भूपेन्द्र कुमार
न्यायमूर्ति राजेश टंडन को उत्तराखंड लॉ कमीशन का अध्यक्ष बनाया गया है। विधायी एवं संसदीय कार्य विभाग उत्तराखंड शासन के प्रमुख सचिव आलोक कुमार वर्मा ने उन्हें कार्यभार ग्रहण कराया है।
जस्टिस टंडन ने आज ही 15 जनवरी को विधानसभा स्थित कार्यालय में कार्यभार ग्रहण कर लिया है। जस्टिस टंडन इससे पहले भी जनवरी 2017 को लॉ कमीशन के अध्यक्ष बनाए गए थे। उस दौरान उनका कार्यकाल अप्रैल 2018 तक था। फिर से उसी पद पर उनकी फिर से नियुक्ति की गई है।
जस्टिस टंडन उत्तराखंड सरकार को विभिन्न नीतियों के संदर्भ में सुझाव देंगे और वर्तमान कानूनों के सुधार आदि के लिए भी परीक्षण कर अपनी संस्तुतियां सरकार को प्रदान करेंगे और कानून बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के राय मशवरा भी उपलब्ध करवाएंगे।
जस्टिस टंडन कहते हैं कि उनकी प्राथमिकता में पर्वतीय राज्य के ग्रामीणों को ध्यान में रखते हुए कुछ विशेष कानूनों की संस्तुति करना भी शामिल है। इसके अलावा वर्तमान कानूनों में अपेक्षित संशोधन के लिए भी वह सरकार को प्राथमिकता से सुझाव देंगे।
जस्टिस टंडन गिनाते हैं कि उनकी प्राथमिकता में खाद्य सुरक्षा बेरोजगारी और निर्बल वर्ग के हितों के संरक्षण के लिए विभिन्न उपाय सरकार को सुझाना है।
सरकार की ओर से उन्हें आर्थिक उदारीकरण के लिहाज से पर्वतीय राज्य के हित में भी सुझाव दिए जाने का दायित्व सौंपा गया है। वह निष्प्रयोज्य कानूनों को भी समाप्त करने अथवा संशोधन करने के सुझाव भी सरकार को देंगे।
विभिन्न मंत्रालयों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने के लिए भी उनसे सरकार सुझाव लेगी।
लैंगिक समानता और नागरिक कठिनाइयों के निवारण के लिए भी उन्हें सुझाव देने का दायित्व सौंपा गया है। पाठकों को याद होगा कि अपने पिछले कार्यकाल में जस्टिस टंडन ने तीन तलाक के विषय में भी कानून बनाने के लिए संस्तुति दी थी साथ ही विभिन्न विश्वविद्यालयों के बायलॉज को मिलाकर एक मॉडल बायलॉज तैयार करने का कार्य भी उनके निर्देशन में चल रहा था। टंडन कहते हैं कि वह अपने वर्तमान कार्यकाल में उस कार्य को भी पूरा करेंगे। फिलहाल उनका कार्यकाल 1 साल के लिए तय किया गया है, जिसे उनके कार्य की अधिकता को देखते हुए बढ़ाया जाता रहेगा। पाठकों को याद होगा कि जस्टिस राजेश टंडन नैनीताल हाईकोर्ट के जज और मानवाधिकार आयोग के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।