सीएम की विधानसभा में ही हारी भाजपा पालिका प्रत्याशी नगीना रानी।
मुख्यमंत्री अपनी विधानसभा डोईवाला में ही नगर पालिका अध्यक्ष के लिए भाजपा प्रत्याशी नगीना रानी की ही सीट नहीं बचा पाए।
कांग्रेस की सुमित्रा मनवाल ने नगीना रानी को 196 वोटों से मात दे दी। इस हार से बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। पूरे प्रदेश की नजरें मुख्यमंत्री की इस वीवीआइपी सीट वाली नगर पालिका पर लगी हुई थी। सुमित्रा मनवाल के जीतते ही भाजपा दोबारा से मतगणना कराने की जिद पर अड़ गई।
काफी देर तक मामला उलझा रहा और आखिरकार सुमित्रा मनवाल विजयी की गई। अधिकारियों पर इतना अधिक प्रेशर था कि काफी देर तक विजयी प्रत्याशी की जीत की ही घोषणा नहीं की गई।
यह सीट मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की भी प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई थी। दोबारा मतगणना के बाद उन्हें 196 वोट मिल गए। कांग्रेस की जीत का पता चलते ही मतगणना स्थल पर मौजूद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पिछले दरवाजे से चुपचाप निकल गए। अधिकारियों ने पूरे दिन भर मीडिया को इस वीवीआइपी सीट के मतगणना स्थल से काफी दूरी पर बनाए रखा। हालत यह हो गई कि कांग्रेस प्रत्याशी की जीत के काफी देर तक डोईवाला शहर के मोबाइल नेटवर्क भी नहीं मिल पाए। इससे काफी देर तक गफलत की स्थिति बनी रही।
कांग्रेस प्रत्याशी की जीत के पीछे मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण भी एक बड़ा कारण रहा है। दरअसल हुआ यह कि वोटिंग से कुछ रोज पहले मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से भाजपा प्रत्याशी के समर्थकों ने एक रैली निकाली थी और नारे लगाए थे कि “भारत में यदि रहना होगा वंदेमातरम कहना होगा।”
इससे भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ रही निर्दलीय प्रत्याशी मधु डोभाल को मिलने वाले मुस्लिम वोट एकतरफा कांग्रेस के पक्ष में शिफ्ट हो गए। भाजपा प्रत्याशी के समर्थकों की वंदे मातरम वाली रैली के बाद मुस्लिम समुदाय ने बाकायदा गोपनीय बैठक कर यह तय किया कि भाजपा का प्रत्याशी किसी भी हालत में जीतनी नहीं चाहिए !
भाजपा की ओर से मधु डोभाल यहां पर मजबूत प्रत्याशी थी किंतु मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ऐन मौके पर मधु डोभाल का टिकट कटा दिया। इससे मधु डोभाल निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गई। मधु डोभाल के पति पुरुषोत्तम डोभाल क्षेत्र के एक जनाधार वाले नेता है, किंतु पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के बेहद करीबी माने जाते हैं। इसी करीबी के कारण डोभाल का टिकट तो कट गया लेकिन मुख्यमंत्री खुद अपनी प्रत्याशी की सीट भी नहीं बचा पाए और फिर आखिर वही हुआ जिसका दर्द त्रिवेंद्र सिंह रावत को काफी लंबे समय तक चलता रहेगा।
त्रिवेंद्र को घर मे मिला सबक
मुख्यमंत्री के रूप में अपनी विधानसभा में पहली परीक्षा मे उतरे मुख्यमंत्री को पहली ही परीक्षा में असफलता का सामना करना पड़ा है।
