उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत जिस वाहन से प्रदेश भर में भ्रमण कर रहे हैं, उसका नंबर UK 07 GF 0009 लिखा गया है। इस प्रकार के वीवीआईपी नंबर अक्सर पैसे वाले लोगों को निर्गत होते हैं। क्योंकि इस प्रकार के नंबर नीलामी द्वारा बांटे जाते हैं।
नंबर के संदर्भ में जब देहरादून संभागीय परिवहन कार्यालय से जानकारी ली गई तो आरटीओ के अधिकारियों व कर्मचारियों ने गंभीर जांच के बाद बताया कि उक्त नंबर आरटीओ द्वारा निर्गत नहीं किया गया है। और न ही यह नंबर अभी तक आरटीओ में रजिस्टर्ड है।
उन्होंने बताया कि अभी तक इस नंबर की सीरीज ही शुरू नहीं हुई है। ईश्वर न करें यदि यह वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया या कोई इस वाहन की चपेट में आ गया तो किसी को फूटी कौड़ी का भी क्लेम नहीं मिलेगा। न वाहन में सवार किसी को क्लेम मिलेगा और ना ही यह गाड़ी किसी प्रकार की क्लेम की हकदार होगी। इस गाड़ी की चपेट में आने वाली दूसरे दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अथवा गाड़ी को भी कोई थर्ड पार्टी क्लेम नहीं मिलेगा।
मुख्यमंत्री जिस वाहन में चल रहे हैं, जब वह रजिस्टर्ड ही नहीं है तो समझा जा सकता है कि यह मुख्यमंत्री की सुरक्षा के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ है।
एआरटीओ अरविंद पांडे का कहना है कि शासन को एडवांस में नंबर आवंटित करने का अधिकार है किंतु यह नंबर अभी तक आरटीओ में रजिस्टर्ड है या नहीं इसकी जानकारी होने से उन्होंने इंकार कर दिया। 0009 जैसे लकी नंबर के प्रति यह अतिउत्साह प्रदेश सरकार के अंधविश्वास को भी दर्शाता है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत धार्मिक कर्मकांड में ज्यादा विश्वास नहीं रखते। संभवतः यही कारण था कि उन्होंने अनलकी कहे जाने वाले कैंट रोड स्थित मुख्यमंत्री निवास में पदभार संभालते ही शिफ्ट कर दिया था।
सफेदपोशों और बाहुबलियों द्वारा लकी नंबर नीलामी में खरीदे जाने का रिवाज भी रहा है। किंतु यदि कोई दुर्घटना होती है तो यह नंबर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए ही नहीं बल्कि प्रदेश के लिए भी अनलकी साबित हो सकता है।
एक ओर परिवहन विभाग कभी नियम निकालता है कि अब से बिना सिक्योरिटी नंबर के कोई गाड़ी सड़क पर नही घूम सकती है। कभी परिवहन विभाग यह कह कर सुर्खियां बटोरता है कि अबसे गाडी शो रूम से बाहर तब आएगी जब नंबर मिल जाएगा।अब यहां विभाग की भी बोलती बंद है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर परिवहन विभाग पर एडवांस में नंबर जारी करने का दबाव किस ओएसडी ने डाला और उसका मकसद क्या था!
यह नंबर रजिस्टर्ड न होने के कारण अवैध और फर्जी भी सिद्ध हो जाता है।