निकाय चुनाव परिणाम आने के बाद ऐसे चौंकाने वाले वाकये सामने आ रहे हैं कि लोगों का चुनाव की राजनीति और लोकतंत्र पर से विश्वास कम होना स्वाभाविक है। लोगों ने इन निकाय चुनावों में परिवारवाद को इस प्रकार घुमाया कि एक बार तो मतदाता भी नहीं समझ पाया कि आखिरकार यह हो क्या हो रहा है। देहरादून के जिला पंचायत उपाध्यक्ष डबल सिंह भंडारी ने डोईवाला नगरपालिका की सीट महिला ओबीसी होने के बाद अपनी पत्नी को भाजपा के सिंबल पर सभासद का चुनाव इसलिए लड़ाया, ताकि सभासद बनने के बाद भंडारी की पत्नी श्रीमती नीलम भंडारी पूर्व ग्राम प्रधान बड़ोवाला, डबल सिंह की भांति ही डोईवाला नगरपालिका की उपाध्यक्ष बन जाए और जिस प्रकार डबल सिंह भंडारी देहरादून जिला पंचायत उपाध्यक्ष के रूप में धमक जमाए हुए हैं, उसी प्रकार उनकी पत्नी डोईवाला नगरपालिका में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाए, किंतु मतदाताओं ने डबल सिंह भंडारी की पत्नी को हराकर भंडारी की उम्मीदों को उपाध्यक्ष बनने से पहले ही सभासद का चुनाव भी हरवा दिया।
भंडारी की भांति राजनैतिक गणित खेलने वाले ऋषिकेश के दीप शर्मा, जो कि १५ वर्ष तक खुद नगरपालिका अध्यक्ष रहे, ने महिला सीट होने पर अपनी पत्नी को तो ऋषिकेश मेयर का चुनाव लड़वाया, किंतु मेयर की कुर्सी में लगी मलाई कहीं और न छिटक जाए, इसके लिए दीप शर्मा खुद वार्ड नंबर १७ से पार्षद का चुनाव लड़े। ऋषिकेश की जनता के बीच यह संदेश स्पष्ट हो गया था कि दीप शर्मा पार्षद का चुनाव डिप्टी मेयर बनने के लिए लड़ रहे हैं, ताकि पत्नी को मुखौटा बनाकर ्रसारा राज-काज खुद चला सकें। ऋषिकेश की जनता ने दीप शर्मा को पार्षद का चुनाव हराकर उनकी पत्नी बीना शर्मा को भी हरा डाला।
बहरहाल, दीप शर्मा और डबल सिंह भंडारी की रणनीति पर पानी फिर चुका है। देखना है कि अभी इस प्रकार की राजनीति से अपने हित साधने वाले और कितने उदाहरण सामने आते हैं।