पर्वतजन के पाठकों को याद होगा कि श्रीनगर गढ़वाल के पास स्थित मलेथा में ग्रामीणों के व्यापक विरोध के बाद हरीश रावत सरकार ने स्टोन क्रेशर के लाइसेंस निरस्त कर दिए थे। स्टोन क्रेशरों के खिलाफ ग्रामीणों ने 1 महीने से भी अधिक समय तक व्यापक आंदोलन किया था।
तत्कालीन सरकार ने आंदोलनकारियों को जेल तक भेजा, लेकिन ग्रामीणों के हौसले डिगे नहीं। मजबूरन सरकार को स्टोन क्रेशरों का लाइसेंस निरस्त करना पड़ा था।
किंतु वर्तमान सरकार ने चुपके से स्टोन क्रेशर लॉबी के आगे घुटने टेक दिए हैं और उनके लाइसेंस बहाल कर दिए।
यह है आदेश
प्रमुख सचिव खनन आनंदवर्धन के हस्ताक्षर से क्रेशर लॉबी के लाइसेंस बहाल किए गए हैं। प्रमुख सचिव आनंदवर्धन ने 15 मई 2018 को जारी अपने आदेश में लिखा कि .638 हेक्टेयर में 200 टन प्रति दिन क्रेशर चलाने की अनुमति दी जाती है।
आनंदवर्धन ने स्टोन क्रशिंग, हॉट मिक्सिंग और स्क्रीनिंग प्लांट कि जो अनुमति दी है, इसकी जानकारी अभी तक स्थानीय प्रशासन को भी नहीं है।
टिहरी और पौड़ी गढ़वाल में जिन्हें भी इस बारे में बताया गया,वह सभी लोग सरकार के इस हैरतअंगेज कदम से आश्चर्य में है।
लोग जानना चाह रहे हैं कि प्रचंड बहुमत की सरकार के घुटने एक साल में ही खराब कैसे हो गए !
मलेथा में वर्ष 2016 में स्टोन क्रेशरों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले समीर रतूड़ी से जब पूछा गया तो उन्होंने भी आश्चर्य जताया और कहा कि सरकार बेनकाब हो गई है।
दरअसल सत्यम शिवम सुंदरम स्टोन क्रेसर पिछली सरकार के आदेश के खिलाफ जब कोर्ट गया था तो कोर्ट ने 24 नवंबर 2017 को आदेश दिया था कि क्रेशर मालिकों को नहीं सुना गया है, इसलिए सभी पक्षों को सुनकर निर्णय लिया जाए।
29 जनवरी 2018 को हुई सुनवाई के बाद सरकार ने 3 साल के लिए स्टोन क्रेशर की संचालन की अनुमति जारी भी कर दी। जाहिर है कि सरकार के इस आदेश के खिलाफ ग्रामीण दोबारा से आंदोलन शुरु कर सकते हैं।