कृष्णा बिष्ट
उत्तराखंड के दूरस्थ सीमावर्ती क्षेत्रों के प्रति उत्तराखंड की सुरक्षा एजेंसिया किस प्रकार उदासीन हैं, इस का जीता जागता उदाहरण हमें यदा-कदा मिलता ही रहता है। वर्तमान मामला बागेश्वर जिले से लगभग 50 किलोमीटर दूर बदियाकोट गाँव का है। जहाँ लगभग एक महीने से कुछ कश्मीरी बगैर सुरक्षा एजेंसियों की जानकारी के बड़े पैमाने पर पेड़ों के चिरान का काम कर रहे थे।
डी.एफ.ओ बागेश्वर, आर. के .सिंह कहते हैं,-” मेरे संज्ञान में बदियाकोट में इस प्रकार के किसी चिरान की जानकारी नहीं है, वैसे भी वन विभाग चिरान का कार्य नही करवाता। इस प्रकार का कार्य वन निगम द्वारा किया जाता है, जिसकी मुझे जानकारी नहीं है।”
स्थानीय निवासी नरेंद्र सिंह दानू केे मुुताबिक लगभग सात की टोली में आये ये तथाकथित कश्मीरी आलाव जला रात को जंगलों में घूमते तो थे ही, साथ ही दिन में खुद को वन विभाग का कर्मचारी बता कर क्षेत्र के ग्रामीणों पर धौंस भी जमाया करते थे। यहां तक कि कई बार जंगलों में इन को देख क्षेत्र के मूल निवासी डर कर अपने मवेशियों के साथ जंगल से घर भाग कर आ जाते थे, इन कश्मीरियो के विषय में पुलिस को भी तभी पता चला जब ग्रामीणों ने खुद इस कि सूचना बागेश्वर पुलिस को दी।
एस. ड़ी. एम कपकोट आर.अस.बिष्ट कहते हैं,-” कि यह वास्तव में काफी गंभीर मामला है, जैसे ही यह मामला मेरे संज्ञान में आया मैंने इन के साथ साथ सड़क के कार्य में लगे मज़दूरों के सत्यापन के निर्देश दे दिये हैं।”
पहले भी कुछ इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के एक युवक द्वारा सीमावर्ती क्षेत्र में बगैर अनुमति के प्रवेश कर लिया था, जो संदिग्ध अवस्था में गायब भी हो गया था, उसकी भी जानकारी प्रशासन को तब लगी, जब उसके घरवाले उसे ढूंढते हुए छत्तीसगढ़ से बागेश्वर पहुंचे थे। तब जाकर उसे ढूंढने को व्यापक अभियान चलाया गया था, किन्तु सफलता नही मिली। अब इधर कश्मीर से जिस प्रकार मज़दूर उत्तराखंड के दूरस्त क्षेत्रों का रुख कर रहे हैं, यह वाकई भविष्य में सुरक्षा की दृष्टि बहुत बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
सी.ओ कपकोट कहते हैं,-” हमारे द्वारा इन कश्मीरियो का सत्यापन कर लिया गया है, हम ने सब के फिंगर प्रिंट भी ले लिए हैं, इसी प्रकार की एक टोली कांडा में भी काम कर रही है उन का भी सत्यापन कर लिया गया है।”
इस विषय पर क्षेत्र से जिलापंचायत सदस्य रहे गोविंद दानू ने प्रशासन से इस प्रकार के व्यक्तियों की जल्द से जल्द पूरी जांच करने की मांग की है कि जिस प्रकार देश में बांग्लादेशियो, रोहिंग्या व माओवादियों का खतरा बढ़ रहा है, उस से उत्तराखंड को भी सचेत रहने की आवश्यक्ता है।