उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ७ अप्रैल २०१८ को अपने ऑफिसियल फेसबुक एकाउंट से एक सफाईनुमा अपील की। जिसमें उन्होंने लिखा,- ”हमारी सरकार शराब की बिक्री को प्रोत्साहन देने और इससे अधिक से अधिक राजस्व जुटाने के पक्ष में नहीं है। हम केवल शराब बिक्री के लिए तय नियमों को पारदर्शी तरीके से पालन करवाने की कोशिश कर रहे हैं, कृपया अफवाह न फैलाएं।”
उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार किसी मुख्यमंत्री को अपनी पॉलिसी पर इस प्रकार सफाई देनी पड़ी। सूबे के आबकारी मंत्री प्रकाश पंत ने न तो मुख्यमंत्री के इस बयान को शेयर किया, न इस प प्रतिक्रिया दी। सरकारी प्रवक्ता मदन कौशिक कल हुई कैबिनेट बैठक के बाद से मौन हैं। यहां तक कि बात-बात पर मुख्यमंत्री के साथ सैल्फी खिंचवाकर अपनी वाहवाही में लगे डबल इंजन के मैनेजर भी इस मुद्दे पर मौन हैं। सरकार का कोई भी मंत्री इस मुद्दे पर सरकार का पक्ष रखता नजर नहीं आया। हर ओर से सरकार को घिरता देख मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को खुद मोर्चा लेना पड़ा। दरअसल इस सरकार के पहले वर्ष के कार्यकाल के पूर्ण होने पर आनन-फानन में शराब नीति में दो-तीन ऐसे संशोधन किए गए, जिसने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए। एक ओर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि उनकी सरकार का मकसद शराब की बिक्री को प्रोत्साहन देकर अधिक से अधिक राजस्व जुटाने का नहीं है। वहीं दूसरी ओर इसी वित्तीय वर्ष के लिए उन्होंने २५५० करोड़ रुपए राजस्व का लक्ष्य तय किया है। अकेले टिहरी जनपद में शराब की २० नई दुकानें यदि शराब बिक्री को प्रोत्साहन देने और राजस्व जुटाने के लिए नहीं हैं तो ये दुकानें क्यों बढ़ाई गई?
जाहिर है कि सरकार शराब से राजस्व वृद्धि के लिए जगह-जगह ये दुकानें खोल रही है। नेपाल की तर्ज पर अमूमन सभी दुकानदारों को शराब बेचने का लाइसेंस देने वाली जैसी पॉलिसी जब लागू हुई तो कल हुई कैबिनेट के फैसले के बाद स्पष्ट हो गया कि उत्तराखंड का कोई भी व्यापारी, जिसका सालाना टर्नओवर ५० लाख रुपए हो, वह विदेशी शराब बेच सकता है। अकेले देहरादून में सैकड़ों ऐसे कारोबारी हैं, जिनका टर्नओवर ५० लाख से ज्यादा है। अर्थात पूरे प्रदेश के सैकड़ों लोग अब विदेशी शराब बेच सकते हैं। इस खबर के प्रकाशित होने से तिलमिलाई सरकार का अब स्पष्टीकरण देना सरकार को खुद कटघरे में खड़ा कर देता है।
देखना है कि अब मुख्यमंत्री द्वारा दी गई सफाई के बाद मंत्रियों और विधायकों के साथ मैनेजरों का अगला रुख क्या होता है। वे मुख्यमंत्री की बात को बल देने के लिए आगे आते हैं या नहीं!