वर्ष 2009 बैच की आईएएस अफसर ज्योति नीरज खैरवाल ने बाल विकास विभाग के निदेशक पद पर रहते हुए ‘खिलती कलियांÓ कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेश के बच्चों का स्वास्थ्य सुधारने की अहम शुरुआत की तथा ग्राम्य विकास में नरेगा योजना में धन की गड़बडिय़ां रोकने के लिए कई अहम कदम उठाए।
पहली बार जिलाधिकारी बनी ज्योति नीरज खैरवाल को ईमानदारी से काम करने की सजा यह मिली कि उन्हें तत्काल जिलाधिकारी पद से हटना पड़ा। ज्योति नीरज खैरवाल के खिलाफ भले ही सभी सफेदपोश एक हो गए, लेकिन उनका कार्यकाल कर्मठता से काम करने वाले अधिकारियों के लिए एक मिसाल है।
पर्वतजन ब्यूरो
मात्र 6 महीने पहले ही टिहरी की जिलाधिकारी बनाई गई आईएएस अधिकारी ज्योति नीरज खैरवाल को हटा दिया गया। प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को कम से कम दो साल तक एक पद पर रखने का प्रावधान है, किंतु उत्तराखंड में ऐसा होता नहीं। ज्योति खैरवाल से पहले जितने भी टिहरी में जिलाधिकारी रहे, वे जिले के अधिकारी न होकर टिहरी के कांग्रेस नेताओं के अधिकारी के रूप में काम करते रहे। ज्योति नीरज खैरवाल टिहरी में जिलाधिकारी बनी तो स्थानीय विधायक व काबीना मंत्री दिनेश धनै ने उन्हें स्पष्ट आदेश दिया कि उन्हें वही कार्य करने हैं, जा वह कहे। इससे पहले कि ज्योति काम शुरू करती, पूर्व विधायक किशोर उपाध्याय ने भी उन्हें मार्गदर्शन दिया कि वर्तमान में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार चल रही है और उन्हें वही काम करने हैं, जो कांग्रेस चाहेगी।
ज्योति नीरज खैरवाल ने सबसे पहले जिलाधिकारी कार्यालय में जमे उस कचरे को साफ करने का काम किया, जिसके कारण जिलाधिकारी कार्यालय बदनाम हुआ करता था। वर्षों से जमे ऐसे कार्मिकों का सबसे पहले तबादला किया गया, जो जिलाधिकारी कार्यालय में फाइलें दबाने और गरीब-गुरबों को ठगने के लिए कुख्यात थे। ऐसे कार्मिकों के बारे में टिहरी में यह भी प्रचलित था कि ये लोग जिलाधिकारी को भ्रमित कर गलत काम कराने के लिए कुख्यात हैं। टिहरी बांध पुनर्वास में तमाम भूमि व भवन आवंटनों का एकमुश्त काम ऐसे ही धूर्त कार्मिक करते थे। जिलाधिकारी कार्यालय की सफाई करने के बाद ज्योति नीरज खैरवाल ने जिला स्तरीय कार्यालयों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की और पाया कि जिला स्तर के तमाम अधिकारी जिले से गायब होकर देहरादून से काम चलाते हैं। ऐसे कई अधिकारियों का न सिर्फ वेतन रोका गया, बल्कि कइयों को चेतावनी देकर छोड़ा गया। यह पहला अवसर था कि एक जिलाधिकारी गांवों में जाकर स्वयं न सिर्फ कार्यों का स्थलीय निरीक्षण करने लगी, बल्कि उनके जिलाधिकारी रहते विकास कार्यों में तेजी भी दिखने लगी। ब्लॉक स्तर पर अधिकारियों की जवाबदेही तय कर दी गई। इसके बाद ज्योति नीरज खैरवाल के संज्ञान में टिहरी शहर में व्याप्त अतिक्रमण और सरकारी भवनों पर कब्जे सामने आए। उन्हें मालूम हुआ कि वर्षों पहले जो कार्मिक स्थानांतरण होकर दूसरे जिलों में जा चुके हैं, उन्होंने नई टिहरी में सरकारी आवासों से कब्जे नहीं छोड़े। कुछ ऐसे भी कर्मचारी थे, जो रिटायर होने के बावजूद सरकारी भवनों में कब्जा किए हुए थे। तीसरे ऐसे लोग थे, जिन्होंने जबरदस्ती सरकारी भवनों पर कब्जे किए हुए थे। चौथे वे लोग थे, जिन्होंने पूर्व में स्थानीय प्रशासन व सफेदपोशों की शह पर फर्जी तरीके से सरकारी भवन अपने नाम करवा दिए। ज्योति नीरज खैरवाल ने एक हफ्ते में इस प्रकार के सभी लोगों की सूची मंगवाई और तत्काल सभी को सरकारी भवन खाली करने के आदेश दिए।
यह ज्योति नीरज खैरवाल का साहस ही था कि उन्होंने वर्षों से नई टिहरी में सरकारी भवन पर कब्जा जमाए पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण को सरकारी भवन खाली करने के आदेश के साथ-साथ २५ लाख रुपए सरकारी खाते में जमा करने के भी आदेश दिए। ज्योति नीरज खैरवाल की इस कार्यवाही का सबसे बड़ा असर स्थानीय विधायक और काबीना मंत्री दिनेश धनै पर पड़ा। उनके तकरीबन ५ दर्जन ऐसे समर्थक धनै पर कुपित हो गए, जिन्हें जिलाधिकारी ने तत्काल सरकारी आवास खाली करने के निर्देश दिए थे। इनमें से २० लोग ऐसे भी थे, जिन्हें आवास दिनेश धनै की कृपा से ही प्राप्त हुए थे।
ज्योति नीरज खैरवाल की कार्यवाही से ६० सरकारी भवन तत्काल खाली करा दिए गए। इससे पहले कि मंत्री दिनेश धनै को अतिक्रमण का नोटिस जारी होता, मंत्री दिनेश धनै, टिहरी के प्रभारी मंत्री प्रीतम पंवार, काबीना मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी, संसदीय सचिव विक्रम सिंह नेगी, सात ब्लॉकों के प्रमुख व जिला पंचायत अध्यक्ष टिहरी ने मुख्यमंत्री से एकसूत्रीय मांग रखते हुए तत्काल ज्योति नीरज खैरवाल को टिहरी से हटाने का ज्ञापन सौंपा। दिनेश धनै ने मुख्यमंत्री से २४ घंटे के भीतर जिलाधिकारी को हटाने व अपनी पसंद का जिलाधिकारी देने की मांग की। २४ घंटे के भीतर जब जिलाधिकारी नहीं बदला गया तो बाद में दिनेश धनै ने राज्यसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री को याद दिलाया कि उनकी जिलाधिकारी को बदलने के मामले में तत्काल क्यों नहीं सुनी गई। आखिरकार मास्टर प्लान से तैयार शहर टिहरी में फैले अतिक्रमण और सरकारी मकानों पर कब्जे हटाने की कार्यवाही ज्योति नीरज खैरवाल पर भारी पड़ गई।