Google ने चिपको आंदोलन की 45 वीं वर्षगांठ पर अपना डूडल बनाया है।वर्ष 1973 में पेड़ों के अंधाधुंध कटान के खिलाफ शुरू हुए चिपको मूवमेंट ने पूरे विश्व का ध्यान हिमालय की ओर खींचा था। गौरा देवी और स्थानीय महिलाओं के इस आंदोलन को बाद में चंडी प्रसाद भट्ट और तत्कालीन पत्रकार सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे बढ़ाया जो बाद में पर्यावरणविद के नाम से विख्यात हुए।
वर्ष 1973 में सरकार ने चमोली के मंडल तथा रैणी गांव नामक इलाके के पेड़ों का ठेका एक स्पोर्ट्स कंपनी से कर दिया था। चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में इस आंदोलन ने गति पकड़ी और सुंदरलाल बहुगुणा सहित धूम सिंह नेगी बचनी देवी, सुनीता देवी आदि ने भी इस आंदोलन को अधिक विस्तार दिया।
जंगल को मायका कहने वाली स्थानीय महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर जंगलों के कटान का विरोध किया था। यह आंदोलन मूलतः सन 1730 में राजस्थान में खेजड़ी पेड़ों के कटान के खिलाफ चलाए गए आंदोलन से प्रेरित था। जिसमें राजस्थान की महिला अमृता देवी तथा 363 लोगों ने अपना बलिदान दे दिया था। वहां पर वहां के तत्कालीन जोधपुर के राजा के आदेश पर बिश्नोई गांव में पेड़ों का कटान किया जा रहा था।
आज हिमालय बांध और सड़कों के अवैज्ञानिक कटाव के कारण फिर से खतरे में हैं। नदियों में निर्माण कार्यों के डाले जा रहे मलबे के कारण और लगातार कट रहे पेड़ों के कारण फिर से हिमालय पर खतरा है। ऐसे में चिपको मूवमेंट को गूगल द्वारा याद किए जाने से पर्यावरणविद् काफी खुश हैं। आज का यह डूडल एस कोहली और विप्लव सिंह ने डिजाइन किया है। और हिमालय की महिलाओं की बहादुरी और उनके पर्यावरण संरक्षण को समर्पित है।