रुपये का अवैध खनन हुआ। इसका शहर के लोगों ने जमकर विरोध किया और सरकार के पुतले जलाए। जनता के आक्रोश पर पानी डालने के लिए जांच के आदेश किए गए, लेकिन जांच टीम ने मामूली सी रकम जुर्माने के तौर पर वसूलने के आदेश देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी।
आश्चर्यजनक यह है कि जिलाधिकारी ने पहली जांच रिपोर्ट पर ही दूसरी जांच कराने के आदेश दे दिए। जिसकी जांच ऊधमसिंह नगर के एडीएम कर रहे हैं। कई महीनों बाद भी दूसरी जांच रिपोर्ट नहीं आई है। सूखी नदी में हुए इस अवैध खनन की नींव 8 मई 2017 को उस समय पड़ी जब सितारगंज के विधायक सौरभ बहुगुणा के साथ ही नानकमत्ता के विधायक डॉ प्रेम सिंह राणा एक जनता दरबार में मौजूद थे। इस दौरान सभी विभागों के अधिकारी भी उपस्थित थे। सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता संजय राज द्वारा मौजूद जनमानस को बताया गया कि विगत कई वर्षों से कैलाश नदी, सूखी नदी और बेगुल नदी में आई बाढ़ से काफी सिल्ट जमा हो गयी है। जिसे हटाने के लिए विभाग द्वारा बकायदा ठेके छोड़े जाएंगे। इसकी शुरुआत सूखी नदी से की जाएगी। सिंचाई विभाग की योजना के तहत बरसात से पहले आस-पास के गांवों को बाढ़ से बचाने के लिए सूखी नदी में डी-सिल्टिंग कराई गई। इसके तहत सिंचाई विभाग ने नदी में जमा सिल्ट को निकालकर किनारों पर जमा कर दिया। सिंचाई विभाग द्वारा 29 जून 2017 को सूखी नदी से 1700 घन मीटर सिल्ट की नीलामी के निर्देश दिए गए। 15 दिन में सिल्ट हटाने के निर्देश दिए गए। इसके लिए बकायदा टेंडर किया गया। नीलामी सितारगंज निवासी संजय गोयल पुत्र पुरुषोतम गोयल के नाम से की गई। टेंडर में सिल्ट उठाने की समय सीमा 15 दिन इसलिए निर्धारित की गई थी कि उसके बाद बरसात आ जाती। सिंचाई विभाग ने संजय गोयल को सूखी नदी से 1700 घन मीटर सिल्ट उठाने का टेंडर क्या दिया कि यह उसके लिए मोटी कमाई का जरिया बन गया। महज 15 दिन में 1700 घन मीटर सिल्ट हटाने की शर्त की धज्जियां उड़ाते हुए उसने पूरे सात माह तक जमकर अवैध खनन किया।
सिल्ट उठाने के नाम पर उसने अपनी पोकलैंड और जेसीबी मशीनें सूखी नदी में उतार दीं। ये मशीनें दिन रात-नदी का सीना छलनी करती रहीं। खास बात यह है कि सिंचाई विभाग भी कभी ग्रामीणों द्वारा कारोबारी को रास्ता न दिए जाने तो कभी मानसून की बरसात की बात पर आंख मूंदकर सिल्ट उठाने की 15 दिन की अवधि को लगातार बढ़ाता रहा। इस तरह ठेकेदार ने सूखी नदी में कई किलोमीटर तक अवैध खनन किया। सिल्ट उठाने के बहाने शुरू हुआ यह ख्ेाल पूरे सात माह तक चलता रहा। मौके की जो हकीकत बताती है उसके अनुसार नदी में कई-कई किलोमीटर तक 15-15 फुट गहरे गड्ढे हो गए हैं। यह गड्ढे कुएं की तरह दिखते हैं। चैंकाने वाली बात यह है कि नदी की सिल्ट ऊपरी सतह पर थी। वहां पोकलैंड और जेसीबी द्वारा गरही खुदाई करने की कोई जरूरत नहीं थी। लेकिन इन मशीनों का इस्तेमाल कर आरबीएम (उपखनिज) का जमकर दोहन हुआ।
