विचाराधीन कैदियों को पेशी पर लाए जाने के दौरान नहीं है भोजन की व्यवस्था। मानवाधिकारों के उल्लंघन पर प्रशासन लापरवाह
उत्तराखंड की विभिन्न जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की स्थिति काफी दयनीय है। पेशी पर लाए जाने के दौरान इन्हें भोजन नहीं दिया जा रहा। विचाराधीन कैदियों को न्यायालय में पेशी के लिए लाने के दौरान इनको दोपहर का भोजन नहीं दिया जा रहा है। इस संबंध में जब प्रदेशभर की जेलों से सूचना मांगी गई तो पता चला कि विचाराधीन बंदियों को न्यायालयों में पेशी के दौरान दोपहर का भोजन दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। न ही ऐसा कोई आदेश उच्च स्तर से प्राप्त है। कुछ जिलों से सूचना मिली कि अदालत में पेशी पर जाने वाले विचाराधीन बंदियों के दिन के भोजन का दायित्व पुलिस प्रशासन का होता है।
विचाराधीन कैदियों को न्यायालयों में पेशी पर ले जाने के लिए उनकी रवानगी 10 बजे और वापसी शाम लगभग 6 बजे तक होती है। 8 से 10 घंटे तक उन्हें भूखा रखा जाना एक तरह से उत्पीडऩ मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
अप्रैल 2014 में यह विषय इस संवाददाता द्वारा मानवाधिकार आयोग में उठाया गया था। मानवाधिकार आयोग के राजेश टंडन तथा हेमलता ढौंडियाल की संयुक्त पीठ ने 29 अप्रैल 2014 को यह आदेश जारी किए थे कि बंदियों को पेशी के दौरान पूरे दिनभर में एक लंबे समय तक भूखा रहना पड़ता है, इसलिए उन्हें कुछ न कुछ रिफ्रेशमेंट दिया जाना चाहिए।
मानवाधिकार आयोग में कारागार विभाग की ओर से रईस अहमद तथा महेंद्र सिंह पेश हुए थे और उन्होंने आयोग के आदेशों से अपनी सहमति भी व्यक्त की थी, किंतु इसका कोई पालन नहीं किया गया। मानवाधिकार आयोग ने कैदियों के लिए भोजन भत्ता रुपए 17.7 से बढ़ाकर रु. 50 किए जाने की संस्तुति भी की थी। मानवाधिकार आयोग की संस्तुतियों पर कोई गौर नहीं किया गया।
अभी तक की व्यवस्था के अनुसार जेल मैनुअल के प्रस्तर 442 में विचाराधीन बंदियों के लिए यह व्यवस्था दी गई है कि 1 अक्तूबर से 31 मार्च तक प्रात: 10 बजे से 11 बजे तथा गर्मियों में अप्रैल से 30 सितंबर तक प्रात: 9:30 से ११:30 बजे तक दोपहर का भोजन ग्रहण करने की व्यवस्था है। जेल मैनुअल में उपरोक्त व्यवस्था अनुसार पेशी पर जाने वाले बंदियों को न्यायालय में जाने से पहले कारागार में भोजन दे दिया जाता है। जिला कारागार हरिद्वार के जेलर से जब विचाराधीन कैदियों को अदालत में पेशी के दौरान दिन का भोजन की जानकारी मांगी गई तो जेलर का कहना था कि अदालत में पेशी पर जाने वाले विचाराधीन बंदियों के दिन के भोजन का दायित्व प्रशासन का होता है।
सुद्धोवाला जेल से जब बंदियों को दिए जाने वाले भोजन की जानकारी मांगी गई तो उनका कहना था कि दोपहर का भोजन बंदियों को 11 बजे के पश्चात दिया जाता है। जिला कारागार देहरादून के लोक सूचना अधिकारी अशोक कुमार के अनुसार कैदियों को प्रतिदिन दिए जाने वाले चाय-नाश्ता एवं भोजन की मात्रा में भी कुछ अंतर है, जैसे कि विचाराधीन बंदियों में श्रमिक विचाराधीन बंदियों को 350 ग्राम आटा दिया जाता है, जबकि साधारण सभी लोगों को 270 ग्राम दिया जा रहा है। इसके अलावा इनकी डाइट पर भी संदेह पैदा होता है, जैसे कि इन कागजों में कैदियों को प्रतिदिन ४६० ग्राम चावल तथा ७०0 ग्राम आटा दिया जाना दिखाया जाता है, किंतु हकीकत में ऐसा होता नहीं। सवाल उठता है कि मैनुअल के अनुसार यदि कैदियों को भोजन नहीं दिया जाता तो इसके बदले का बजट कहां जाता है! जिला कारागार नैनीताल की रिपोर्ट के अनुसार विचाराधीन बंदियों को 270 ग्राम का आटा दिया जाता है, जबकि सिद्ध दोष बंदियों के लिए 350 ग्राम आटा दिए जाने की व्यवस्था है। विचाराधीन कैदियों तथा सिद्ध दोष बंदियों को दिए जाने वाले आटे की मात्रा में यह अंतर क्यों है! इसकी कोई वजह साफ नहीं है। सवाल यह कि कैदियों के भी मानवाधिकार होते हैं। ऐसे में जब तक किसी व्यक्ति के खिलाफ अदालत द्वारा दोष सिद्ध न किया गया हो तथा वह विचाराधीन श्रेणी में हो, उसके साथ मानवाधिकार के प्रति अतिरिक्त सतर्कता बरतना प्रशासन का दायित्व है।