इस दर्द की नही है कोई दवा।
मलाई खाकर विदा हुई पालिका। बोर्ड में प्रशासक तैनात होने के बाद नित नए खुलासों से हैरान नगर वासी।
गिरीश गैरोला
बिना दुकान निर्मित कराए किराया वसूल करने वाली बड़ा हाट उत्तरकाशी नगर पालिका ने स्थायी दुकान निर्मित करने के नाम पर पहली किस्त के रूप में जमा कराई गई 34 लाख 50 हजार रु दुकाने बनाने की बजाय अपने कर्मचारियों के वेतन में खर्च कर दिए। नगर से अतिक्रमण हटाने के दौरान नगर की प्राइम लोकेशन पर बैठे खोका धारियों ने बताया कि उनसे बाकायदा प्रति माह एक हजार रु किराया भी लिया जा रहा है। अब सवाल ये है कि पालिका ने दुकाने कहां और किस मद से बनाई है, और यदि बनाई है तो किराये का बांड क्यों नही किया ? इन सब सवालों को आपसी टकराव का कारण बनाकर पालिका बोर्ड अपना कार्यकाल पूर्ण कर अगले चुनाव की तैयारी में जुट गया है। इस बात से बेखबर कि उनकी कार गुज़रियों से समाज का एक वर्ग दूसरे से लड़ने-मरने को तैयार बैठा है।
शिव नगरी उत्तरकाशी में सामाजिक समरसता बिगड़ कर तनाव का माहौल पैदा करने वाली नगर पालिका के घोटाले सूचना अधिकार में सबूत के साथ बाहर आने के बाद भी जांच के नाम पर इस टेबल से उस टेबल तक फ़ाइल धूल फांक रही है, पर सत्ता पक्ष के साथ मित्र विपक्ष के रवैये से नगरवासी भी हैरान हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अमरिकन पूरी ने सिटी बस घोटाले सहित निर्माण कार्य में किये गए घोटालों का सूचना अधिकार से खुलासा किया जिस पर आज तक भी कार्यवाही नही हुई।
पिछली पालिका बोर्ड का कार्यकाल पूर्ण होने के बाद नई पालिका के गठन की तैयारियां जोरों पर है लिहाजा पालिका के सिस्टम में प्रवेश करने से पूर्व चुने हुए प्रतिनिधि और मतदाता नगरवासियों को पिछली पालिका के घोटालों की काली सूची पर जीरो टॉलरेन्स की सरकार में कार्यवाही की उम्मीद बेमानी है।
उत्तरकाशी नगर में “अतिक्रमण हटाओ अभियान” में तनाव का माहौल बनाने वाली सब्जी मंडी ने एक बार फिर इसे पैदा करने वाली पालिका की करतूतों की कहानी सबके सामने लाने को मजबूर कर दिया है।
वर्षो से नगर में सब्जी की आपूर्ति करने वालों को पालिका यहाँ से वहाँ पटकती रही है। इसके बाद रामलीला मैदान से लगे गंगोत्री राजमार्ग पर चलती फिरती ठेली के लाइसेंस पर वर्षो काम करने के बाद पालिका ने दो लाख में इन ठेली लाइसेंसधारियों को स्थायी दुकान बनाकर देने का वायदा किया और करीब 60 कब्जाधारियों में से करीब 45 ने 50 हजार की पहली किस्त भी जमा कर दी, जिसमे से कुछ लोगों ने दूसरी और तीसरी भी क़िस्त पालिका में जमा कर दी। इस प्रकार पालिका ने इन कब्जधारियों से 34 लाख 50 हजार रु जमा करवा लिए किन्तु इन पैसों से दुकाने निर्मित करने की बजाय इससे अपने संविदा कर्मियों का वेतन बंटवा दिया।
इतना ही नही 23 फरवरी 2018 को अध्यक्ष नगर पालिका ने अपने कर्मचारियों को निर्देश दिए कि वे जुलाई 2017 से इन कब्जाधारियों से प्रतिमाह एक हजार रु मासिक किराया वसूल करे। इस पत्र की भाषा पर गौर करे तो अध्यक्ष अपने संग्रह कर्ता जीत सिंह गुसाई को साफ लिखती है कि यहाँ निर्मित दुकानों से किराया जमा करवाना सुनिश्चित करें। जबकि पालिका ने कोई दुकान बनाई ही नही ये कब्जाधारी स्वयं के संसाधनों से टीन शेड डालकर अपना व्यवसाय चला रहे हैं।
साफ है कि जो दुकानें पालिका ने निर्मित ही नही कराई उनका किराया बैक डेट में वसूल किया गया और स्थायी दुकानों के एवज में जमा करवाया गया धन भी अन्यत्र खर्च कर वित्तीय अनियमितता की गई। इस संबंध में डीएम उत्तरकाशी ने कहा कि पालिका के प्रशासक डिप्टी कलेक्टर अनुराग आर्य से जांच करवा कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही अमल में लायी जाएगी।
गौरतलब है कि नगर पालिका एक्ट में धारा 34 में डीएम को पालिका को प्रतिशिद्ध करने के लिए पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं। अब देखना है कि कोयले की इस कोठरी में और कितने सफेदपोशों के हाथ काले होते है।