सियासी संरक्षण के चलते एक अदने से अधिकारी के सामने पूरा सिस्टम किस तरह से बौना हो जाता है, इसका एक छोटा सा उदाहरण है वन विभाग का अफसर किशन चन्द। किशन चन्द के खिलाफ तमाम जांचों के हश्र और घपले-घोटालों सहित सियासी रसूख पर केंद्रित आवरण कथा
विनोद कोठियाल
उत्तराखंड के ६५ फीसदी भूभाग पर फैले जंगल के महकमे में किस तरह का जंगलराज चल रहा है, यह विभाग के भ्रष्ट अफसरों की कारगुजारी से साफ हो जाता है। आजकल वन विभाग में राज्य वन सेवा का उपनिदेशक स्तर का एक अधिकारी किशन चन्द के घपले-घोटाले पूरे जंगलात महकमे पर भारी हैं और पूरा वन विभाग इस जंगलराज का मौन साक्षी है, क्योंकि वन मंत्रालय से लेकर वन विभाग के सभी छोटे-बड़े कारिंदे किसी न किसी घोटाले में लिप्त हैं और इसलिए हर कोई अपनी फाइल खुलने के डर से मौन साधे बैठा है।
हालात यह है कि उत्तर प्रदेश के समय से ही राजाजी नेशनल पार्क में तैनात किशन चन्द पर तमाम घपले-घोटालों के आरोप लगते रहे। तस्करों से संबंध, जानवरों की खाल और अवैध कटान को लेकर इनके आवास पर छापे भी पड़े, लेकिन किशन चन्द के गिरेहबान तक कोई न पहुंच सका। फाइलें खुलती रहीं और बंद होती रहीं। इस कारण से किशन चन्द के हौसले इतने बुलंद हैं कि वर्तमान में चल रही विभागीय डीपीसी में लगभग सबसे निचले पायदान पर खड़े किशन चन्द पदोन्नति के बाद इसी राजाजी पार्क के निदेशक बनने का ख्वाब पाले बैठे हैं।
किशन चन्द राज्य गठन से पहले से ही वन विभाग का सबसे चर्चित अधिकारी है। इनके तमाम घपले-घोटालों, लापरवाही और मनमानियों की शिकायतों के अलावा आय से अधिक संपत्ति के कई मामलों की जांच समय-समय पर होती रहती है। इनके विरुद्ध विभाग में शिकायत करने वाले विभागीय और आम नागरिकों की संख्या भी दर्जनों में है। इसके बावजूद इस अफसर का बाल भी बांका नहीं हो सका तो इसके दो ही कारण हो सकते हैं। या तो कलियुग के इस किशन के लिए द्वापर युग के कान्हा वाला भजन सही बैठता है कि ‘ग्वाल-बाल सब बैर पड़े हैं, बरबस मुख लपटायोÓ। या फिर इस अफसर के संपर्क इतने बड़े और विभागीय अधिकारियों की इच्छाशक्ति इतनी क्षीण है कि किशन चन्द बार-बार बच निकलता है।
सियासी संरक्षण के चलते पूरे वन महकमे की छवि पर बट्टा लगाने वाला राजाजी पार्क के उपनिदेशक किशन चन्द का इतना खौफ है कि विभाग की निदेशक नीना ग्रेवाल से लेकर वन मंत्री दिनेश अग्रवाल भी इनके घोटालों पर कुछ कहने-करने के नाम पर ओंठ सिल लेते हैं। किशन चन्द की पहुंच और रुतबे का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि प्रमुख सचिव वन रामास्वामी और उनके स्टाफ ने आज तक किशन चन्द की शक्ल तक नहीं देखी और न वन विभाग के अपर सचिव यह पहचान सकते हैं कि उनके विभाग में किशन चन्द कौन है। किशन चन्द घोटालों में इतने निपुण हो गए हैं कि अधिकतर कार्य मौखिक आदेशों पर मातहत रेंज अधिकारियों से करवाते हैं, ताकि किसी भी प्रकार की कार्यवाही होने पर अपना दामन बचाते हुए ठीकरा अधीनस्थ अधिकारियों के सिर आराम से फोड़ा जा सके। इसी का परिणाम है कि राजाजी नेशनल पार्क में विभिन्न घपले-घोटालों को लेकर एक रेंज अधिकारी सस्पेंड हो चुका है तो सात रेंज अधिकारियों के खिलाफ राजाजी पार्क कीडायरेक्टर नीना ग्रेवाल ने चार्जशीट जारी कर दी है।
