विनोद कोठियाल, देहरादून
उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून के सचिवालय और मुख्यमंत्री निवास की तरफ जाने आने वाले आप सभी लोगों ने सचिवालय के पास की सड़कों के किनारे लगी पाम ट्री की कतारें जरूर देखी होंगी।
अक्सर आपके मन में एक सवाल भी उठता होगा कि यह किसने लगाई! कब लगाई और क्यों लगाई होगी ! आइए आज इसका खुलासा करते हैं। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनने के बाद पहली बार पिछले वर्ष नौ-दस सितंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह देहरादून आए थे।
अमित शाह की अचूक रणनीति के कारण सत्तासीन हुई उत्तराखंड की प्रचंड बहुमत की सरकार में अमित शाह का इतना खौफ था कि रातों-रात उनके स्वागत में, जहां जहां से उन्हें गुजरना था, सभी सड़कें इतनी चकाचक कर दी गई थी, जैसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन पर भी नहीं होती।
इसी तैयारी में रातों-रात देहरादून की एक नर्सरी से मंगवा कर 10-12 फीट के 50 पाम ट्री सचिवालय से होकर राजपुर रोड को मिलाने वाली सड़क के किनारे-किनारे रोप दिए गए।
सुबह देहरादून वासियों ने यह कायापलट देखा तो वह भी दंग रह गए थे। अमित शाह मात्र दो दिन के लिए देहरादून आए थे और ताबड़तोड़ बैठकों के बाद निकल गए उनके जाने के बाद सरकार भी इन पाम ट्री को भूल गई और वन विभाग भी।
नतीजा यह हुआ कि मात्र 9 महीने में ही यह सभी पाम ट्री सूख चुके हैं और एक दर्जन से अधिक पाम ट्री तो भूलुंठित भी हो चुके हैं।अब नौ महीने बाद 24 जून को अमित शाह फिर आ रहे हैं।
यदि अमित शाह को नौ माह पहले दिए गए अपने निर्देशों की भ्रूण हत्या देखनी हो तो इन पाम ट्री का हश्र देख सकते हैं। उनके निर्देश भी सरकार ने इसी तरह नेपथ्य में डाल दिए हैं।
पर्वतजन ने पता लगाया कि आखिर इन पाम ट्री को किसने लगाया ! इस में कितनी लागत आई ! और इनका यह हश्र क्यों हुआ !
आइए डालते हैं एक नजर
ये पाम ट्री अमित शाह के दौरे से दो-चार दिन पहले दो से तीन सितंबर के मध्य लगाए गए थे। कुल 50 पाम ट्री को लगाने में वन विभाग देहरादून ने 4 लाख 54 हजार 738 रुपए भुगतान किए। इसे लगाने का ठेका आनंद ट्रेडिंग कंपनी देहरादून को दिया गया था। इस का फरमान सीधे शासन स्तर से देहरादून वन विभाग को दिया गया था। और यह कार्य कैंपा परियोजना द्वारा शहरी वृक्षारोपण के मद में कराया गया था।
अब कुछ अहम् सवाल
जिस जमीन पर यह पौधे लगाए गए हैं, वह जमीन न तो वन विभाग की है और न ही सचिवालय अथवा सरकार की यह एक निजी संपत्ति है। इसका विवाद हाई कोर्ट में भी लंबित है।
पहला सवाल यह है कि वन विभाग ने किसी की निजी संपत्ति और विवादित जमीन पर यह 50 पेड़ लगाने के लिए आखिर किसकी अनुमति ली ? क्या यह एक आपराधिक तानाशाही भरा कृत्य नहीं है !
दूसरा सवाल यह है कि वन विभाग के अधिनियम के अंतर्गत मात्र 3 फुट तक के ऊंचाई वाले पौधे ही रोपे जा सकते हैं। फिर 10-12 फुट लंबे पाम ट्री को एक जगह से लाकर दूसरी जगह रोपने का औचित्य और अनुमति नियम विरुद्ध किसके द्वारा दी गई ? और इसके लिए किसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए !
तीसरा सवाल यह है कि वन अधिनियम के अंतर्गत मात्र 2 साल तक के पौधे ही रोपे जा सकते हैं। इन पौधों को 10 फुट लंबा होने में लगभग 6 साल लग जाते हैं, फिर इन 6 साल के पौधों को दूसरी जगह ले जाकर रोपने के लिए कौन जिम्मेदार है ?
गौरतलब है कि 2 साल बाद तथा 3 फुट ऊंचाई होने के बाद पौधों की जड़ें जमीन में इस तरह स्थापित हो जाती हैं कि एक जगह से उखाड़कर दूसरी जगह लगाने पर वह सफलता से प्रत्यारोपित नहीं हो पाते।
चौथा सवाल यह है कि वृक्षारोपण के लिए 4,54,738 रूपये भुगतान किया गया। इन पौधों की खरीद सीधे एक कंपनी से क्यों की गई ? इसके लिए खरीद नीति या टेंडर आदि का अनुपालन क्यों नहीं किया गया ?
पांचवा सवाल यह है कि जब इतने बड़े पौधे रोपे गए तो उसके बाद फिर कभी वन विभाग के किसी अधिकारी अथवा किसी जिम्मेदार अधिकारी ने इन पौधों की देखभाल अथवा सिंचाई आदि व्यवस्था सुनिश्चित क्यों नहीं की ?
मात्र अमित शाह को दिखाने के लिए न सिर्फ इन 50 पेड़ों की हत्या कर दी गई, बल्कि सरकार के साढे चार लाख रूपये भी मिट्टी में मिला दिए गए।
क्या इस तरह के गैर जिम्मेदार कृत्यों के लिए किसी की जिम्मेदारी फिक्स नहीं की जानी चाहिए ! आनंद ट्रेडिंग कंपनी के मालिक चंद्र बहादुर का कहना है कि वन विभाग ने उनके एक लाख रुपये भी मार दिए हैं और उसे भी पूरा भुगतान नहीं किया।
सवाल यह भी है कि जब वन विभाग के दस्तावेजों के अनुसार 4,54,738 रुपए भुगतान किया जा चुका है तो पेड़ों की सप्लाई करने वाली एजेंसी का एक लाख रुपये कहां चला गया ? वन विभाग के अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर यह जरूर कहते हैं,-” सरकार को यह खर्च और इस तरह का वृक्षारोपण बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए था। लेकिन उच्चाधिकारियों के फरमान के आगे उनकी कोई नहीं सुनता है।”
एक ओर सरकार रिस्पना नदी के किनारे अतिक्रमण हटाने के बजाय उसके किनारे पांच लाख पेड़ लगाने की बात कह रही है,वहीं सचिवालय के बगल में 50 वीआईपी पाम( खजूर) के पेड़ सूख गए।फिर भी यहाँ से दिन रात गुजरने वाले मंत्री-संतरी को शर्म मगर आती नही।