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उत्तराखंड में बेगाने होते पहाड़ी

September 6, 2016
in पर्वतजन
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उत्तराखंड में विकास के पैमाने के अनुसार अधिकांश बजट मैदानी क्षेत्रों में खर्च हो रहा है। मैदानी क्षेत्र उत्तराखंड के बाहर से आए लोगों के लिए शरणस्थली बन गया है।

गजेंद्र रावत

सरकार ने उत्तराखंड में १०२ बस्तियों को नियमितीकरण की सूची में रखा है, जबकि देहरादून नगर निगम की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार यहां पर १२९ बस्तियां हैं। ये बस्तियां रिस्पना और बिंदाल नदी को पाटते हुए बसाई गई हैं। नालों-खालों और नदियों के किनारे बसे तकरीबन १० लाख ये लोग बिहार, नेपाल, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल सहित देश के तमाम हिस्सों से आकर बसे हैं। या कहें कि वोट बैंक बढ़ाने के लिए उत्तराखंड के मंत्रियों व विधायकों ने और कुर्सी कब्जाने की चाह रखने वाले सफेदपोशों ने इन्हें अवैध रूप से इन बस्तियों में काबिज करवाया है।
उत्तराखंड में कोई भी सरकार आज तक इन अवैध और असंवैधानिक रूप से बसाई गई बस्तियों के विरुद्ध कार्यवाही से सिर्फ इसलिए बचती रही, क्योंकि सभी दलों को ये लोग मजबूत वोट बैंक के रूप में दिखाई देते हैं।
वर्तमान सरकार ने बाकायदा एक्ट पास करवाकर इन बस्तियों को कानूनी जामा पहनाने की कार्यवाही शुरू कर दी है।
राजपुर के विधायक और मलिन बस्ती सुधार समिति के संसदीय सचिव राजकुमार की रिपोर्ट पर जब यह एक्ट पास किया गया तो देहरादून शहर को बधाईयों के होर्डिंग्स से पाट दिया गया।
ऐसे होगी स्मार्ट सिटी
देहरादून के मेयर विनोद चमोली, जो कि स्वयं विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगे हैं, ने बस्तियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया पर कुछ गंभीर सवाल खड़े किए हैं। मेयर का कहना है कि निजी जमीनों पर जो बस्तियां बसाई गई हैं, उन बस्तियों को सरकार किस नियम के तहत नियमित करेगी? मेयर का आरोप है कि एक ओर देहरादून के एक बड़े हिस्से को स्मार्ट सिटी बनाने का प्रस्ताव दिया गया है। जिसके अंतर्गत वे बस्तियां भी आ रही हैं, जिन्हें सरकार ने नियमित करने का आदेश जारी करवाया है। ऐसे में स्मार्ट सिटी के प्रस्ताव का कमजोर पडऩा भी तय है। क्योंकि स्मार्ट सिटी के अंतर्गत स्लम एरिया के लिए कोई स्थान ही नहीं है।
वोट बैंक का चक्कर
रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना के अनुसार नदी के दोनों ओर से किसी भी प्रकार का निर्माण अवैध है और रिवर फ्रंट योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए नदी के इन दोनों छोरों को खाली करवाना आवश्यक है। उत्तराखंड सरकार ने अपने बचाव के लिए २०० मीटर के इस प्रावधान के लिए १०० मीटर तय कर दिया गया। साथ ही रिस्पना व बिंदाल नदी को सरकार ने नदी मानने से ही इंकार कर दिया है। यदि सरकार के इस पैमाने को भी मान लिया जाए तो नदियों के दोनों ओर से सौ-सौ मीटर का एरिया यदि खाली करवा दिया जाता है तो देहरादून की ८० प्रतिशत बस्तियां स्वयं ही नेस्तनाबूत हो जाएंगी और रिवर फ्रंट डेवलपमेंट के अंतर्गत काम करने के लिए राज्य सरकार को नदी के इन दोनों किनारों को हर हाल में खाली करवाना ही होगा, तभी जाकर केंद्र से यह भारी भरकम धनराशि अवमुक्त हो जाएगी।
अब सवाल यह उठता है कि यदि रिवर फ्रंट डेवलपमेंट के तहत सरकार काम करती है तो बस्तियों को उजाडऩा पड़ेगा और यदि सरकार बस्तियों के नियमितीकरण के अपने द्वारा पास किए गए एक्ट का पालन करती है तो देहरादून को स्मार्ट सिटी बनाने और रिवर फ्रंट डेवलपमेंट की दोनों योजनाएं खटाई में पड़ जाती हैं।
राज्य सरकार ने जिन १०२ बस्तियों को नियमित करने का एक्ट पास किया है, उनमें से १८ बस्तियां निजी जमीन पर हैं। १८ नालों-खालों पर हैं। ८ ऐसी बस्तियां हैं, जो मिट्टी के ढेरों पर खड़ी हैं। इस प्रकार मात्र १८ बस्तियां ही नियमित हो सकती हैं।
जाहिर है सरकार ने एक्ट पास करते वक्त यदि इन तमाम बिंदुओं पर गंभीरता से काम किया होता और सिर्फ वोट बैंक के लिए यह एक्ट पास न किया होता तो इस एक्ट को कार्यान्वित करने के लिए अब सरकार को इतने पापड़ न बेलने पड़ते।

पर्वतीय क्षेत्रों में मूलभूत आवश्यकताओं को सरकार पूरा नहीं कर पा रही, वहीं अवैध रूप से काबिज प्रदेश के बाहरी लोगों को वोट बैंक के लिए अब सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।


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