सैकड़ों बीघा जमीन के मालिक किशन चन्द के नाम कई स्थानों पर चल-अचल संपत्ति तो है ही, साथ ही महंगी गाडिय़ों के शौकीन किशन चन्द के पास कई नामी-बेनामी स्टोन क्रेशर आदि भी हैं, लेकिन आय से अधिक संपत्ति के मामले में कई शिकायतें होने के बावजूद किशन चन्द का बाल तक बांका नहीं हो सका।
डीएम पर भारी डीएफओ
राज्य गठन से पूर्व से तमाम घोटालों के लिए चर्चित किशन चन्द तब व्यापक सुर्खियों का विषय बना, जब अप्रैल २०१५ में रुद्रप्रयाग में डीएफओ के पद पर तैनाती के दौरान इनकी कारगुजारियां जिलाधिकारी राघव लंगर को खटक गई। राघव लंगर ने शासन को रिपोर्ट भेजी कि किशन चन्द जिले से अधिकांश समय गायब रहते हैं और तमाम नोटिसों के बावजूद उनकी कार्यशैली में कोई सुधार नहीं आया है। लगातार नोटिसों की अवहेलना से खफा होकर राघव लंगर ने किशन चन्द के वेतन आहरण पर रोक लगा दी थी।
जिलाधिकारी ने किशन चन्द के विरुद्ध दर्जनों तथ्य शासन को गिना डाले। वन भूमि हस्तांतरण, वनाग्नि सुरक्षा संबंधी कार्यवाही से लेकर तमाम जिला स्तरीय विकास योजनाओं के समीक्षा बैठकों में किशन चन्द नदारद रहते हैं। जिलाधिकारी डा. राघव लंगर ने शासन को बताया कि उनके दो वर्ष के कार्यकाल में किशन चन्द ने मात्र एक बैठक में भाग लिया। उनके कार्यकाल में मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठकों, वीडियो कांफ्रेंसिंग से वह हमेशा नदारद रहते थे। उनके कार्यकाल में जंगली जानवरों द्वारा नुकसान के मुआवजे के प्रकरणों का निस्तारण न हो पाने और कभी भी तहसील दिवस, बीडीसी बैठक, बहुद्देशीय शिविरों में डीएफओ के न रहने से जिले की जनता में भी डीएफओ से काफी नाराजगी रही। यहां तक कि वन मंत्री दिनेश अग्रवाल ने भी किशन चन्द के आचरण से खफा होकर उनकी स्टेटस रिपोर्ट मांग ली थी।
जिलाधिकारी ने किशन चन्द के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही करने की संस्तुति की थी, किंतु उसका नतीजा भी सिफर रहा। किशन चन्द का घर हरिद्वार जिले में पड़ता है। इनके सियासी संपर्कों का रुतबा देखिए कि रुद्रप्रयाग तैनाती के दौरान भी वह हरिद्वार जिले में राजाजी राष्ट्रीय पार्क के उप वन संरक्षक व हरिद्वार के प्रभागीय वनाधिकारी के पदों पर भी विराजमान थे। एक ही अधिकारी के पास २०० किमी. की दूरी पर दो जनपदों में स्थित मुख्य पदों पर तैनाती का मामला १७ मार्च २०१५ को विधायक तीरथ सिंह रावत ने विधानसभा में उठाया था। विधानसभा की कार्यवाही में यह बात दर्ज है कि उनसे हरिद्वार का कार्यभार वापस लेते हुए उनके आचरण के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही किए जाने की संस्तुति की गई थी।
सतर्कता जांच भी ठंडे बस्ते में
हरिद्वार के कनखल क्षेत्र के अजय कुमार ने प्रधानमंत्री को १ अप्रैल २०१५ को पत्र लिखकर किशन चन्द पर पद का दुरुपयोग करने के आरोप लगाते हुए अवैध और चल-अचल संपत्ति की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी। यह पत्र राज्य के मुख्यमंत्री व वन मंत्री को भी भेजा गया था। अजय कुमार ने प्रधानमंत्री को संबोधित अपने पत्र में यह भी आरोप लगाया था कि किशन चन्द के पास से उनके आवास पर छापे के दौरान जांच अधिकारियों को शेर की खाल प्राप्त हुई थी तथा कुछ ऐसे साक्ष्य भी मिले, जिससे प्रथम दृष्टया यह सिद्ध हुआ कि इनकी शेर की खालों की दलाली में कुछ विदेशी लोगों से सांठ-गांठ एवं भागीदारी है। इसकी जांच उत्तराखंड राज्य सरकार द्वारा कराई जा रही है, जो वर्षों से लंबित है।
