आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा के खिलाफ कार्यवाही को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने वाला राजभवन उसी विवि के कुलपति के खिलाफ मौन क्यों हुआ?
कुलदीप एस. राणा
आखिरकार आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति हाईकोर्ट को ही निरस्त करनी पड़ी, जबकि कायदे से यह नियुक्ति राज्यपाल को निरस्त करनी चाहिए थी। राजभवन जैसी संवैधानिक गरिमापूर्ण संस्था पर कोर्ट का यह हस्तक्षेप राजभवन की मर्यादा के लिए शुभ संकेत नहीं है।
एक तरफ तो कुलसचिव मृत्युंंजय मिश्रा की नियुक्ति प्रकरण पर राजभवन ने पिछले एक साल से सरकार को दर्जनभर पत्र लिखकर मुख्यमंत्री की नाक में दम कर रखा था, वहीं विवि के कुलपति पद पर सतेंद्र प्रसाद मिश्रा की पुन: नियुक्ति में आयु संबंधी अनियमितता पर राज्यपाल की चुप्पी ने राजभवन की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
दरअसल विवि में कुलसचिव की नियुक्ति सरकार द्वारा की गई थी और कुलपति की नियुक्ति राजभवन द्वारा की जाती है। इस अवैध नियुक्ति के खिलाफ एक याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाना पड़ा, क्योंकि राजभवन ने इस अवैध नियुक्ति पर कोई एक्शन नहीं लिया था।
कुलपति सतेंद्र प्रसाद मिश्रा पर आरएसएस के करीबी होने और इससे लाभ प्राप्त करने के भी आरोप लगते रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि संघ और भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व से आई एक सतेंद्र मिश्रा के नाम की एक पर्ची मात्र से २०११ में कुलपति पद पर मिश्रा की नियुक्ति हुई थी। इसके पश्चात मिश्रा ने राजभवन में अपनी नजदीकियां बढ़ा दी और तत्कालीन राज्यपाल अजीज कुरैशी के साथ संबंधों का लाभ लेकर २०१४ में कार्यकाल पूर्ण होने के बाद एक वर्ष का एक्सटेंशन भी करवा लिया। इसी दौरान कुलपति चयन प्रक्रिया आरंभ हुई तो हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित सर्च कमेटी के सम्मुख मिश्रा ने १२ पृष्ठों का अपना बायोडाटा भेजा, उसमें जन्मतिथि १४ जुलाई १९५१ दर्शायी।
गौरतलब है कि उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय अधिनियम २००९ के आयु संबंधी नियम के अनुसार कुलपति पद पर वर्तमान नियुक्ति तिथि के समय सतेंद्र प्रसाद मिश्रा ६५ वर्ष ५ माह और २४ दिन की आयु पूर्ण कर चुके थे, जबकि कुलपति पद की अधिकतम आयु सीमा ६५ वर्ष निर्धारित है। अर्थात मिश्रा कुलपति पद के लिए अनफिट हो चुके थे।
हाईस्कूल प्रमाण एवं यूनिवर्सिटी में पूर्व में जमा कराए गए बायोडाटा के अनुसार उनकी वास्तविक जन्मतिथि १४ जुलाई १९४९ है। इस तरह मिश्रा ने आयु में दो वर्ष का लाभ लेने की मंशा से सर्च कमेटी के सम्मुख आयु संबंधी गलत तथ्य पेश किए। बावजूद इसके सर्च कमेटी ने प्राप्त हुए तमाम आवेदनों में से राजभवन को जो नाम सुझाए, उनमें सतेंद्र प्रसाद मिश्रा का नाम भी सम्मिलित था। इन तमाम बातों से प्रतीत होता है कि मिश्रा का नाम कुलपति पद के लिए पहले ही तय हो चुका था। इसी बीच कुरैशी की उत्तराखंड राजभवन से विदाई तय हो गई और जाते-जाते वे सतेंद्र प्रसाद मिश्रा की कुलपति पद पर विवादास्पद नियुक्ति कर गए। उनके इस कृत्य से विदाई के बाद उनकी जमकर किरकिरी हुई।
संपूर्ण प्रकरण जब एक जनहित याचिका के माध्यम से उत्तराखंड हाईकोर्ट पहुंचा तो सतेंद्र प्रसाद मिश्रा को अपनी नियुक्ति और आजादी खतरे में दिखाई देने लगी। ऐसे में मिश्रा ने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए राजभवन को इस्तीफा सौंपकर इस मामले से खुद को बचाने का पैंतरा चला। राजभवन ने भी चुपचाप उनकाइस्तीफा सरकार की तरफ सरका दिया। ऐसे में सीधे-सीधे राजभवन सचिवालय की संलिप्तता स्पष्ट होती है।
सवाल यह है कि क्या मिश्रा के कुलपति पद से इस्तीफा देने भर से ही इन तमाम विवादों का अंत हो जाता है! जो व्यक्ति आयु जैसे महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाकर कुलपति पद पर नियुक्ति पा सकता है, क्या ऐसे व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यताओं और उसके कार्यकाल में विश्वविद्यालय में हुए महत्वपूर्ण निर्णयों पर संदेह उत्पन्न नहीं होता! खासकर तब जब इन्हीं के कार्यकाल में हुई प्री मेडिकल टेस्ट में बड़ी संख्या में मुन्नाभाइयों के पकड़े जाने की जांच अभी चल ही रही है। बावजूद इसके लगता है कि राजभवन ने विश्वविद्यालय के सबसे उच्च पद पर बैठे मुन्नाभाई मिश्रा को इन सभी संदेहास्पद गतिविधियों पर आंख मूंदकर उनका इस्तीफा स्वीकार कर उन्हें साफ बचा लिया।
उल्लेखनीय है कि राज्यपाल प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होने के कारण इन तमाम जिम्मेदारियों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। सतेंद्र मिश्रा की नियुक्ति में हुई इन तमाम अनियमितताओं पर जांच बैठाने के बजाय नियुक्ति प्रकरण में उच्च न्यायालय के आने वाले फैसले से डरे राजभवन द्वारा गुप-चुप तरीके से मिश्रा के इस्तीफे पर चुप्पी साध लेना राजभवन की साख पर भी
सवालिया चिन्ह लगाता है।
मिश्रा ने १२ पृष्ठों का अपना बायोडाटा भेजा, उसमें जन्मतिथि १४ जुलाई १९५१ दर्शायी, जबकि हाईस्कूल प्रमाण एवं यूनिवर्सिटी में पूर्व में जमा कराए गए बायोडाटा के अनुसार उनकी वास्तविक जन्मतिथि १४ जुलाई १९४९ है। इस तरह मिश्रा ने आयु में दो वर्ष का लाभ लेने की मंशा से सर्च कमेटी के सम्मुख आयु संबंधी गलत तथ्य पेश किए।