कृष्णा बिष्ट
एक साल पहले अल्मोड़ा के द्रोणागिरी-भरतकोट ट्रैक पर घूमने आए दक्षिण के कुछ पर्यटक भटक गए थे। घने जंगलों में वनाग्नि भड़की हुई थी। इससे रास्तों के सभी चिन्ह मिट गए और शाम के समय वे लोग एक चट्टान के ऊपर आकर फंस गए।
इत्तेफाक उनके मोबाइल सिग्नल काम कर रहे थे। उन्होंने रुद्रप्रयाग में तैनात अपनी एक अधिकारी दोस्त को फोन किया और उन्होंने अल्मोड़ा के जिला प्रशासन से मदद मांगी।
अल्मोड़ा जिला प्रशासन ने सारी स्थिति तुरंत अपने कंट्रोल में ले ली। फिर तत्कालीन जिलाधिकारी IAS सविन बंसल के नेतृत्व में जी आई एस लैब (भौगोलिक सूचना प्रणाली) की मदद से पर्यटकों की लोकेशन मांगी गई।स्मार्ट फोन से लोकेशन मिलते ही गूगल अर्थ पर लैब में लोकेशन प्लांट की गई और इस तरह से पर्यटकों के फंसे होने का पॉइंट मिल गया। बस फिर क्या था जीआईएस लैब में पहले से फीड डाटा के अनुसार उस एरिया तक जाने की सभी रास्ते चिन्हित किए गए। वहां तक पहुंचने केे तीन रास्तों के लिए तीन टीमें बनाई गई और टीम GPS की मदद से रास्ता देखते-देखते फंसे पर्यटक पहुंच गई। पर्यटकों ने जिला प्रशासन की काफी तारीफ की और यह मामला चर्चाओं में आ गया।
अल्मोड़ा की जीआईएस लैब की खूबियां शासन के अधिकारियों की नजर में आई तो उन्होंने भी इसकी काफी तारीफ की। जीआईएस लैब का दूसरा प्रयोग सविन बंसल ने अल्मोड़ा के विधानसभा चुनाव में किया। जीआईएस लैब में पहले से फीड डाटा के कारण अल्मोड़ा चुनाव की मॉनिटरिंग पूरी तरह से पेपरलेस थी। पोलिंग बूथ से लेकर सेक्टर इंचार्ज, वोटर आदि हर चीज की जानकारी जीआईएस लैब में फीड थी।
दरअसल अल्मोड़ा के जिलाधिकारी रहने के दौरान सविन बंसल लगातार आने वाली आपदाओं के कारण यह महसूस कर रहे थे कि कहीं आपदा आने पर प्रशासन के पास न तो पहले से ही वहां तक पहुंचने की जानकारी रहती है और न ही आस पास उपलब्ध स्कूल, डॉक्टर आदि कि सुविधाओं का कोई डाटा होता है , जिससे समय पर मदद पहुंचाने में मुश्किल होती है।
इस समस्या को देखते हुए सविन बंसल ने जिला स्तर पर एक ऐसी लैब की स्थापना करने की सोची जहां पर पूरे जिले का डाटा एकत्रित रहे और समय पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। इसमें उन्होंने पुलिस स्वास्थ्य केंद्र से लेकर आबादी, जनसंख्या आदि का सभी डाटा फीड कर दिया। इससे आसानी से यह निर्णय लिया जा सकता है कि किसी क्षेत्र में समय पर आपदा राहत खोज एवं बचाव कार्य कैसे किया जा सकता है !
मूलतः आपदा के तुरंत त्वरित प्रबंधन के लिए बनाई गई इस जीआईएस लैब की उपयोगिता विकास कार्यों में डुप्लीकेसी रोकने के लिए भी की जा सकती है।
शासन में सचिव आपदा प्रबंधन अमित नेगी को जीआईएस सेल के इस गठन की उपयोगिता इतनी भाई की उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को जनपदों में जी आई ए एस सेल गठित करने के लिए शासनादेश कर दिया। उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को अल्मोड़ा के इस प्रयोग की मिसाल देते हुए लिखा कि अल्मोड़ा में यह सेल सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा है, इसलिए इसी के अनुरूप सभी जिलों में इस लैब की स्थापना की जाए।
इस बीच सविन बंसल का स्थानांतरण शासन में हो गया। उन्हें अपर सचिव आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई। श्री बंसल ने आपदा प्रबंधन के तीन विषयों पर फोकस किया।
आपदा के समय संचार सेवाएं प्रभावित हो जाती हैं। दुर्घटना ग्रस्त इलाके तक पहुंच कर वास्तविक स्थिति जानना भी कठिन होता है तथा आस पास उपलब्ध संसाधनों से किस तरह त्वरित मदद पहुंचाई जाए इसकी भी आवश्यकता होती है।
इसके लिए उन्होंने तहसील स्तर पर सैटेलाइट फोन के साथ ही आपदाग्रस्त इलाकों की वास्तविक तस्वीर पाने के लिए ड्रोन कैमरा की भी व्यवस्था की। साथ ही हर जिले में जीआईएस लैब की स्थापना की जा रही है।
परिणाम यह है कि तहसील स्तर पर 44 सैटेलाइट फोन उपलब्ध करा दिए गए हैं और 33 और फोन उपलब्ध कराए जाने की प्रक्रिया जारी है।
इसके साथ ही हर जिले को एक ड्रोन उपलब्ध कराया जा रहा है। टिहरी और देहरादून में 22 ट्रेन उपलब्ध कराए गए हैं। अल्मोड़ा, नैनीताल, पिथौरागढ़। टिहरी और उत्तरकाशी में जीआईएस की स्थापना की जा चुकी है। देहरादून में भी मुख्यालय स्तर पर जीआईएस लैब पहले से ही स्थापित है। सविन बंसल कहते हैं कि सचिव अमित नेगी काफी समय से आपदा प्रबंधन की दिशा में काम कर रहे हैं और उनके प्रयासों से इस क्षेत्र में काफी सुधार किया जा रहा है।
वह कहते हैं कि जीआईएस लैब की मदद से आपदा प्रबंधन के साथ-साथ विकास कार्यों की मॉनिटरिंग भी प्रभावी तरीके से की जा सकती है।
फिलहाल जीआईएस लैब का मुख्य उपयोग आपदा प्रबंधन के लिए ही हो रहा है। इस लैब की उपयोगिता काफी हद तक जिला स्तर के अधिकारियों की सक्रियता पर भी निर्भर करती है। यदि सभी जिलों में अल्मोड़ा की तर्ज पर ही जीआईएस लैब में हर विभाग अपना डाटा फीड कर दे तो आपदा प्रबंधन से लेकर विकास कार्यों की गड़बड़ियां रोकने में भी खासी मदद मिल सकती है।