इसके अलावा किशन चन्द के विरुद्ध अजय कुमार ने आय से अधिक संपत्ति होने के कई आरोप लगाए थे, जिसकी जांच वन एवं पर्यावरण विभाग के अपर सचिव तथा प्रमुख सचिव वन ने ३० जून २०१५ को सतर्कता विभाग से कराने की संस्तुति की थी। अजय कुमार ने तो किशन चन्द के तार मुख्यमंत्री कार्यालय से गहरे जुड़े होने का भी आरोप लगाया था।
अहम तैनाती की तिकड़म
घपले-घोटालों के आरोपों की जांच तो दूर, उल्टे किशन चन्द की मर्जी से उनकी तैनाती कराना शासन और वन विभाग के लिए भी हमेशा चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। किशन चन्द को राजाजी राष्ट्रीय पार्क का उप निदेशक बनाने के लिए उस पद पर पहले से ही तैनात उप निदेशक एचके सिंह का स्थानांतरण हल्द्वानी कर दिया गया, किंतु एचके सिंह कोर्ट चले गए। कोर्ट ने यह ट्रांसफर रद्द कर दिया। ऐसे में किशन चन्द की जिद एक बार फिर विभाग के गले पड़ गई।
वर्ष २०१४ में किशन चन्द को राजाजी राष्ट्रीय पार्क से ट्रांसफर करने की कार्यवाही शुरू की गई तो हरिद्वार के सतपाल ब्रह्मचारी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा कि किशन चन्द को राजाजी राष्ट्रीय पार्क में ही बनाए रखा जाए। इस पर मुख्यमंत्री ने राजाजी राष्ट्रीय पार्क में उप वन संरक्षक का पद सृजित करने के आदेश दिए और कहा कि चूंकि उप वन संरक्षक के पद पर राजाजी राष्ट्रीय पार्क में पहले भी नियुक्तियां हुई हैं, इसलिए किशन चन्द को इसी पद पर नियुक्त कर दिया जाए। यह आदेश नियम विरुद्ध है, क्योंकि उप वन संरक्षक का पद भारतीय वन सेवा के अधिकारियों हेतु संवर्गीय पद होता है तथा इसका सृजन राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में न होकर भारत सरकार द्वारा ही किया जाता है। पूरा वन विभाग तथा शासन इस नियम विरुद्ध नियुक्ति के खिलाफ था।
शासन ने किशन चन्द को विशेष कार्याधिकारी गुर्जर पुनर्वास के पद पर तैनात करने के साथ ही यह तरकीब निकाली कि इनका वेतन उपनिदेशक बांस एवं रेशा विकास परिषद देहरादून के पद के सापेक्ष आहरित किया जाएगा। कारण यह था कि राजाजी राष्ट्रीय पार्क में उप वन संरक्षक का एक ही पद है और उस पर न्यायालय के आदेश से एचके सिंह तैनात थे। ऐसे में किशन चन्द के लिए उप वन संरक्षक का कोई पद ही नहीं था।
शासन ने किशन चन्द की तैनाती के लिए देहरादून अथवा आस-पास कैम्पा, बैम्बो बोर्ड, जैव विविधता बोर्ड से लेकर मुख्यालय और भागीरथी वृत्त के कई रिक्त पदों पर तैनाती के लिए प्रस्ताव रखे, किंतु किशन चन्द की जिद के सामने सरकार को भी झुकना पड़ा।
प्रत्यक्षदर्शी सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री निवास पर किशन चन्द अपनी पत्नी के साथ पधारे थे और इस जिद पर अड़े थे कि उन्हें राजाजी पार्क में उप वन संरक्षक के पद पर तैनाती दी जाए। इस दौरान मौके पर मौजूद वन विभाग के अफसरों ने मुख्यमंत्री को राय दी कि ऐसा नहीं हो सकता, लेकिन किशन चन्द ‘मैया मोरी मैं तो चन्द खिलौना लैहोंÓ की तर्ज पर यही पद लेने पर अड़ गए। संभवत: हरिद्वार में सियासी मजबूरियों के चलते मुख्यमंत्री हरीश रावत दबाव में आ गए और किशन चन्द को राजाजी पार्क में उप वन संरक्षक के पद पर तैनाती के आदेश दे दिए।