इस तरह सरकार को लाखों रुपए के राजस्व की हानि पहुंचाई गई। यह सिलसिला जून 2017 से लेकर जनवरी 2018 तक चलता रहा। 18 जनवरी 2018 को सितारगंज के ग्रामीणों ने इस मामले को लेकर धरना-प्रदर्शन किया तब जाकर सरकार की आंख से पट्टी हटी। आनन-फानन में ही 19 जनवरी 2018 को राजस्व, सिंचाई, वन एवं खान विभाग की मौजूदगी में जांच टीम का गठन किया गया। जांच टीम ने मौका मुआयना किया तो अवैध खनन की पुष्टि की गई। लेकिन उसे नाम मात्र का ही बताया गया। सात माह तक हुए अवैध खनन को जांच टीम ने महज 700 घन मीटर ही बताया। वह भी उपखनिज न होकर सिर्फ मिट्टी का ही खनन होना बताया गया। इस पर जांच टीम ने कारोबारी पर सिर्फ पांच लाख अठानब्बे हजार सात सौ पचास रुपए का जुर्माना तय कर इसे वसूलने की रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेज दी, जबकि जानकारों के मुताबिक सूखी नदी में कई किलोमीटर तक हुए अवैध खनन की लागत करोड़ों में है। खनन से जुड़े लोगों की मानें तो उनका कहना है कि अगर जांच टीम निष्पक्षता से जांच करती तो हकीकत में यह जुर्माना छह करोड़ से कम का नहीं होता।
जांच के आधार पर सितारगंज के उप जिलाधिकी विनोद कुमार ने संजय गोयल को सिल्ट उठाने के लिए मिली अनुमति निरस्त कर दी। एसडीएम ने अपने आदेश में लिखा कि नीलाम की कई सिल्ट/मिट्टी के उठान के साथ-साथ नदी में भी मशीन द्वारा खुदाई कर सिल्ट/मिट्टी निकालने का प्रयास किए जाने के फलस्वरूप संस्तुति के आधार पर अनुमति निरस्त की जाती है। 29 जून 2017 से 3 जनवरी 2018 तक अवैध खनन जोरों पर चला। जबकि टेंडर की शर्तों के अनुसार सिल्ट उठाने का काम 13 जुलाई 2017 को ही खत्म हो जाना था। लेकिन सरकारी मशीनरी इस तरफ से आंख मंूदे रही। इस दौरान कारोबारी संजय गुप्ता ने करीब 200 ट्रकों को लगाकर नदी में अवैध खनन करके इसे गहरे कुओंं में परिवर्तित कर दिया।
सूत्र बताते हैं कि इस अवैध खनन में 4 पोकलैंड और जेसीबी मशीनों का किराया ही 16 लाख का था। अनुमान लगाया जा सकता है कि जब मशीनों का किराया ही लाखों में था तो खनन कितने का हुआ होगा। इस मामले में कारोबारी पर प्रशासन कितना मेहरबान रहा उसका उदाहरण भी जांच टीम द्वारा उस पर लगाया गया 5 लाख अठानब्बे हजार सात सौ पचास रुपए का नाम मात्र का जुर्माना है। यह जुर्माना जांच टीम ने 700 घन मीटर मिट्टी के अवैध खनन पर लगाया है। गौर करने वाली बात यह है कि कारोबारी को जो 1700 घन मीटर सिल्ट/मिट्टी का ठेका दिया गया था उसमें से 1000 घन मीटर सिल्ट/मिट्टी मौके पर ही पड़ी रह गई। सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता बीसी नैनवाल ने बाकायदा इसकी पुष्टि की और एक बार फिर इस सिल्ट को उठाने के लिए 4 जनवरी से 16 जनवरी 2018 तक समय वृद्धि का अनुमोदन कर डाला। बावजूद इसके कि 3 जनवरी 2018 को ही सितारगंज के उप जिलाधिकारी विनोद कुमार ने अनुमति निरस्त कर दी थी। कारोबारी संजय गुप्ता को स्थानीय विधायक सौरभ बहुगुणा का करीबी बताया जाता है। शायद यही वजह रही कि वह बेखौफ होकर कई महीनों तक अवैध खनन करता रहा, लेकिन जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली सरकार के नुमांइदे इस ओर आंख बंद किए रहे।
