देहरादून:- सीएम के जनता दरबार में महिला शिक्षिका का हंगामा, ट्रांसफर को लेकर शिक्षिका ने किया हंगामा, सुरक्षा कर्मियों ने महिला शिक्षिका को जनता दरबार से लिया बाहर ।
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कर्मचारी नेता तथा समाजसेवी जगमोहन मेंदीरत्ता कहते हैैं -“आज जनता दरबार मे एक शिक्षिका जो कि 25 वर्ष से दुर्गम क्षेत्र में तैनात थी, एवम् सुगम क्षेत्र में ट्रांसफर कि मुख्यमंत्री से अपील कर रही थी एक मुख्यमंत्री का गुस्से में महिला को निलंबित करने व गिरफ्तार करने के आदेश दिए गए। क्या जनता दरबार मे कोई फरियाद करना गुनाह है तो यह नाटक बंद कर देना चाहिए। एक मुख्यमंत्री का गुस्से में आकर इस प्रकार महिला का अपमान समूचे महिला समाज का अपमान है। हम इसकी घोर निंदा करते हैं।”
उत्तरकाशी जिले के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष तथा समाजसेवी नागेंद्र जगूड़ी नीलांबरम कहते हैं,-“चाँस की बात है कि मैं उस वक्त फेस बुक पर ऑन लाइन सब देख सुन रहा था। वह अध्यापिका निवेेदन कर ही रही थी कि मैं कई प्रार्थना पत्र दे चुकी हूँ लेकिन भ्रष्टाचारी लोग कोई सुनवाई नहीं कर रहे। फिर कुछ सुनाई नहीं पड़ा –अचानक मुख्यमँत्री भड़क गये –सस्पेँड कर दूँगा —नौकरी से बर्खास्त कर दूँगा। जेल भेज दूँगा ।इसे गिरफ्तार कर लो -/– वाह रे —सत्ता !!वाह रे कुपात्र !! सत्ता का ऐसा घमण्ड ? कोदे के पेड़ !!! नौकरी तो दे नहीँ सकते।तुमको इसलिए चुना कि तुम जनता की बेटियों को नौकरी से निकालते रहोगे ? आज शीला रावत को निकाला। उसकी जगह लाखों रुपये रिश्वत लेकर अपने प्रचारक की बीबी लगा दी ।क्या ये प्रदेश तुम को दाखिला खारिज में पिताजी की जागीर में मिला है ? लोकतँत्र है। कानून का शासन है। सँविधान है डराने के लिए तुम को एक विधवा औरत ही मिली ? कोदे के पेड़ !! सुपात्र बन !!फल लगने के बाद झुकना सीख ! हमारी माँ बहिनोँ का अपमान करेगा तो हम चुप नहीं बैठेंगे। उत्तराखण्ड में सिर्फ नपुँसक नहीं रहते।
वरिष्ठ पत्रकार हरीश मैखुरी कहते हैं,-” माननीय मुख्यमंत्री जी का जनता दर्शन कार्यक्रम जन समस्याओं का समाधान करने के लिए होता है। समस्या खड़ी करने के लिए नहीं। विद्या ददाति विनयं मूलभूत वाक्य को चरितार्थ करते हुए उत्तरा पंत बहुगुणा को अपने शिक्षिका पद की गरिमा बनाते हुए शालीनता से अपने स्थानान्तरण की बात रखनी चाहिए थी। माना कि उत्तरा पंत को उत्तरकाशी रास नहीं आ रहा है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि राज्य के मुखिया को भरी जन सभा में चोर उच्चक्का कहें। इससे पीठ पीछे का अनुमान लगाना कठिन नहीं है। उत्तरा को बखेड़ा खड़ा करने की बजाय शालीनता से अपनी बात रखनी चाहिए थी क्या पता वहीं पर कोई रास्ता निकलता। वहीं मुख्यमंत्री जी को भी राज्य के मुखिया होने के नाते अपने मृदु स्वभाव के अनुरूप अधिकारियों को समस्या के निराकरण हेतु सम्यक विचार करने को कह कर बड़ा दिल रखना चाहिए। जनता जनार्दन के भाव समझने चाहिए। शब्द परोसने का सलीका उन्हें नहीं भी हो सकता है । उम्मीद है कि दोनों पक्ष उत्तरकाशी के अभावग्रस्त गरीब छात्रों के हित में गहनता से विचार करेंगे।”