किशन चन्द १९८६-८८ बैच के राज्य वन सेवा के अधिकारी हैं। अभी तक उनकी उपनिदेशक के पद पर भी प्रोन्नति नहीं हुई थी कि उन्हें सीधे उप वन संरक्षक बना दिया, जबकि यह भारतीय वन सेवा संवर्ग का पद है और भारतीय वन सेवा कैडर के अधिकारी से ही भरा जाता है।
इससे पूर्व किशन चन्द रुद्रप्रयाग में तैनात थे। रुद्रप्रयाग से उनका स्थानांतरण करने के बाद उनके स्थान पर किसी दूसरे अफसर को नहीं लाया गया। इनके पास लंबे समय तक दोनों पदभार रहे। कई जनप्रतिनिधियों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। विधानसभा तक में मामला उठाया। रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी तक ने किशन चन्द की मनमानियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, लेकिन आखिर हुआ वही, जो किशन चन्द चाहते थे।
किशन चन्द के लिए जिन एचके सिंह की छुट्टी की गई, उन्होंने प्रमुख सचिव वन से लेकर तमाम जगह अपनी गुहार लगाई, किंतु उनकी नहीं सुनी गई। इस मनमाने स्थानांतरण से आहत होकर एचके सिंह कोर्ट चले गए और उनका ट्रांसफर रुक गया, किंतु उप वन संरक्षक का पदभार उनसे छीन लिया गया। इससे पूर्व पार्क में उप वन संरक्षक व उप निदेशक के कभी अलग-अलग पद नहीं रहे। इसके बावजूद किशन चन्द को उपकृत करने के लिए उप वन संरक्षक बना दिया गया।
सियासी दबाव के सामने वन विभाग ने अपने अफसर को न्याय दिलाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।
काज सरकार में चुनाव प्रचार
किशन चन्द को हरिद्वार में उप वन संरक्षक के पद पर तैनाती का आदेश लोकसभा चुनाव से ठीक एक दिन पहले दिया गया था। ५ अप्रैल २०१४ को लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हुई थी और ४ अप्रैल २०१४ को किशन चन्द का स्थानांतरण हरिद्वार कर दिया गया। इससे इस बात की संभावना अत्यंत बलवती हो जाती है कि यह स्थानांतरण लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की मदद करने के लिए किया गया था।
किशन चन्द की पत्नी बृजरानी ने कांग्रेस के टिकट पर हरिद्वार से विधायक का चुनाव लड़ा था। उस दौरान भी यह अधिकारी हरिद्वार में अपनी तैनाती न होने के बावजूद पत्नी के चुनाव में खुलेआम सक्रिय रहा। इस कारण इस मामले में जांच भी की गई, किंतु राजनीतिक पहुंच के चलते यह जांच अब तक प्रस्तुत नहीं की गई। हालांकि उपनिदेशक राजाजी पार्क का मुख्यालय देहरादून है, किंतु राजाजी राष्ट्रीय पार्क की कुल १२ में से ६ रेंज चिल्लावाली, धौलखण्ड, हरिद्वार, पथरी, बेरीबाड़ा, गैंडीखत्ता हरिद्वार जनपद के अंतर्गत ही आते हैं। ऐसे में किशन चन्द की तैनाती चुनाव आचार संहिता लगने से ठीक एक दिन पहले होना इस संदेह को और पुख्ता कर देता है।
रक्षक बना भक्षक
किशन चन्द वर्ष १९९५ से १९९७ तक हरिद्वार वन प्रभाग में उप प्रभागीय वनाधिकारी के पद पर तैनात थे तथा १९९० से १९९३ तक राजाजी नेशनल पार्क के उपनिदेशक के पद पर तैनात रहे। इस दौरान इनके राजकीय आवास के ड्राइंग रूम में वन्य जीवों के अंग पाए गए थे और अवैध वृक्षों के कटान में इनकी संलिप्तता मिली थी। इसके उपरांत इन पर कई अनियमितताओं एवं गंभीर मामलों में आरोप तय किए गए। शासन तथा सतर्कता विभाग सहित विभागीय जांच में अब तक लंबित हैं। १४ सितंबर वर्ष २००० को तत्कालीन वन मंत्री व मुख्य सचिव के अनुमोदन से यह निर्णय लिया गया था, ”किशन चन्द की तैनाती किसी संवेदनशील स्थान पर न की जाए। और यदि उनकी तैनाती हरिद्वार अथवा उसके निकट किसी स्थान पर की गई हो तो उन्हें दूरस्थ असंवेदनशील स्थान पर तैनात करने की कार्यवाही वन विभाग द्वारा की जाए।ÓÓ इसके बावजूद भी आचार संहिता लगने के बाद रात २ बजे बैक डेट में उन्हें उप वन संरक्षक राजाजी पार्क के तौर पर बेहद महत्वपूर्ण पोस्टिंग दी गई।
