भूूपेंद्र कुुुुमार
आख़िरकार मुख्य सचिव उत्पल कुमार ने यह आदेश जारी कर दिए कि उच्च स्तर के अधिकारी ही लोक सूचना अधिकारी नामित किए जाएंगे।
मुख्य सचिव ने सभी अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिवों सहित विभागों के विभागाध्यक्ष और निदेशकों को यह आदेश जारी किए हैं कि उच्च स्तर के अधिकारियों को ही लोक सूचना अधिकारी बनाया जाए।
उत्तराखंड शासन काफी लंबे समय से अनुभाग अधिकारियों अथवा उप सचिवों को लोक सूचना अधिकारी बनाने के आदेश जारी करता रहा है। जिस पर राज्य सूचना आयोग ने आपत्ति जताई थी।
सूचना आयोग काफी लंबे समय से शासन को इस पर अपनी आपत्ति जाहिर कर चुका था लेकिन उत्तराखंड शासन काफी लंबे समय से सूचना आयोग की बात मानने से हीला-हवाली करता रहा और बार-बार यह आश्वासन देता रहा कि कार्यवाही चल रही है।
इस मामले की सुनवाई सूचना आयोग में सूचना आयोग में राज्य सूचना आयुक्त सुरेंद्र सिंह रावत और राजेंद्र कोठियाल की डबल बेंच में चल रही थी। शासन की हीला-हवाली से तंग आकर सूचना आयोग ने बाकायदा आदेश जारी कर दिए थे कि यदि अगली सुनवाई तक मुख्य सचिव ने उच्च स्तर के अधिकारियों को लोक सूचना अधिकारी नियुक्त नहीं किया तो फिर उनको बाकायदा सम्मन जारी करके आयोग में तलब किया जाएगा।
इस मामले में लगातार शासन की किरकिरी होते देखकर मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने यह आदेश जारी कर दिए। यह माना जा रहा है कि इससे सूचना मिलने में एक तो आसानी होगी और दूसरा लोक सूचना अधिकारियों की जिम्मेदारी भी और अधिक अच्छे ढंग से तय की जा सकेगी।
अब तक अक्सर होता यह था कि उच्च स्तर के अधिकारी मौखिक रूप से अपने कनिष्ठ स्तर के अधिकारियों को सूचना न देने अथवा गोलमोल सूचना देने के लिए दबाव डालते थे। जिस पर अपीलार्थी सूचना आयोग की शरण में जाता था और सूचना आयोग के सामने न सिर्फ कनिष्ठ अधिकारियों को जुर्माना भरना पड़ता था अपितु शर्मिंदा भी होना पड़ता था। अब अधीनस्थ अधिकारी इस तरह के दोहरे दबाव से बच जायेंगे।
उदाहरण के तौर पर सचिवालय के वन अनुभाग में उप सचिव स्तर के अधिकारी अखिलेश मिश्रा को लोक सूचना अधिकारी बनाया गया था। जब कि सूचनाएं तत्कालीन अनुभाग अधिकारी ज्योतिर्मय त्रिपाठी के पटल पर आधारित थी। ज्योतिर्मय त्रिपाठी ने वन विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत होने के कारण जानबूझकर सूचनाएं नहीं दी और अपीलीय अधिकारी संयुक्त सचिव आरके तोमर ने भी सूचनाएं देने में बाधा पहुंचाई लेकिन इसका खामियाजा कोई गलती न होते हुए भी अखिलेश मिश्रा को भी सिर्फ इसलिए भुगतना पड़ा क्योंकि वह लोक सूचना अधिकारी थे।
अब अनुभाग अधिकारी और उप सचिव स्तर के अधिकारी इस तरह की दोहरी प्रताड़ना से बच सकेंगे। इसी तरीके से तमाम निदेशालयों और विभागों में उच्च स्तर के अधिकारियों के लोक सूचना अधिकारी बन जाने से वर्तमान में लोक सूचना अधिकारियों में खुशी और राहत का माहौल है। साथ ही आरटीआई कार्यकर्ताओं में भी काफी खुशी है।