मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का ताजा बयान उनके सहयोगियों से उनकी टकराहट को और बढ़ा सकता है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा अध्यक्ष की बैठक में न पहुंचने वाले अधिकारियों का बड़े तीखे ढंग से बचाव किया है और इसका ठीकरा विधानसभा अध्यक्ष सहित पत्रकारों के सर पर भी फोड़ दिया।
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मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा अध्यक्ष की बैठक में ना पहुंचने पर अधिकारियों का बचाव करते हुए कहा कि उन्हें बैठक की बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी इसलिए वह बैठक में नहीं पहुंच पाए। अधिकारियों का इस तरह से पक्ष लेने से राज्य में अफसरशाही के हौसले बुलंद हैं और मुख्यमंत्री के सहयोगी विधायक तथा मंत्री और भी अधिक हताश और निराश हो गए हैं।
जब विधानसभा अध्यक्ष ने पहली मीटिंग में नदारद रहे अफसरों से बैठक की जानकारी होने या ना होने के विषय में पूछा तो सिर्फ दो अफसरों ने ही यह कहा कि उन्हें जानकारी नहीं थी। हालांकि उनके जूनियर अफसर उस मीटिंग में आए थे। सवाल यह है कि जब उन्हें भी जानकारी नहीं थी तो उनके जूनियर अफसर मीटिंग में कैसे पहुंच गए !! जाहिर है कि पहली मीटिंग में आला अधिकारियों ने विधानसभा अध्यक्ष के फरमान को गंभीरता से नहीं लिया।
यह है 15 तारीख को भेजा गया पत्र
इससे पहले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट से भी मुख्यमंत्री अपनी जुदा बयान बाजी के लिए चर्चा में आ चुके हैं पहले विधानसभा सत्र गैरसैंण मैं आयोजित कराने या न कराने को लेकर सरकार और संगठन के बयान जुदा-जुदा थे।
मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद सहयोगियों में मुख्यमंत्री के प्रति नाराजगी और अधिक बढ़ गई है, तथा यह इस बात का संकेत माना जा रहा है कि उन्हें अपनी मनमर्जी से काम करने की छूट दे दी गई है।
गौरतलब है कि 19 दिसंबर को विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने ‘गैरसैंण विकास परिषद’ की बैठक बुलाई थी और उसमें एक दर्जन से भी अधिक अधिकारियों को बुलाया था। पर्वतजन के पास उपलब्ध पत्र के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय से 15 दिसंबर को ही बैठक में पहुंचने का पत्र सभी आला अधिकारियों को भेज दिया गया था और यह बैठक भी सुदूर गैरसैण में नहीं बल्कि देहरादून के विधानसभा भवन में विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में ही रखी गई थी।
जब इस बैठक में अधिकारी नहीं आए तो विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने यह बैठक टाल दी थी और अधिकारियों के बैठक में न पहुंचने पर काफी नाराजगी व्यक्त की थी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अधिकारियों का बचाव करके जनप्रतिनिधियों के हौसले पस्त कर दिए हैं।
मुख्यमंत्री का बयान विधानसभा अध्यक्ष को आइना दिखाने के रूप में लिया जा रहा है।
जब पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से इस तरह का सवाल पूछा तो उन्होंने कड़े शब्दों में पत्रकारों को ही डपट दिया। जबकि 15 दिसंबर को जारी हंसा दत्त पांडे के पत्र के अनुसार अपर मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव तथा सचिव सहित तमाम जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर इत्तला कर दी गई थी कि 19 दिसंबर 2018 को अपरहण 3:30 बजे देहरादून के विधानसभा भवन में विधानसभा अध्यक्ष के कमरे में परिषद की बैठक रखी गई है।
फिर मुख्यमंत्री कैसे कह सकते हैं कि अधिकारियों की इस बात की जानकारी ही नहीं थी !
पहले भी कई बार खटपट
विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल और त्रिवेंद्र रावत के बीच इससे पहले भी कई बार खटपट हो चुकी है।
हाल ही में संपन्न निकाय चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे को लेकर भी तनातनी रही।
डोईवाला में नगीना रानी की हार का ठीकरा प्रेमचंद अग्रवाल और उनके परिजनों पर भी फोड़ा गया कि उनके परिवार के लोगों ने नगीना रानी को वोट नहीं दिए।
विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल कई बार गैरसैण को राजधानी बनाने की बात भी कर चुके हैं।
प्रेमचंद अग्रवाल के बेटे की उपनल से नौकरी को नियम विरूद्ध बताने वाले लोगों ने आज तक सीएम के चहेतों की नौकरी पर कुछ साफ नहीं किया कि उनके लिए अलग से कौन से नियम तय हो गए !!