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दो विधानसभाओं के बीच झूलते प्रकाश पंत

November 5, 2016
in पर्वतजन
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गत 19 अक्टूबर 2016 को कोश्यारी के साथ पंत फिर से पिथौरागढ़ पहुंचे। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कोश्यारी ने कहा कि पंत संसदीय मामलों के अच्छे जानकार हैं और पिथौरागढ़ के लोगों को इनका उपयोग करना चाहिए। इसे पंत के पिथौरागढ़ से ही चुनाव लडऩे के रूप में लिया जा रहा है।
जगमोहन रौतेला

कभी भाजपा में भुवनचन्द्र खंडूड़ी और निशंक के विकल्प के रूप में मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार रहे पूर्व मंत्री प्रकाश पंत इन दिनों एक अदद विधानसभा सीट के लिए भटक रहे हैं। वह कभी लालकुआं तो कभी पिथौरागढ़ विधानसभा सीट की ओर ललचाई नजरों से देख रहे हैं, पर उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वह चुनाव कहां लड़ें? वैसे पंत की अपनी पुरानी सीट पिथौरागढ़ है, जहां से वह अब तक हुए तीनों विधानसभा चुनाव लड़े हैं। जिनमें दो बार उन्हें सफलता मिली तो एक बार असफलता।
उत्तर प्रदेश में प्रकाश पंत विधान परिषद के सदस्य थे। उत्तराखंड बनने के बाद जब राज्य में भाजपा की अंतरिम सरकार बनी तो वह विधानसभा अध्यक्ष बने। पहला विधानसभा चुनाव 2002 में उन्होंने पिथौरागढ़ विधानसभा सीट से लड़ा और कांग्रेस के मयूख महर को 7,179 वोटों से हराया। पंत को 16,015 तो कांग्रेस के मयूख महर को 8,836 वोट मिले। उक्रांद के रविन्द्र बिष्ट मालदार 8,285 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे। दूसरा विधानसभा चुनाव भी 2007 में प्रकाश पंत ने पिथौरागढ़ से ही लड़ा। तब उन्होंने उक्रांद छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए रविन्द्र बिष्ट को 5,990 वोट से हराया। पंत को 26,855 वोट तो कांग्रेस के बिष्ट को 20,865 वोट मिले। मयूख महर पिथौरागढ़ छोड़कर कनालीछीना पहुंच गए और उन्होंने उक्रांद के कद्दावर नेता काशी सिंह ऐरी को हरा कर सबको चकित कर दिया। प्रकाश पंत खंडूड़ी और निशंक की सरकार में संसदीय कार्य मंत्री बने।
राज्य में तीसरा विधानसभा चुनाव 2012 में हुआ तो प्रकाश पंत भाजपा उम्मीदवार के रूप में पिथौरागढ़ से फिर मैदान में उतरे। इस बार उनके सामने कांग्रेस के मयूख महर थे। जो नए परिसीमन में कनालीछीना सीट के खत्म होने के बाद पिथौरागढ़ वापस लौट गए थे। इस बार महर ने 2002 की हार का बदला पंत से लिया और उन्हें 13,197 वोटों के भारी अंतर से हराया। प्रकाश पंत के लिए यह बहुत बड़ा राजनैतिक झटका था। राज्य में बसपा, उक्रांद व निर्दलियों के सहयोग से कांग्रेस ने सरकार बनाई। विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने सितारगंज के भाजपा विधायक किरण मण्डल ने बहुगुणा के लिए विधानसभा की सदस्यता और पार्टी से त्यागपत्र दे दिया।