कारोबारी संजय गुप्ता को सरकार का संरक्षण मिलना ही कहा जा सकता है कि उसने सूखी नदी को ही नहीं, बल्कि वन विभाग की जमीन को भी खनन के लिए खोद डाला। वन विभाग की किशनपुर रेंज की जमीन पर भी खूब अवैध खनन किया गया। बताया जा रहा है कि वन विभाग ने इस मामले में बकायदा मौके पर रेंज की टीम भेजी थी। जहां अवैध खनन होते हुए पाया गया था। लेकिन वन विभाग द्वारा अवैध खनन कर रहे कारोबारी पर मुकदमा दर्ज करने के बजाय सिंचाई विभाग के विरुद्ध वन अधिनियम के तहत केस दर्ज कर औपचारिकता पूर्ण कर ली गई। यहां भी अवैध खनन कर रहे कारोबारी को साफ-साफ बचाया गया।
जांच के घेरे में विदेशी कंपनी सितारगंज स्थित सिडकुल में विदेशी कंपनी ‘यो-यो’ भी जांच के घेरे में आ गई है। इस कंपनी के कई एकड़ क्षेत्रफल में मिट्टी भरान किया गया है। बताया जा रहा है कि कंपनी द्वारा मिट्टी भरान में दी जाने वाली रॉयल्टी नहीं दी गई है। इसके तार सूखी नदी के अवैध खनन से जुड़े हुए हंै। कहा जा रहा है कि इस कंपनी में बड़े पैमाने पर लाखों के अवैध खनन को खपाया गया है। जिसकी जांच सितारगंज के एसडीएम कर चुके हैं। लेकिन जब उपजिलाधिकारी विनोद कुमार से इस बाबत बात की गई तो उन्होंने बात खान विभाग के ऊपर टाल दी। जब खान विभाग से बात की गई तो उसके अधिकारी जय प्रकाश ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि इस बारे में एसडीएम जानते हैं।
बात अपनी-अपनी
”इस मामले में अभी जांच चल रही है। जो भी व्यक्ति गलत कार्य करेगा उसके खिलाफ कार्यवाही होगी।” – नीरज खैरवाल, जिलाधिकारी ऊधमसिंहनगर
”इस मामले में मैंने एसडीएम से पूछा की यो-यो कंपनी में जो मिट्टी भरान हुआ है उसकी रॉयल्टी कहां है। तो एसडीएम ने यो-यो कंपनी को नोटिस भेज दिया है। नदी में अवैध खनन हुआ है उसकी बाबत तीन जांच हो चुकी है। मगर अभी भी मामला संदेहास्पद है तो मैं डीएम से मिलकर फिर से जांच कराउंगा। नदी से सिल्ट निकालने में अकेला संजय गोयल ही नहीं है, बल्कि तीन लोग शामिल है। मैं चाहता हूं कि यह मामला सबके सामने लाया जाए।” – सौरभ बहुगुणा, विधायक सितारगंज
”नदी से सिल्ट हटाई जानी चाहिए थी, लेकिन कारोबारी ने नदी में जेसीबी और पोकलैंड मशीनों से गहरे गड्ढ़े कर दिए। इसके चलते ग्रामीणों ने विरोध किया। गांव वाले नदी के बीच से ही निकलकर दूसरे गांव को जाते हैं, लेकिन गहरे गड्ढ़े होने के कारण उनकी जान को खतरा बन गया है।” – परमजीत कौर, प्रधान उकरोली
हमारी सूखी नदी की सिल्ट को हटाने के संबंध में प्रशासन से कोई मीटिंग नहीं हुई। हमने नदी से अवैध खनन का विरोध किया था। विरोध करने वालों में पूरा गांव शामिल था। हमने इसकी शिकायत भी की थी जिसके बाद जांच हुई। सिल्ट हटाने की अनुमति को बार-बार बढ़ाया जाता रहा और इसी अनुमति की आड़ में अवैध खनन होता रहा। – संजय बाछड़, ग्राम प्रधान रुद्रपुर