ऐसे बुझी जांच की आंच
किशन चन्द के खिलाफ वर्ष १९९९ में भी अनुशासनिक कार्यवाही की गई थी। इस दौरान किशन चन्द हरिद्वार में उप प्रभागीय वनाधिकारी के पद पर तैनात थे। इस दौरान कुंभ क्षेत्र में चंडी देवी पैदल मार्ग जैसे विभिन्न निर्माण कार्यों में किशन चन्द ने अनियमितता बरती थी।
उन पर शासन को ३ लाख ७६ हजार की क्षति पहुंचाने का आरोप था। इसके अलावा उनके खिलाफ कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन करने का भी आरोप था। उनकी सत्यनिष्ठा पर भी तत्कालीन वन विभाग के संयुक्त सचिव ने भी सवाल खड़े किए थे। इस बीच राज्य बन गया और यह मामला यहीं दब गया। ११.०१.२००१ को उन्हें आरोप पत्र जारी किया गया था, लेकिन सात वर्ष तक शासन ने इस बात की कोई खबर नहीं ली कि उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही आरंभ हुई भी कि नहीं, जबकि आरोप पत्र की पत्रावलियां शासन को तभी प्राप्त हो गई थी। ७ अक्टूबर २००८ को वन विभाग के तत्कालीन अनुसचिव ने इतने लंबे समय तक यह जांच लंबित रखने के लिए उत्तरदायित्व निर्धारित करने के लिए अनुमोदन भी मांगा था, किंतु यह जांच फिर से पांच साल के लिए दोबारा से फाइलों के ढेर में खो गई।
तत्कालीन अनुसचिव अहमद अली की पहल पर किशन चन्द की यह फाइल दोबारा से खुल गई। यह क्षेत्र उस समय वन विभाग के मेरठ वृत्त के अंतर्गत आता था। किशन चन्द के इस घोटाले में मेरठ वृत्त के वन संरक्षक को जांच अधिकारी नामित किया गया था। अत: मेरठ वृत्त से भी जानकारी मांग ली गई, किंतु मई २०१३ में मेरठ वृत्त ने यह कहते हुए अपने हाथ झाड़ लिए कि राज्य बनने पर किशन चन्द के विरुद्ध आरोप पत्र उत्तर प्रदेश शासन को मूल में वापस कर दिए गए थे। इसके बाद जून २०१३ में शिवालिक वृत्त के वन संरक्षक को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया।
शिवालिक वृत्त ने भी ठीक से जांच न करके २०१४ में अपना निष्कर्ष दिया कि किशन चन्द के निर्माण कार्य के दौरान भारी बरसात हुई थी और अत्यधिक भुगतान करने के संबंध में किशन चन्द ने कोई जवाब नहीं दिया। इस तरह से वर्ष २००१ से २०१४ तक किशन चन्द के खिलाफ किसी भी तरह की कोई विभागीय कार्यवाही नहीं हुई और वर्ष १९९८ के इस मामले में १७ वर्ष बाद कोई कार्यवाही करने के साथ ही यह जांच निपटाने वालों पर भी न्याय विभाग ने कार्यवाही करने के लिए अपनी राय जाहिर कर दी। इसके साथ ही न्याय विभाग ने अपनी राय में कहा कि इतने लंबे समय तक जांच लटके रहना अनुशासनिक कार्यवाही को बलहीन कर देता है। आखिरकार शासन के अधिकारियों की लापरवाही के कारण किशन चन्द के खिलाफ कार्यवाही बिना दंड के सितंबर २०१५ में समाप्त कर दी गई।
फाइल में दबी एक और जांच
अपने खिलाफ कुंभ की गड़बडिय़ों की जांच के बाद भी किशन चन्द की कार्यशैली में कोई सुधार नहीं आया। इसके तुरंत बाद राजाजी पार्क में तैनाती के दौरान वह पेड़ों के अवैध कटान में लीपापोती करने के आरोपों में घिर गए। प्रमुख वन संरक्षक उत्तर प्रदेश ने अक्टूबर १९९३ में उन्हें अभिलेखों में हेरा-फेरी करने के लिए दोषी ठहराया। एक बार फिर उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही शुरू हो गई।
