वर्ष 1999 में कुछ समीक्षा अधिकारियों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद से आदेश प्राप्त कर प्रतीक्षा सूची के माध्यम से नियुक्ति पा ली थी। जिससे अन्य समीक्षा अधिकारियों की वरिष्ठता प्रभावित हुई।
पूर्ववर्ती राज्य उत्तर प्रदेश में कार्यरत चार समीक्षा अधिकारी एवं एक सहायक समीक्षा अधिकारी उत्तराखंड राज्य में त्रुटिपूर्ण ढंग से आवंटित हो गए जबकि जबकि पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत यह प्रावधान था कि ऐसे कार्मिक ही आवंटित होंगे, जिनकी नियुक्ति विवादास्पद ना हो जबकि इन चारों समीक्षा अधिकारियों तथा एक सहायक समीक्षा अधिकारी की नियुक्ति प्रथम दिन से ही विवादास्पद थी।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में कार्यरत समीक्षा अधिकारी अपनी मूल स्टेटस पर बने रहे, जबकि उत्तराखंड में आवंटित 4 समीक्षा अधिकारियों ने अपनी स्टेटस को छिपाते हुए संयुक्त सचिव स्तर की पदोन्नति प्राप्त कर ली।
माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की युगलपीठ ने प्रतीक्षा सूची से कार्यरत समीक्षा अधिकारियों की नियुक्ति अवैध घोषित कर दी जिस के उपरांत उन समीक्षा अधिकारियों द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय की शरण प्राप्त की गई।
उत्तर प्रदेश सरकार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दया आधार पर इन समीक्षा अधिकारियों को वर्ष 2005 में कार्यभार ग्रहण किए नवीन समीक्षा अधिकारियों के नीचे जेष्ठता देने का अनुरोध किया गया।
उत्तर प्रदेश सरकार के इस अनुरोध को मानते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 3 फरवरी 2014 को इन प्रतीक्षा सूची से कार्यरत समीक्षा अधिकारियों को वर्ष 2005 में नियुक्त समीक्षा अधिकारियों के नीचे जेष्ठता प्रदान की गई।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उत्तराखंड को आवंटित इन चार समीक्षा अधिकारियों एवं एक सहायक समीक्षा अधिकारी के संबंध में निर्णय लेने हेतु पत्र प्रेषित किया गया जिस के क्रम में तत्कालीन सचिव सचिवालय प्रशासन विभाग श्री पीएस जंगपांगी द्वारा न्याय विभाग एवं कार्मिक विभाग के परामर्श तथा उच्च अनुमोदन के पश्चात दिनांक 15 जुलाई 2015 द्वारा एक कार्यालय ज्ञाप निर्गत किया गया, जिसमें इन चार समीक्षा अधिकारियों की वरिष्ठता अंतिम रूप से क्रमांक 259ए, 252बी,259 सी तथा 259डी निर्धारित की गई।
सचिव सचिवालय प्रशासन के आदेश दिनांक 15 जुलाई 2015 के विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल में इन कार्मिकों के द्वारा रिट याचिका दाखिल की गई।
लेकिन कोई भी स्थगनादेश या अनुतोष प्राप्त नहीं किया जा सका। तदोपरांत इनके द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय से अनुतोष प्राप्त करने हेतु वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे को खड़ा किया गया लेकिन इतने के प्रयास के बावजूद भी इन कार्मिकों को कोई विशेष अनुतोष प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय नैनीताल को यह आदेशित किया कि इनकी रिट याचिकाओं का जल्द से जल्द निस्तारण सुनिश्चित किया जाए।
उल्लेखनीय है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल को जल्द से जल्द इन याचिकाओं का निस्तारण करने के आदेश दिए थे, जिस के क्रम में अपेक्षित तो यह था कि सचिवालय प्रशासन विभाग उच्च न्यायालय नैनीताल में विशेष अनुरोध करते हुए इन याचिकाओं का अंतिम रूप से निस्तारण कराने का प्रयास करता लेकिन सचिवालय प्रशासन विभाग ने अंतिम रूप से रिट याचिकाओं के निस्तारण करने के स्थान पर आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का प्रयास प्रारंभ कर दिया, जबकि इस प्रकार का कोई भी आदेश किसी भी सक्षम न्यायालय से प्राप्त नहीं था।
आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के प्रयास में सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा इन 4 कार्मिकों से यह एफिडेविट प्राप्त किया गया कि यदि इनकी जेष्ठता वर्ष 2004 में नियुक्त सीधी भर्ती के समीक्षा अधिकारियों के ऊपर निर्धारित कर दी जाए तो यह कार्मिक अपनी रिट याचिका वापस ले लेंगे अर्थात कहने का आशय यह है कि सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा अवैधानिक रूप से इन चार समीक्षा अधिकारियों को जेष्ठता उच्च स्थान प्रदान करने के लिए उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के माध्यम से नियुक्त वर्ष 2004 में तैनात समीक्षा अधिकारियों के हितों की बलि दे दी।
सीधी भर्ती के प्रथम बैच के वरिष्ठतम समीक्षा अधिकारी श्री विजय कुमार द्वारा रिट याचिका संख्या 236 / 2017 में माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल इन चारों रिट याचिकाओं के साथ अपने को संबंध कर लिया कहने का आशय यह है कि अब कोई भी रिट याचिका अकेले निस्तारित नहीं हो पाएगी बल्कि संयुक्त रुप से ही सुनी जाएगी।
इस तथ्य को अनदेखा करते हुए हाल ही में 10 सितंबर 2018 के द्वारा सचिवालय प्रशासन विभाग ने इन चार समीक्षा अधिकारियों को वरिष्ठतम स्टेटस प्रदान करते हुए पुनः अनंतिम जेष्ठता सूची जारी कर दी है।
विचारणीय प्रश्न यह है कि सचिवालय प्रशासन विभाग को जबकि अभी सभी मामले कोर्ट के विचाराधीन थे इतनी जल्दबाजी क्या थी कि बिना सक्षम न्यायालय के अंतिम आदेश प्राप्त किए हुए इन समीक्षा अधिकारियों के मध्य विवाद उत्पन्न कर दिया ! इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि अब समस्त पदोन्नतियां सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा रोक दी गई हैं, जिसके विरुद्ध अधिकारी संघ एवं सचिवालय संघ द्वारा रोष व्यक्त करते हुए सचिव सचिवालय प्रशासन से मिलने का प्रयास किया गया एवं कल आपातकालीन बैठक कर अंतिम निर्णय लिए जाने का फैसला किया गया है।