उत्तराखंड में अब जबरन या धोखे से किए गए धर्म परिवर्तन गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आ गया है। सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया। कैबिनेट ने “उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक 2018” के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब यदि कोई व्यक्ति इस तरह के अपराध की श्रेणी के दायरे में आता है तो उस पर जुर्माने के साथ ही न्यूनतम एक वर्ष व अधिकतम पांच वर्ष की सजा हो सकती है।
जानकारी के अनुसार यदि कोई झूठ या बरगलाकर, लालच या अन्य किसी तरह का दबाव बनाकर धर्म परिवर्तन कराता है तो उसके खिलाफ तत्काल मुकदमा दर्ज करा दिया जाएगा। उक्त माामले में धर्म परिवर्तन करने वाला, उसकी मां, भाई, पिता आदि की शिकायत पर मुकदमा दर्ज कराया जा सकेगा।
इसके अलावा यदि अनुसूचित जति, जनजति या महिला का धर्म परिवर्तन किया जाता है तो ऐसे मामले में अर्थदंड के साथ से दो से सात वर्ष की सजा का प्रावधान होगा। यही नहीं अब उत्तराखंड में यदि कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से भी धर्म परिवर्तन करना चाहता है तो उसकी राह भी पहले जैसे आसान नहीं रह गई है। ऐसे व्यक्ति को संबंधित जिलाधिकारी को एक महीने पहले इसकी सूचना देनी अनिवार्य होगी। अगर कहीं सामुहिक धर्म परिवर्तन का आयोजन हाता है तो भी इसके लिए जिलाधिकारी को सूचित करना होगा। यदि इसका उल्लंघन कर गुपचुप तरीके धर्म परिवर्तित किया जाता है तो इसके लिए उक्त व्यक्ति को तीन माह व अधिकतम एक साल की सजा काटनी पड़ सकती है। एससी, एसटी या महिला से संबंधित मामलों में छह महीने से दो साल की सजा का प्रावधान है।
कैबिनेट में यह भी निर्णय लिया गया कि २००५ से पहले के अस्थायी यानि संविदा, अनुबंधित, दैनिक आदि अस्थायी कर्मियों को पेंशन की सुविधा को रोका जाएगा। इसके लिए ऐसे अस्थायी कर्मचारियों को पेंशन सुविधा से रोकने के लिए विधेयक लाया जाएगा। इस फैसले से प्रदेशभर के करीब डेढ़ लाख कर्मचारी सीधे-सीधे प्रभावित होंगे।
दरअसल ऐसे कर्मचारियों के लिए पेंशन सुविधा के लिए कोई कानून ही नहीं है, लेकिन कुछ सेवानिवृत्त कर्मियों ने नैनीताल हाईकोर्ट में इसकी पैरवी की। इस पर हाईकोर्ट ने ऐसे कर्मचारियों को पेंशन देने के आदेश दिए थे। सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में भी इसकी अपील की, लेकिन यहां से भी कोई फायदा नहीं मिल पाया और सुप्रीम कोर्ट ने भी कर्मियों को पेंशन लाभ देने के आदेश दिए। सरकारी खजाने पर अत्यधिक अतिरिक्त बोझ पडऩे के डर से कैबिनेट को यह निर्णय लेना पड़ा।