जॉलीग्रांट से एमबीबीएस कर छः माह पूर्व सेना अस्पताल में इंटरव्यू से नियुक्त पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की कैप्टन रेंक की बेटी को कर्नल बताने वाली अमर उजाला की खबर पर बधाइयों का अभियान चल रहा है। सेना में कैप्टन चुने जाना वाकई उत्तराखंड की इस बेटी के लिए फक्र की बात है लेकिन अमर उजाला की एक गलती के कारण बधाई स्वीकार करने वालों का मजा किरकिरा हो गया।
सेना के अस्पतालों में आमतौर पर एएफएमसी (आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज) के एमबीबीएस उत्तीर्ण छात्र डॉक्टर के रूप में सेवाएं देते हैं। डॉक्टरों की कमी पूरी करने के लिए बाहर से एमबीबीएस करने वालों को भी साक्षात्कार के द्वारा सीधी भर्ती दी जाती है। उन्हें कैप्टन का रैंक देकर मेडिकल ऑफिसर की जिम्मेदारी दी जाती है। उसके बाद आर्मी मेडिकल कोर के सेंटर लखनऊ में दो महीने का एमओबीसी (मेडिकल ऑफिसर बेसिक कोर्स) होता है।
एमओबीसी कोर्स में इन सिविल से आए मेडिकल अफसरों को सेना के नियमकानून, तौरतरीके, ड्रिल, पीटी-परेड, शिष्टाचार और अनुशासन सिखाया जाता है। सेना के तौर तरीके में ढलने की ट्रेनिंग के दौरान उन्हें प्रशिक्षित करके उनके तैनाती स्थलों के अस्पतालों को भेजा जाता है। प्रतिवर्ष उत्तराखंड से अनेक युवक युवतियां सेना में अधिकारी के पद पर नियुक्त होती हैं। ब्रिटिश काल से उत्तराखंड के सैनिकों और अफसरों का बोलबाला रहा है। जिसके अनगिनत उदाहरण है।
किंतु कुछ माह पहले डॉ निशंक की बेटी जब सेना के सीधे इंटरव्यू को पास करने के बाद रुड़की मिलिट्री अस्पताल में तैनात हुई तो मीडिया ने उसे एक दुर्लभ और ऐतिहासिक घटना बताया। उनके समर्थकों के फेसबुक वॉल पर उस कहानी को बढ़ा चढ़ाकर बताया गया। वैसे प्रकाश पंत की पुत्री का भी सेना में चयन होने पर पन्त समर्थकों ने भी इसे खूब प्रचारित किया था। ज्ञात रहे उससे पहले उत्तराखंड ऋषिकेश की एक बेटी वर्तिका जोशी जो नेवी में अफसर है, ने अपनी कुछ साथियों के साथ वोट से पूरी दुनिया का चक्कर काटकर भारत लौट चुकी थी।
नेताओं के बच्चों की साधारण सी उपलब्धि को भी नेताओं, उनके समर्थकों और मीडिया द्वारा बढ़ा-चढ़ा के बताना एक फैशन सा बन गया है। इसी क्रम में कल लखनऊ में डॉ निशंक की पुत्री की एमओबीसी की ट्रेनिंग को पासिंग आउट परेड की तरह पेश किया गया। अमर उजाला ने उनकी पुत्री को 6 माह में ही कर्नल भी बना दिया।
सेना में बाहर से एमबीबीएस करने वाले डॉक्टरों को 5 वर्ष की शार्ट सर्विस दी जाती है। परफॉर्मेंस के आधार पर अधिकतम 14 वर्ष तक लेफ्टिनेंट कर्नल के रैंक तक उनसे सेवाएं ली जाती है। मगर 6 माह के भीतर ही कर्नल की पदवी दिलाने की मीडिया की भेड़चाल उल्टी पड़ गई, जिसका जिम्मेदार अमर उजाला अखबार है।
यह घटना किसी अन्य प्रांत में घटी होती तो शायद किसी का ध्यान नहीं जाता, मगर उत्तराखंड जहां से हर घर से व्यक्ति सेना में है और वह सेना के रैंक और नियम कानूनों की जानकारी रखता है। उनके बीच अखबार खबर चलाकर अपनी भद पिटाने का ही काम किया है। पर्वतजन ने इस बारे में अमर उजाला के सम्पादक श्री हरीश से बात की। उन्होंने स्वीकार किया कि उनके अखबार ने गलत खबर कर दी है, अब खंडन छापा जायेगा।