उत्तराखंड कांग्रेस में २०१७ के विधानसभा चुनाव के बाद मचा कोहराम थराली उपचुनाव के परिणाम के बाद एक बार फिर तब सामने आया, जब कांग्रेस के नेताओं ने हरीश रावत पर पार्टी लाइन से अलग हटकर घाट ब्लॉक में बहुत बड़ी रैली कर भाजपा को चेताने वाला बताया और उसके बाद भाजपा ने अपनी पूरी ताकत घाट ब्लॉक पर झोंक दी।
हरीश रावत पर उठे सवालों पर हरीश रावत कई बार ब्यौरावार जवाब दे चुके हैं। चुनाव हारकर प्रो. जीतराम भले ही वापस नैनीताल विश्वविद्यालय चले गए, लेकिन थराली उपचुनाव के बाद मचा घमासान अभी और तेज होने के आसार हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह द्वारा बगावत कर लडऩे वालों से लेकर कांग्रेस से निष्कासित किए गए पुराने नेताओं की घर वापसी के लिए रेड कार्पेट बिछाने की बात कहने के बाद दिग्गजों में तलवारें खिंचना तय है। यदि प्रीतम सिंह बागियों को कांग्रेस में वापस लाने का प्रयास करते हैं तो उनके बागियों को खुश करने के चक्कर में अपनी पार्टी के तमाम नेताओं के कोपभाजन का शिकार होने की पूरी संभावना है। जिस प्रकार का कांग्रेस का धड़ा बिना सत्ता में रहे हुए सिरफुटव्वल में लगा हुआ है, उससे नहीं लगता कि प्रीतम सिंह के लिए यह राह इतनी आसान होगी।
प्रीतम सिंह से पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे किशोर उपाध्याय सहसपुर विधानसभा से इसलिए चुनाव हार गए, क्योंकि कांग्रेस के आर्येंद्र शर्मा ने उनके खिलाफ बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा। रुद्रप्रयाग विधानसभा से कांग्रेस की लक्ष्मी राणा इसलिए चुनाव हार गई, क्योंकि कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष प्रदीप थपलियाल बगावत कर चुनाव लड़े। देवप्रयाग से कांग्रेस के मंत्री प्रसाद नैथानी को इसलिए चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि कांग्रेस के पूर्व मंत्री शूरवीर सजवाण ने बगावत कर देवप्रयाग से निर्दलीय चुनाव लड़ा।
घनसाली में पार्टी प्रत्याशी भीमलाल आर्य की हार का मुख्य कारण बागी धनीलाल शाह थे तो प्रतापनगर में विक्रम सिंह नेगी की हार का कारण बागी मुरारी लाल खंडवाल रहे। पीसी भारती ने राजपुर रोड विधानसभा से कांग्रेस के राजकुमार का खेल खराब किया तो रजनी रावत धर्मपुर और रायपुर से कांग्रेस को हराने का काम करती रही। धर्मपुर से नूरहसन भी कांग्रेस के खिलाफ बगावत कर चुनाव लड़े।
ऋषिकेश से विजय लक्ष्मी गुसाईं, यमुनोत्री से प्रकाश रमोला, यमकेश्वर से रेनू बिष्ट, कालाढुंगी से महेश शर्मा, ज्वालापुर से बृजरानी देवी कांग्रेस को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कांग्रेस छोड़कर निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले एकमात्र रामसिंह कैड़ा ही भीमताल से चुनाव जीतने में सफल रहे, जो अब भारतीय जनता पार्टी के एसोसिएट सदस्य बन चुके हैं।
कांग्रेस में वर्चस्व की जंग में प्रीतम सिंह, हरीश रावत, इंदिरा हृदयेश और किशोर उपाध्याय इन चारों नेताओं ने अपने-अपने गुट उस दौर में भी तैयार किए हुए हैं, जबकि कांग्रेस के पास मात्र ११ विधायक हैं।
देखना है कि निकाय चुनाव और लोकसभा चुनाव २०१९ से पहले प्रीतम सिंह की यह पहल कितना रंग लाती है।