कृष्णा बिष्ट
जहां एक तरफ प्रदेश के किसान हर वर्ष फसलों के नुकसान के कारण काश्तकारी से दूर होने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी ओर केंद्र की फसल बीमा योजना जैसी अति महत्वपूर्ण योजना को प्रदेश का सफेद हाथी बन कर बैठा कृषि विभाग सही से अमल में लाने में भी मक्कारी कर रहा है।
यही कारण है कि प्रदेश के किसानों को उनकी फसल के बर्बाद होने पर सरकार की तरफ से जो सहायता मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पाती है।
कृषि विभाग की इन कार गुजारियों का खुलासा हल्द्वानी के वरिष्ठ समाजसेवी व आर.टी.आई कार्यकर्ता हेमंत गोनिया ने अपनी आर.टी.आई के माध्यम से किया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत खरीफ में 2 प्रतिशत से अधिक और रवि मौसम में 1.5 प्रतिशत से अधिक प्रीमियम की धनराशि सब्सिडी के तौर पर भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा 50:50 के अनुपात में बीमा कंपनी को भुगतान की जााती है।
जहाँ कृषि उत्तराखंड के लोगों की आजीविका का आज भी सबसे बड़ा साधन है, वहीं पिछले 5 वर्षों में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत होने वाले पंजीकरणे में निरंतर हर वर्ष गिरावट आई है । जोकि सरकार और विभाग की किसानों को लेकर संवेदनहीनता को दर्शाता है। क्योंकि अगर संवेदनहीनता न होती तो इस महत्वपूर्ण योजना में किसानों के पंजीकरण की संख्या में गिरावट के बजाय इज़ाफ़ा हुवा होता ताकि फसल के नुकसान के वक्त किसानों को उनकी फसल का उचित मुआवजा सही समय पर मिल पाता।
सूचना के अनुसार उत्तराखंड में अभी तक 4,80,607 किसानों को ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से जोड़ा गया है, जिनमें से अभी तक 40,738 किसानों को फसलों के नुकसान होने पर रु. 795.77 लाख की धनराशि बीमा कंपनी द्वारा दी जा चुकी है। जबकि राज्य सरकार अपनी 50% हिस्से में से 599.91 लाख रुपए प्रीमियम दे चुकी है तथा 199.35 लाख रुपए क्रॉप कटिंग योजना के नाम पर दे चुकी है। जाहिर है कि केंद्र सरकार भी अपना 50% दे चुकी है। अब यदि किसानों को जो दावा का भुगतान हुआ है, उससे तो यह साफ हो जाता है कि बीमा कंपनियां 50% से अधिक फायदे में हैं।
जाहिर है कि उत्तराखंड में किसान कर्ज से बड़ी ही आत्महत्या कर रहे हैं, उन्हें अपनी उपज का पूरा पैसा न मिल पा रहा हो लेकिन फसलों को हो रहे नुकसान के नाम पर बीमा कंपनियां मोटी कमाई कर रही हैं। वर्तमान में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 18 सूचीबद्ध कंपनियों के द्वारा चलाई जा रही है।