कुलदीप एस. राणा
सरकार व शासन राजकीय शिक्षण संस्थाओं के सफल संचालन के प्रति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के नर्सिंग विभाग ने चंदर नगर स्थित स्टेट कालेज ऑफ नर्सिंग व स्टेट स्कूल ऑफ नर्सिंग में प्राचार्य के पदों का दायित्व राजकीय कर्मियों से हटा कर कॉन्ट्रेक्ट कर्मियों को सौंप रखा है।
पिछले वर्ष तक व्यवस्था के तहत दोनों संस्थानों में प्रिंसिपल का दायित्व हंसी नेगी संभाले हुए थी। लगभग 10 माह पूर्व हंसी नेगी के सेवानिवृत्त होने से रिक्त हुए दोनों पदों में से स्टेट कालेज ऑफ नर्सिंग में प्रभारी व्यवस्था के तहत प्राचार्य का दायित्व असिस्टेंट प्रोफेसर राजकीय कर्मी आशा गंगोला को सौंप दिया, जबकि स्टेट स्कूल ऑफ नर्सिंग की जिम्मेदारी स्कूल में कॉन्ट्रेक्ट पर अस्सिटेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत नेहवीस खालिदा को सौंप दिया गया।
दायित्व बंटवारे के उक्त निर्णय से पहला सवाल यह है कि जब विभाग के पास एक राजकीय कर्मी उपलब्ध था तो दूसरे संस्थान का दायित्व कॉन्ट्रेक्ट कर्मी को सौंपा जाना क्या नियम संगत है?
वहीं कुछ माह बाद स्टेट कालेज ऑफ नर्सिंग से भी आशा गंगोला से हटा कर प्राचार्य का दायित्व कॉन्ट्रेक्ट पर कार्यरत अस्सिटेंट प्रोफेसर लिटिल ट्रेजा को दे दिया गया।
शैक्षणिक संस्थानों से इस प्रकार राजकीय कर्मियों के स्थान पर कांटेक्ट कर्मियों को बैठा देने की उक्त कार्यवाही से विभाग के अधिकारियो की मंशा सवालों के घेरे में आ गयी है। एक कॉन्ट्रेक्ट कर्मी जो राजकीय संस्थान के प्रशासनिक कार्यों व राजस्व से जुड़े विषयों में नीतिगत निर्णय लेने का प्राधिकारी नहीं है, उसे कैसे संस्थान का उच्च दायित्व सौंपा जा सकता है। राजकीय कर्मी से वापस लेकर गैर राजकीय कर्मी को दायित्व देना कहाँ तक न्यायसंगत है !
नर्सिंग एसोसिएशन की प्रदेश अध्यक्षा मीनाक्षी जखमोला बेहद कड़े शब्दों में कहती हैं कि विभाग का यह निर्णय बेहद गैर जिम्मेदाराना है। कॉन्ट्रेक्ट कर्मियों से सम्बंधित एक आदेश में मुख्य सचिव ने भी स्पस्ट किया है कि कॉन्ट्रेक्ट कर्मी पर बहुत से राजकीय नियम लागू नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में विभाग कैसे उक्त प्रकार का निर्णय ले सकता है, जो राजकीय व्यवस्था के मानकों को पूर्ण नहींं करता हो !
नर्सिंग विशषज्ञों का भी मानना है कि विभाग का यह निर्णय बेहद अविवेकपूर्ण है। जिससे राजकीय संस्थानों का शैक्षणिक माहौल तो प्रभावित होगा ही, प्रशासनिक व्यवस्था भी बिगड़ सकती है।