स्वास्थ्य महकमें को नीलाम करने का कुचक्र रचती त्रिवेन्द्र सरकार
पौड़ी जैसे चाकचौबंद अस्पताल को पीपीपी मोड पर देने की तैयारी
पीपीपी मोड की आड़ में मिलीभगत कर हो रहा बड़ा खेल
बीमार अस्पतालों की नहीं ली जा रही सुध
अजय रावत अजेय,पौड़ी
पौड़ी गढ़वाल। सेहत के नाम पर कारोबार कर रही कंपनियों व संस्थाओं से मिलीभगत कर सरकार द्वारा प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को निजी हाथों में सौंपने की कयावद शुरू कर दी गई है। कारोबारियों की नजर भी चाकचैबंद अस्पतालों पर ही है, इसी का नतीजा है कि सरकार द्वारा पौड़ी, टिहरी व घंडियाल जैसे अपेक्षाकृत सुगम अस्पतालों को पीपीपी मोड पर दिया जा रहा है, जबकि जोशीमठ व धारचूला जैसे अस्पतालों, जिनके लिए संस्थाएं रुचि नहीं ले रही, उनके बाबत ऐसा फैसला नहीं लिया जा रहा है।
पीपीपी मोड की आड़ में मिलीभगत कर हो रहा खेल
कुछ समय पूर्व सरकार द्वारा टिहरी अस्पताल को पीपीपी मोड पर देने की कागजी कार्यवाही पूरी कर ली गई है, जबकि हालिया फैसले के मुताबिक पौड़ी जनपद के जिला चिकित्सालय पौड़ी, सीएचसी घंडियाल व पाबौ को भी पीपीपी मोड पर देने की तैयारी शुरू कर दी गई है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पीपीपी मोड पर देने की अवधारणा के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि निजी हाथों में सौंपे जाने से ऐसे अस्पतालों का संचालन बेहतर तरीके से किया जा सकता है जिनमें सरकार द्वारा भेजे जा रहे डाक्टर सेवा देने को तैयार नहीं होते थे। लेकिन अब पीपीपी मोड की आड़ में सरकार द्वारा ऐसे अस्पतालों को ही पीपीपी मोड पर देने की तैयारी की जा रही है जिनके संचालन में निजी संस्थाएं सहर्ष तैयार हैं। जाहिर है इन संस्थाओं की नजर उन्ही अस्पतालों पर है जो उन्हे अपने कारोबार की दृष्टि से सुगम नजर आते हों। यदि पौड़ी के जिला चिकित्सालय की बात की जाए तो इस अस्पताल में वर्तमान में दो दर्जन से अधिक डाक्टर तैनात हैं, इस चिकित्सालय में लगभग सभी विभागों के विशेषज्ञ डाक्टर सहर्ष सेवाएं दे रहे हैं। वहीं सीएचसी घंडियाल में भी वर्तमान में चार डाक्टर सेवाएं दे रहे हैं। इन अस्पतालों को चलाने में वर्तमान में सरकार को किसी प्रकार की परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ रहा है, बावजूद इसके सरकार द्वारा पीपीपी मोड के जरिए कारोबार करने वाली संस्थाओं से मिलीभगत कर ऐसे अस्पतालों को नीलाम करने की पूरी तैयारी कर ली गई है।
इसके विपरीत जोशीमठ, धारचूला जैसे दुर्गम क्षेत्र के अस्पतालों में सरकार को व्यवस्थाएं बनाना किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन इस अस्पतालों को अधिग्रहीत करने के प्रति संस्थाओं को कोई दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में सरकार द्वारा केवल उन्ही अस्पतालों को पीपीपी मोड पर देने का प्रस्ताव किया जा रहा है जो कारोबारी संस्थाओं के मुनाफे के लिए मुफीद हों।
अच्छे नहीं हैं पूर्व के अनुभव
पूर्व में भी सरकार द्वारा उत्तरकाशी जिले के सीएचसी नौंगांव व देहरादून के रायपुर को भी पीपीपी मोड पर दिया गया था, लेकिन कुछ ही समय में सरकार के इस फैसले की हवा निकल गई, आखिर सरकार द्वारा इन अस्पतालों को पुनः स्वास्थ्य महकमें के अधीन लेने को विवश होना पड़ा। जनकल्याण से जुड़े इस महत्वूपर्ण दायित्व को निजी हाथों में सौंपे जाने से आम आदमी को अपेक्षित सेवाएं न मिलने से संबंधित क्षेत्र के ग्रामीणों में भी गहरा असंतोष देखने को मिला। वर्तमान में पीपीपी मोड पर चल रहे डोईवाला अस्पताल के हालात भी ठीक नहीं हैं, यह भी रैफरल सैंटर से अधिक कुछ नहीं रह गया है।
