मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने भी जीरो टोलरेंस पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मुख्य सचिव ने उत्तराखंड में अफसरों द्वारा गंभीर वित्तीय अनियमितताएं करने को लेकर चरित्र पंजिका मे प्रतिकूल प्रविष्टि की चेतावनी दी है।
मुख्य सचिव ने तमाम अपर मुख्य सचिवों और सचिवों को चेतावनी पत्र जारी करके कहा है कि यदि वित्त विभाग की अनुमति के बिना वित्त से जुड़े किसी मामले पर वित्त विभाग को बायपास कर सीधे सीएम के स्तर से निर्णय लिया गया तो फिर अधिकारियों की चरित्र पंजिका में प्रतिकूल प्रविष्टि कर दी जाएगी।
गौरतलब है कि जीरो टोलरेंस की सरकार में भी अफसर सीधे मुख्यमंत्री के स्तर से अपनी फाइलों पर अनुमोदन करा ले रहे हैं तथा इसमें वित्त विभाग का परामर्श और पूर्व सहमति नहीं ले रहे हैं।
यदि ऐसा ही होना है तो फिर मुख्य सचिव और वित्त सचिव को वेतन क्यों दिया जा रहा है ! यहां तक कि प्रशासनिक विभाग द्वारा पदों का सृजन, वेतनमान संशोधन, उच्चीकरण और राज्य आकस्मिकता निधि से धन राशि का अग्रिम आहरण तक पर बिना वित्त विभाग की पूर्व सहमति और परामर्श के सीधे मुख्य मंत्री से अधिकारी अनुमोदन करा लेते हैं।
फिर स्थिति यह बन जाती है कि एक ओर मुख्यमंत्री के स्तर से अनुमोदित हो चुके प्रस्तावों पर वित्त विभाग कोञ उसके औचित्य पर सवाल खड़े करने में गंभीर असमंजस पूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
वित्त विभाग के लिए मुख्यमंत्री द्वारा अनुमोदित किसी औचित्यहीन प्रस्ताव को स्वीकार करना और न करना गले की हड्डी बन जाता है।
जाहिर है कि अफसर अपनी पहुंच का फायदा उठाकर सीधे वित्त विभाग को बायपास करके मुख्यमंत्री से जो प्रस्ताव अनुमोदित कर आते हैं, उसमें मंत्री और अफसर उच्च स्तर पर ही सांठगांठ किए हुए होते हैं और उसमें उनका गंभीर वित्तीय स्वार्थ भी जुड़ा होता है। जीरो टोलरेंस की सरकार में संभवत इसीलिए मुख्य सचिव घुटन महसूस कर रहे हैं।
वर्तमान मुख्य सचिव उत्पल कुमार का पत्र
मुख्य सचिव ने इसे वित्तीय अनुशासन का गंभीर उल्लंघन माना है। 25 जनवरी को मुख्य सचिव ने यह पत्र जारी करके कहा है कि अफसर बिना वित्त विभाग की सहमति के भूमि का अनुदान, खनिज, वन तथा जल से संबंधित अनुदान या पट्टे बिना वित्त विभाग की स्वीकृति के जारी कर दे रहे हैं, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है।
साथ ही मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि कुछ अफसर वेतन भत्तों से संबंधित निर्णय भी चुपचाप बिना वित्त विभाग की अनुमति के ले रहे हैं, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है।
पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार का पत्र
उत्पल कुमार ने वित्त विभाग को अंधेरे में रखने वाले अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की चेतावनी दी है। नाराज मुख्य सचिव ने अपने आदेश में यह भी जोड़ा है कि चाहे अफसरों द्वारा लिए जा रहे किसी निर्णय में भले ही कोई राजस्व की हानि नहीं हो रही हो तब भी यदि उस निर्णय के लिए वित्त विभाग की राय ली जानी जरूरी है तो वह ली जानी अनिवार्य है।
मुख्य सचिव ने कहा है कि ‘कार्य नियमावली 1975 के नियम- 4(2)’ का अनुपालन करना सभी अफसरों को अनिवार्य है। अन्यथा इन निर्देशों का अनुपालन न करने वाले अफसरों की इस वित्तीय अनियमितता को गंभीरता से लिया जाएगा और संबंधित अधिकारी की चरित्र पंजिका में प्रतिकूल प्रविष्टि कर दी जाएगी।
बड़ा सवाल यह है कि आखिर मुख्य सचिव को यह आदेश जारी करने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा ! गौरतलब है कि 11 अगस्त 2011 को भी तत्कालीन मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने ऐसा ही एक पत्र जारी किया था।
पर्वतजन वर्तमान मुख्य सचिव और तत्कालीन मुख्य सचिव, दोनों के पत्र पाठकों के सुलभ संदर्भ के लिए यहां दे रहा है।
सवाल यह है कि वर्ष 2011 से लेकर 2019 तक इस बात का उल्लंघन करने वाले कितने अफसरों के खिलाफ चरित्र पंजिका में प्रतिकूल प्रविष्टि दी गई है ! और यदि नहीं दी गई है तो फिर ऐसे पत्र जारी करने की खानापूर्ति करने की भी जरूरत क्या है !
क्या पत्र जारी कर देना ही पर्याप्त है!
क्या यही जीरो टोलरेंस है !
वर्ष 2011 में भी भाजपा की सरकार थी, फिर 5 साल 12 से 17 तक कांग्रेस की सरकार रही और अब जनता ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार तथा अल्पमत की मजबूर सरकारों से दुखी होकर फिर से भाजपा की सरकार को प्रचंड बहुमत दिया है।
इस सरकार के भी दो साल पूरे होने को हैं। अगर नौबत वही ढाक के तीन पात है तो फिर चिट्ठी-चिट्ठी का खेल जनता की आंखों में धूल झोंकने के अलावा और क्या है !