अपनी मर्जी से चुन-चुन कर अपनों को टिकट बांटने वाले त्रिवेंद्र रावत अपनी नगर पालिका में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को नहीं जिता पाए। आज डोईवाला नगर पालिका चुनाव के परिणाम ने साबित कर दिया कि त्रिवेंद्र रावत ने गलत प्रत्याशियों को टिकट दिए थे ।पिछले पंचायत चुनाव में बुरी तरह से हार का रिकार्ड बनाने वाली नगीना रानी को टिकट देना त्रिवेंद्र रावत के लिए घातक साबित हुआ। त्रिवेंद्र रावत ने संघ तथा भाजपा के अलावा क्षेत्रीय समीकरण को नकारते हुए अपनी इच्छा से नगीना रानी को टिकट दिलवाया था।
नगर पालिका परिषद के चुनाव में डोईवाला नगर पालिका मे मिली करारी हार ने प्रदेश की कई स्थानों पर मिली जीत को फीका कर दिया।
त्रिवेंद्र रावत के लिए डोईवाला नगरपालिका का यह चुनाव पद और रिश्ता दोनों से जुड़ा हुआ था। इस चुनाव को जीतने के लिए मुख्यमंत्री श्री रावत ने साम दाम दंड भेद सब कुछ अपनाया।
इस चुनाव में पहली बार एक मुख्यमंत्री द्वारा न सिर्फ रोड शो का आयोजन किया गया, बल्कि मुख्यमंत्री के ओएसडी, पीआरओ व तमाम सरकारी कर्मचारी चुनाव जिताने के लिए जी तोड़ मेहनत करते रहे।
डोईवाला नगर पालिका का चुनाव मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए डोईवाला नगर पालिका का चुनाव मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि मुख्यमंत्री खुद इस चुनाव पर पल पल की नजरें रखे हुए थे।
मुख्यमंत्री के ओएसडी धीरेंद्र पवार को इस काम के लिए मुख्यमंत्री की ओर से पहले ही तैनात किया गया था इस नगर पालिका क्षेत्र के तमाम सभासदों के टिकट त्रिवेंद्र रावत और धीरेंद्र पवार की पसंद पर बांटे गए।
इस चुनाव को जीतने के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत इस कदर आतुर थे कि आज डोईवाला में मतगणना स्थल से मीडिया को बाहर रखा गया।
यह पहला अवसर रहा जब मीडिया को स्वच्छंद होकर कवरेज करने से भी रोका गया। इस चुनाव में मुख्यमंत्री द्वारा इतनी तल्लीन का से काम करने के बावजूद हार के दो प्रमुख कारण सामने आ रहे हैं, उनमें से भारतीय जनता पार्टी का दो फाड़ होना मुख्य कारण माना जा रहा है।
सर्वे के बावजूद जीत की संभावना वाले प्रत्याशी की बजाय पसंद के प्रत्याशी को टिकट देना इसका एक कारण रहा।
मुख्यमंत्री की टीम नगर पालिका क्षेत्र में करोड़ों रुपए की मुख्यमंत्री राहत राशि बांटने के बावजूद आम जनमानस में विश्वास जगाने में नाकाम रही।
डोईवाला में अवैध खनन का मसला रहा हो या सरकार द्वारा डोईवाला अस्पताल को निजी जौली ग्रांट हॉस्पिटल को देने का मसला, एक के बाद एक निर्णय जनता के हित में नहीं गए।
मुख्यमंत्री की टीम द्वारा टिहरी बांध विस्थापितों की अनदेखी के साथ साथ चुनाव के ऐन वक्त पर भाजपा प्रत्याशियों द्वारा चुनाव से भाग खड़ा होने से भी नकारात्मक संदेश गया।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा हरिद्वार के सांसद और डोईवाला के पूर्व विधायक रमेश पोखरियाल निशंक के समर्थकों को एक के बाद एक कर निपटाने के खेल में मुख्यमंत्री खुद निबट गए।
डोईवाला नगर पालिका की यह हार भाजपा प्रत्याशी नगीना रानी की हार नहीं बल्कि यह त्रिवेंद्र रावत की हार बताई जा रही है, जिन्होंने सिर्फ अपनी चलाकर टिकट बांटने की बहुत बड़ी गलती की।
देखना है कि इस भारी हार से त्रिवेंद्र सिंह रावत क्या सबक लेते हैं और भविष्य में अपने आचार व्यवहार में क्या सुधार करते हैं !