सितारगंज में जुलाई 2012 में उपचुनाव हुआ। कांग्रेस प्रत्याशी व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का सामना करने के लिए भाजपा के पास कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं था। तब भाजपा ने काफी विचार-विमर्श के बाद प्रकाश पंत को मैदान में उतारने का निर्णय लिया। मुख्यमंत्री के रूप में वैसे तो विजय बहुगुणा की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी, लेकिन वह विशाल अंतर से चुनाव जीत जाएंगे यह अनुमान पंत के सामने होने से कम ही था, पर बहुगुणा ने पंत को 34,954 वोटों के भारी अंतर से हराया। विजय बहुगुणा को 53,766 वोट तो भाजपा के प्रकाश पंत को केवल 13,812 वोट ही मिले। वह बड़ी मुश्किल से अपनी जमानत बचा पाए। करारी हार ने उनके राजनैतिक मनोबल पर भी असर डाला। कुछ समय सितारगंज में सक्रिय रहने के बाद उन्होंने नैनीताल जिले की लालकुआं विधानसभा सीट की ओर कदम बढ़ाए और बहुत ही सावधानी के साथ अपनी राजनैतिक गतिविधियां शुरू की। इससे पार्टी में उनके विरोधियों और चुनाव लडऩे वाले दावेदारों में खलबली भी मची और वे सावधान भी हो गए।
पंत की सक्रियता के साथ ही क्षेत्र में उनके ‘बाहरीÓ होने की बात भी तेजी के साथ फैली। उसकी काट के लिए उन्होंने लालकुआं विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत तल्ली हल्द्वानी में एक कोठी खरीद ली और गृह प्रवेश के दिन पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं को बड़े स्तर पर आमंत्रित किया। पार्टी में उनके प्रबल विरोधी नवीन दुम्का बने, जो क्षेत्र के ही दशकों पुराने स्थाई निवासी हैं और 2012 का चुनाव लड़ चुके हैं। तब वे निर्दलीय हरीशचन्द्र दुर्गापाल से हार गए थे। दुम्का की सक्रियता और क्षेत्र में उनकी स्वीकार्यता ने पंत को बैचेन कर दिया। पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं का साथ भी उन्हें उस तरह से नहीं मिला, जैसी उन्हें अपेक्षा थी। क्षेत्र व कार्यकर्ताओं से अनभिज्ञता भी इसका बड़ा कारण था। लालकुआं में लगभग ढाई साल तक सक्रिय रहने के बाद भी दाल गलती न देखकर पंत ने एक बार फिर से पिथौरागढ़ की ओर रुख किया।
गत 24 अगस्त 2016 को कार्यकर्ताओं की बैठक के बहाने पिथौरागढ़ की टोह ली। उसके बाद वह गत 2 सितम्बर 2016 को भगत सिंह कोश्यारी के साथ पर्दाफाश रैली को संबोधित करने पहुंचे, जबकि उसी दिन भुवनचन्द्र खंडूड़ी ने लालकुआं में पर्दाफाश रैली को संबोधित किया था। इसके बाद तो इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया कि पंत पिथौरागढ़ वापस लौट रहे हैं। वैसे पंत ने अपनी ओर से इस तरह का कोई इशारा नहीं किया है। इसके बाद वह पार्टी के कार्यक्रम में फिर से लालकुआं पहुंचे।
पार्टी के एक कथित सर्वे में भी पंत का नाम लालकुआं की बजाय पिथौरागढ़ से ही पैनल में रखा गया है। गत 19 अक्टूबर 2016 को कोश्यारी के साथ पंत फिर से पिथौरागढ़ पहुंचे। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कोश्यारी ने कहा कि पंत संसदीय मामलों के अच्छे जानकार हैं और पिथौरागढ़ के लोगों को इनका उपयोग करना चाहिए। इसे पंत के पिथौरागढ़ से ही चुनाव लडऩे के रूप में लिया जा रहा है।
पंत की दावेदारी के संकेतों के साथ ही उनका पिथौरागढ़ में विरोध भी शुरू हो गया है। टिकट के प्रमुख दावेदार सुरेश जोशी ने कहा कि पिछली बार हार के बाद पंत ने पिथौरागढ़ से चुनाव न लडऩे की घोषणा की थी। जिसके तहत वह पहले सितारगंज और फिर लालकुआं पहुंचे। मैं पिछले चार साल से चुनाव की तैयारी कर रहा हूं। अचानक अपनी दावेदारी जता कर पंत कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं।


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