रैफरल सैंटर मात्र हो जाएंगे यह अस्पताल
यदि सरकार की योजना के अनुरूप निर्णय लिया जाता है तो वर्तमान में कुशल व विशेषज्ञ सरकारी डाक्टरों की मौजूदगी में चल रहे यह अस्पताल पीपीपी मोड पर जाने के बाद रैफरल सैंटर मात्र रह जाएंगे। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि पीपीपी मोड की इच्छुक अधिकांश संस्थाओं के बड़े बड़े चिकित्सालय दून घाटी में स्थित हैं। इसीलिए ऐसी संस्थाएं उन अस्पतालों को ही अधिग्रहीत करने में रुचि दिखा रही हैं, जिनकी दूरी देहरादून से अपेक्षाकृत कम हो, जिससे कि मरीजों को प्राथमिक सलाह अथवा उपचार देकर सीधे उनके देहरादून स्थित अस्पतालों तक रैफर किया जा सके। दरअसल, इस पीपीपी मोड के खेल के पीछे इन निजी अस्पताल के प्रबंधकों को भविष्य में बड़े मुनाफे के अवसर नजर आ रहे हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकार अथवा सरकार में पैठ रखने वाले प्रभावशाली लोग भी मुनाफे के इस खेल में बराबर के भागीदार हों।
जनदबाव का भी न होगा असर
यदि इन अस्पतालों को निजी हाथों में सौंप दिया गया तो जाहिर है भविष्य में डाक्टर, दवा व अन्य व्यवस्थाएं न होने की दशा में यदि जनता आंदोलन करती भी है तो उसका कोई असर इन संस्थाओं पर होने से रहा, सरकार के नियंत्रण से बाहर होने पर इन अस्पतालों के प्रति सरकार की जवाबदेही भी कम हो जाएगी। जाहिर है तब स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधा पर सरकार का नियंत्रण कम हो जाएगा जो आम व गरीब आदमी के लिए एक बड़ी मुसीबत का सबब बन जाएगा। यह भी तय है कि जिस जिला चिकित्सालय पौड़ी में वर्तमान में दो दर्जन से अधिक डाक्टर तैनात हैं, उसके पीपीपी मोड पर चले जाने के बाद चार से अधिक डाक्टरों का तैनात रहना भी संभव नहीं है, क्योंकि निजी संस्थाओं की प्राथमिकताएं जनकल्याण नहीं बल्कि विशुद्ध रूप से मुनाफा ही होती है।
केंद्र सरकार की मुहिम भी होगी धराशाई
एक तरफ राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी केंद्र सरकार की मदद से उत्तराखंड में एक मजबूत स्वास्थ्य कवच बनाने की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं, जिससे की हर व्यक्ति को सरकारी अस्पतालों के जरिए ही हर प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें, वहीं राज्य सरकार द्वारा चाक चौबंद अस्पतालों को इस तरह निजी हाथों में सौंपे जाने से सांसद बलूनी के प्रयासों को भी पलीता लगना तय है।
यदि राज्य सरकार उत्तराखंड में पीपीपी मोड को ही रुग्ण स्वास्थ्य सेवाओं का एकमात्र इलाज मानती है तो क्यों नहीं पौड़ी, टिहरी जैसे चाक चौबंद अस्पतालों के बजाए जोशीमठ व धारचूला जैसे अस्पतालों को निजी हाथों में सौंपती !
सरकार की इस जिद से साफ जाहिर है कि पीपीपी मोड के इस खेल में कहीं न कहीं सरकार द्वारा कोई बड़ा खेल किया जा रहा है। आम गरीबों के साथ यह खिलवाड़ सरकार के खिलाफ किसी प्रचंड विरोध का सबब बन सकता है।
निजी अस्पतालों का रिकार्ड भी नहीं संतोष जनक
जो भी निजी संस्थाएं इस पीपीपी मोड के जरिए पहाड़ के अस्पतालों को अधिग्रहीत करने की मंशा पाली हुई हैं, उनके अस्पतालों का रिकार्ड भी संतोषजनक नहीं है। अनेक भुक्तभोगी लोगों का कहना है कि उन्हे ऐसे अस्पतालों में भारी भरकम बिल चुकाने के बावजूद उचित इलाज नहीं मिल पाया, अनेक मामलों में तो लाखों खर्च करने के बाद उनके परिजनों की जान भी नहीं बचाई जा सकी।