फरवरी में ताबड़तोड़ चोरियों के कारण सजा के तौर पर रुद्रप्रयाग तबादले पर गए ओमवीर रावत को एक माह बाद ही वापस देहरादून में मलाईदार कुर्सी थमा दी गई
भूपेंद्र कुमार
आए दिन होने वाली चोरी और लूट की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाले पुलिस महकमे की नाकामी है। जिन थानेदारों के क्षेत्र में चोरियां होती हैं, उनके खिलाफ चहेता होने के कारण या फिर पहुंच के कारण कोई कार्यवाही नहीं हो पाती। जनता के गुस्से को ठंडा करने के लिए दिखावटीतौर पर लाइन हाजिर अथवा ट्रांसफर जैसी कार्यवाही होती भी हैं तो फिर से कुछ ही समय बाद उन्हें वापस मलाईदार कुर्सी थमा दी जाती है।
इस संवाददाता ने सूचना के अधिकार और मानवाधिकार आयोग का उपयोग किया तो जनता की आंखों में धूल झोंकने वाले ऐसे ही एक केस का खुलासा हो गया।
घटना फरवरी के महीने की है। पूरा देहरादून चोरी और लूट की घटनाओं से बुरी तरह टूट चुका था। पुलिस के हौसले पस्त थे और अपराधियों ने देहरादून के पॉश इलाकों में मात्र १० दिन में १० वारदातों को अंजाम दे दिया था। चोरों के सामने नतमस्तक पुलिस चकरघिन्नी बनकर रह गई थी।
इस संवाददाता ने मानवाधिकार आयोग में चोरियां रोकने में नाकाम पुलिस की कार्यशैली के खिलाफ २६ फरवरी २०१६ को शिकायत दर्ज कराई। अगले ही दिन इसकी सुनवाई करते हुए मानवाधिकार आयोग ने पुलिस महानिदेशक को निर्देशित किया था कि वह दो सप्ताह के अंदर पुलिस की गश्त से लेकर तमाम व्यवस्थाएं दुरुस्त करके मानवाधिकार आयोग को भी अवगत कराना सुनिश्चित करें।
मानवाधिकार आयोग के नाराजगी जताने पर आईजी संजय गुंज्याल ने थाना प्रभारियों की बैठक ली और एसओ रायपुर को हटाकर रुद्रप्रयाग भेज दिया।
मामला यह था कि सहस्त्रधारा रोड स्थित एक बिल्डर के ऑफिस में २६ फरवरी को चोरी हो गई थी, लेकिन रायपुर के एसओ ओमवीर रावत ने बिल्डर की शिकायत पर भी रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी। एसओ ओमवीर रावत का रुद्रप्रयाग ट्रांसफर होने पर उस क्षेत्र की जनता शांत हो गई, किंतु ट्रांसफर के कुछ दिन बाद ही ओमवीर रावत को देहरादून में ही मंडराते देख संवाददाता का माथा ठनका तो ट्रांसफर का सच जाने के लिए सूचना के अधिकार में ३१ अगस्त को इस संवाददाता ने पुलिस अधीक्षक ग्रामीण देहरादून और पुलिस अधीक्षक कार्यालय रुद्रप्रयाग से पूछ लिया कि थानाध्यक्ष ओमवीर रावत देहरादून से ट्रांसफर पर कब रवाना हुए और वह वापस देहरादून कब आ गए तथा इस बीच की समस्त तैनातियों की सूचना भी मांग ली।
सूचना के अधिकार में प्राप्त जानकारी से इस ट्रांसफर की कलई खुल गई। ओमवीर रावत ने २ मार्च को रुद्रप्रयाग पुलिस लाइन में ज्वाइन किया था, किंतु २० दिन बाद ही पुलिस महानिरीक्षक संजय गुंज्याल ने ही २२ मार्च को ओमवीर रावत को वापस देहरादून बुला दिया।
संजय गुंज्याल ने अपने आदेश में लिखा था कि परिक्षेत्रीय कार्यालय देहरादून में गठित विशेष जांच/अन्वेषण दल(भूमि) अर्थात एसआईटी में भूमि संबंधी प्रकरणों की अधिकता के दृष्टिगत जनपद रुद्रप्रयाग में नियुक्त उपनिरीक्षक ओमवीर रावत को तत्काल प्रभाव से जनपद रुद्रप्रयाग से देहरादून एसआईटी कार्यालय संबद्ध किया जाता है।
जाहिर है कि काम की अधिकता का सिर्फ बहाना ही बनाया गया था। यह ओमवीर रावत की ऊंची पहुंच का ही कमाल था। एसआईटी से संबद्धता के तीन माह बाद ही २१ जून को ओमवीर रावत को रानीपोखरी का थानेदार बना दिया गया था।
सवाल उठता है कि एसआईटी में काम की ऐसी भी क्या अधिकता थी कि पनिशमेंट पोस्टिंग पर रुद्रप्रयाग भेजे गए ओमवीर रावत को वापस बुलाना पड़ा।
यह भी अहम सवाल है कि क्या देहरादून में सब इंस्पेक्टरों की इतनी कमी हो गई थी कि रुद्रप्रयाग से बुलाना पड़ा। अथवा ओमवीर रावत के पास ऐसी भी क्या विशेषज्ञता थी, जो अन्य के पास नहीं थी।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या एसआईटी के काम की अधिकता दो माह बाद ही खत्म हो गई, जो उन्हें तीन महीने में ही रानीपोखरी की थानेदारी सौंप दी गई।
इससे साफ जाहिर होता है कि ओमवीर रावत का ट्रांसफर मात्र एक दिखावा था। ऐसे पता नहीं कितने केसों में पुलिस के अधिकारी दोषी थानेदारों के खिलाफ कार्यवाही के नाम पर जनता की आंखों में धूल झोंकते होंगे।
एक ओर पुलिस के कई सक्षम और साफ छवि के सब इंस्पेक्टर थानेदार बनने के लिए योग्यता रखते हैं, किंतु उन्हें जिम्मेदारी सौंपने की बजाय विवादित छवि के ओमवीर रावत जैसे ऊंची पहुंच वाले थानेदारों के कॉकस से पुलिस व्यवस्था बाहर नहीं निकल पा रही है।
ओमवीर रावत ने २ मार्च को रुद्रप्रयाग पुलिस लाइन में ज्वाइन किया था, किंतु २० दिन बाद ही पुलिस महानिरीक्षक संजय गुंज्याल ने ही २२ मार्च को ओमवीर रावत को वापस देहरादून बुला दिया।