राज्यपाल बेबीरानी मौर्य के फैसले पर उठे सवाल
राज्यपालों को सरकारों का रबर स्टैंप कई बार कहा गया है। ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि राज्यपालों द्वारा समय-समय पर इस प्रकार के निर्णय दिए गए, जिनके कारण न सिर्फ राजभवन की गरिमा को ठेस पहुंची है, बल्कि राज्यपाल जैसे पद पर भी सवाल खड़े हुए हैं। बेबीरानी मौर्य के उत्तराखंड का राज्यपाल बनने पर भी आशंका व्यक्त की जा रही थी कि वह भी मोदी सरकार की मुहर के रूप में काम करेंगी और उन्होंने अपने ताजा निर्णय से इस बात की पुष्टि भी कर दी है कि वह मोदी सरकार के फैसलों को ही आगे बढ़ाने का काम करेंगी। भारतवर्ष के सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष 12 हजार किसान आत्महत्या करते हैं। किसानों की आत्महत्या के पीछे जो प्रमुख कारण रहे हैं, उनमें से एक कारण वह भी है, जो अब राजभवन की ओर से जारी हुआ है।
8 सितंबर 2018 को राजभवन उत्तराखंड द्वारा राजभवन आने वाले आगंतुकों हेतु एक निर्देश जारी किया गया, जिसमें राज्यपाल की ओर से कहा गया कि माननीय राज्यपाल को मुलाकात के अवसर पर किसी भी प्रकार का पुष्प गुच्छ (फ्लॉवर बुके) न लाएं। सम्मानस्वरूप आगंतुक यदि चाहें तो एक पुष्प (फ्लॉवर बड) भेंट कर सकते हैं।
राज्यपाल श्रीमती बेबीरानी मौर्य द्वारा जारी किए गए इस आदेश को उत्तराखंड के लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के उस आदेश की छायाप्रति के रूप में देखा, जिसमें मोदी ने कहा कि आगंतुक उन्हें बुके (पुष्प गुच्छ) नहीं, बल्कि बुक भेंट करें। प्रधानमंत्री मोदी के इस आदेश के बाद पूरे देश में संदेश गया कि सरकार किसानों के प्रति गंभीर नहीं है। देश में लाखों किसान फूलों की खेती से अपनी जीविका चलाते हैं। फूलों की खेती करने के लिए भारत सरकार से लेकर राज्य स्तर पर तमाम तरह की योजनाएं गतिमान हैं। किसानों द्वारा फूलों की खेती के लिए बड़े स्तर पर पॉलीहाउस भी लगाए गए हैं। देश के लाखों किसान इस उम्मीद में फूलों की खेती करते हैं कि लोग पुष्प गुच्छ खरीदेंगे तो उनकी रोजी-रोटी चलेगी।
राजभवन उत्तराखंड में हर वर्ष पुष्प प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें प्रदेशभर से किसानों को बुलाकर पुष्प प्रदर्शनी लगाई जाती है। इस अवसर पर बेहतरीन काम करने वाले किसानों को प्रशस्ति पत्र व मेडल देकर सम्मानित भी किया जाता है। राजभवन में लगने वाली पुष्प प्रदर्शनी में सैकड़ों प्रकार के फूल इस बात की तस्दीक करते हैं कि वास्तव में यह स्वरोजगार का एक बहुत बड़ा साधन है। उत्तराखंड में फूलों से पुष्प गुच्छ बनाने से अधिक कोई दूसरा उपक्रम अभी तक नहीं है। मसलन फूलों से तेल निकालने से लेकर तमाम तरह की सुगंधित सामग्रियां बनाने के कारखाने उत्तराखंड में नहीं हैं।
राज्यपाल बेबीरानी मौर्य द्वारा भले ही यह आदेश सादगीपूर्ण तरीके मुलाकात का संदेश देने के लिए दिया गया हो, किंतु उनके इस आदेश से हजारों किसानों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं। जाहिर है राजभवन द्वारा इस प्रकार का आदेश जारी होने के बाद मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायकों, अधिकारियों द्वारा हर दिन खरीदे जाने वाले पुष्प और पुष्प गुच्छ का बाजार अब बंदी की कगार पर आ सकता है।
पिछले चार-पांच वर्षों में राजभवन में आयोजित बसंतोत्सव में बेहतर पुष्प उत्पादन के लिए लगातार अवार्ड जीतने वाले देहरादून के किसान राजेंद्र सिंह चौहान का कहना है कि पहले ही किसान की हालत पूरे देश में खराब है। किसानों के बारे में कोई भी फैसला लेने से पहले उनके हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए। अन्य देश में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याएं और अधिक बढ़ेंगी।
राज्यपाल के इस फैसले के संदर्भ में जब सूबे के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल से पूछा गया तो उन्होंने राजभवन का बचाव करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी इसी प्रकार एक फूल देने का आदेश जारी हुआ था और सरकारी कार्यक्रमों में फूलों की खपत वैसे भी ज्यादा नहीं है।
एक ओर सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बड़ी-बड़ी बातें करती है, वहीं दूसरी ओर अब फूलों की खेती से जुड़े लाखों किसान आशंकित हैं कि वे क्या करें। जाहिर है गरीब किसान जो कि बैंक से कर्ज लेकर फूलों की खेती कर रहा होगा, उसके सम्मुख यह परेशानी तो खड़ी हो ही गई है।
महामहिम राज्य की प्रथम नागरिक हैं और लोग उन से प्रेरित होते हैं तथा उन्हें फॉलो करते हैं। जाहिर है कि राजभवन में पुष्पगुच्छ इतनी अधिक मात्रा में तो नहीं आते हैं कि किसानों की बिक्री पर सीधा कोई असर पड़े, किंतु राज भवन द्वारा पुष्पगुच्छ स्वीकार न करने का फरमान इतना तो सांकेतिक है कि इससे पुष्प गुच्छ ना खरीदे जाने के प्रति एक माहौल तैयार हो सकता है। जिससे पुष्प उत्पादकों तथा विक्रेताओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।