उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ऐसे कॉकस में फंस गए हैं कि उन्हें बाहर आने का रास्ता ही नहीं मिल रहा है। कॉकस ने उन्हें इस कदर जकड़ लिया है कि अब उन्हें अपनी विधानसभा डोईवाला में भी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है।
एक ओर ट्रांसफर एक्ट को लेकर सरकार फंसी हुई है, वहीं मुख्यमंत्री की विधानसभा में उनके कारिंदों ने मुख्यमंत्री के लिए कई तरह की मुसीबतें खड़ी करनी शुरू कर दी है। ट्रांसफर एक्ट की आड़ में जो नई मुसीबत डोईवाला विधानसभा के लिए खड़ी हुई है, वह गौर करने वाली है।
ग्राम्य विकास विभाग, जिसके मुखिया स्वयं मुख्यमंत्री हैं, के अंतर्गत खंड विकास अधिकारियों के प्रदेशभर में स्थानांतरण की बात सामने आई तो वीवीआईपी विधानसभा डोईवाला का मसला भी चर्चा में आया। चूंकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी विधानसभा डोईवाला को अधिकांश छुट्टी के दिन अथवा रविवार को ही समय दे पाते हैं। ऐसे में अपनी विधानसभा में जनता दरबार से लेकर तमाम कार्यक्रम छुट्टी के दिन ही आयोजित किए जाते हैं।
कभी-कभी दूरदराज के कार्यक्रमों से लौटकर देर रात तक अपनी विधानसभा में कार्यक्रम में शामिल होते हैं। मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में जिला स्तर से लेकर ब्लॉक व तहसील स्तर के कार्मिकों का रहना स्वाभाविक रहता है। जून में स्थानांतरण एक्ट के हो-हल्ले के बीच टिहरी की जाखणीधार ब्लॉक के खंड विकास अधिकारी वीर सिंह राणा ने स्थानांतरण पत्र को भरते वक्त उसमें स्पष्ट रूप से लिख दिया कि अगले वर्ष अक्टूबर में उनकी सेवानिवृत्ति तय है और लंबे समय से वे दुर्गम में काम कर रहे हैं, किंतु अब रिटायरमेंट के लिए उन्हें कहीं और न भेजा जाए, क्योंकि उनके परिजन और नाती-पोते भी टिहरी के घनसाली में रहते हैं।
वीर सिंह राणा मूल रूप से घनसाली टिहरी के ही रहने वाले हैं। उनके द्वारा बचे हुए एक साल के कार्यकाल के लिए स्थानांतरण न करने के अनुरोध के बावजूद मुख्यमंत्री की किचन कैबिनेट के लोगों ने राणा का स्थानांतरण मुख्यमंत्री की विधानसभा के डोईवाला विकासखंड में कर दिया। जिस व्यक्ति ने जीवनभर देहरादून जैसे स्थानों पर स्थानांतरण करवाने के लिए न कभी कोई तिकड़मबाजी की, न अब इच्छा जाहिर की, बल्कि उन्होंने जाखणीधार में रहने के लिए ही अनुरोध किया। इसके बावजूद वीवीआईपी विधानसभा में एक ऐसे बुजुर्ग होते जा रहे अधिकारी का जबर्दस्ती स्थानांतरण करना किसी के गले नहीं उतरा।
ट्रांसफर एक्ट के अनुसार 55 साल की आयु पूरी कर चुके वरिष्ठ कर्मचारी को ट्रांसफर में छूट मिलती है और उनका ट्रांसफर कम से कम दुर्गम से सुगम में इच्छा के विपरीत तो नहीं ही किया जाना चाहिए।
59 वर्षीय वीर सिंह राणा अब यदि डोईवाला ब्लॉक में ज्वाइन करते हैं तो उन्हें अपना घर-परिवार एक वर्ष के लिए डोईवाला के आसपास सजाना होगा। मुख्यमंत्री के देर रात तक के कार्यक्रमों और छुट्टी के दिन के कार्यक्रमों में यदि नहीं पहुंचे तो सरकार की गाज उन पर गिरनी तय है। राणा अब चाहकर भी छुट्टी के दिन घर में नहीं रह सकते।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जुड़े इस ताजातरीन मामले से समझा जा सकता है कि स्थानांतरण एक्ट, स्थानांतरण नीति को सरकार में बैठे ताकतवर लोग पढऩे को भी राजी नहीं। यहां तक कि रिटायरमेंट के मुहाने पर खड़े कर्मठ कार्मिकों की भी बात सुनने को कोई राजी नहीं। जाहिर है इस तरह के फैसलों से न सिर्फ कार्य प्रभावित होगा, बल्कि ऐसे कार्मिक आउटपुट भी नहीं दे पाएंगे और अगले वर्ष अक्टूबर में वीर सिंह राणा के सेवानिवृत्त होते ही त्रिवेंद्र रावत को डोईवाला विकासखंड के लिए कोई और खंड विकास अधिकारी लाना ही होगा। ट्रांसफर के इस खेल से इस बात की भी आशंका गहरा रही है कि यह खेल इसलिए भी खेला गया, ताकि अगले वर्ष अक्टूबर में चौथे माले का चहेेेेता कोई खास प्यादा इस सीट पर बिठाया जा सके।