उन्हें कानपुर स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन उन्होंने लंबे समय तक हरिद्वार स्थित आवास खाली नहीं किया। पांच वर्षों तक राजकीय आवास खाली कराने को लेकर विभाग प्रयास करता रहा और असफल रहने पर उनके खिलाफ कार्यवाही और १ लाख ६४ हजार का किराया वसूलने की कार्यवाही शुरू हो गई। बात इतनी बढ़ी कि दोबारा से शासन स्तर पर किशन चन्द के खिलाफ निलंबन की कार्यवाही शुरू हो गई, किंतु यह कार्यवाही भी अन्य कार्यवाहियों की तरह ठंडे बस्ते में चली गई। २३ अक्टूबर २००८ में वन विभाग के अनुसचिव अहमद अली ने फिर से इसका संज्ञान लिया, किंतु तब से ८ साल होने को हैं, इस मामले में फिर किसी प्रकार की कार्यवाही का कुछ पता नहीं है।
दबाव से बिदका था वन दारोगा
उत्तर प्रदेश के दौरान भी इनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा। उन पर अवैध रूप से धन बटोरने और अधीनस्थ अधिकारियों को अवैध कार्यों में संलिप्तता के लिए दबाव डाले जाने के आरोप लगते रहे। मई १९९७ को इनके एक कर्मचारी ने इसी आधार पर अपना त्याग पत्र सीधे वन सचिव लखनऊ को मार्च १९९७ में भेजने के लिए बाध्य होना पड़ा था। वन दारोगा प्रेम प्रकाश ने किशन चन्द पर कई संगीन आरोप लगाए थे। अधीनस्थ कर्मचारियों पर दबाव डालकर उल्टे सीधे काम कराने की यह शैली किशन चन्द की अभी भी जारी है। इसी के चलते जब आला अफसर किशन चन्द का कुछ नहीं बिगाड़ सके तो उन्होंने खानापूरी के लिए सात रेंजरों के खिलाफ चार्जशीट जारी कर दी।
खाल ने निकाली ‘खाल’
बिहारीगढ़ निवासी नरेश कुमार ने ३०-११-१९९७ को मुख्य वन संरक्षक से लेकर मुख्य सचिव को भी गोपनीय पत्र में सूचना दी थी कि खानपुर रेंज में मरे गुलदार की खाल निकालकर किशन चन्द ने ट्रॉफियां बनवा कर आवास में लगाई थी। इस गोपनीय पत्र में नरेश कुमार ने खुलासा किया था कि ये समस्त ट्राफियां हरिद्वार निवासी राजेंद्र नाम टैक्सी डरमिस्ट द्वारा बनाई गई हैं। इसके अलावा उन्होंने किशन चन्द के घर गुलदार की अन्य खाल होने की संभावना भी जताई थी।
विजिलेंस ने किशन चन्द के घर छापा मार कर ये ट्रॉफियां दीवार पर लगी पाई थी। नरेश कुमार के आरोपों को इसलिए भी बल मिला कि तमाम अभिलेखों की जांच में सतर्कता विभाग को ऐसे कोई साक्ष्य या रिपोर्ट नहीं मिली, जिससे यह लगे कि खाल नष्ट कर दी गई थी। इसके अलावा किशन चन्द को पार्क की ओर से कभी किसी प्राणी की ट्रॉफी उपलब्ध भी नहीं कराई गई थी। इसकी विभागीय जांच राजाजी पार्क के तत्कालीन उपनिदेशक जोगा सिंह कर रहे थे, जो अभी भी लंबित हैं।
राजाजी पार्क के वाहन चालक सियाराम ने भी अपने बयान में पुष्टि की थी कि गुलदार के मरने पर टैक्सी डरमिस्ट को भी बुलाया गया था। सतर्कता विभाग ने दो दर्जन से अधिक कर्मचारी-अधिकारियों के बयान लिए थे, किंतु किसी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की कि गुलदार को खाल सहित नष्ट कर मिट्टी में दबाया गया।
तत्कालीन प्रभागीय निदेशक एसके दत्ता ने भी इन ट्रफियों की पुष्ट की है। उन्होंने सतर्कता को दिए अपने बयान में कहा भी कि इन ट्राफियों के विषय में पूछने पर किशन चन्द ने उन्हें भी गुमराह किया था कि उन्हें ये ट्राफी राजाजी पार्क देहरादून ने दी है, जबकि २०-०२-९९ को पार्क के अधिकारियों ने साफ कर दिया था कि किशन चन्द को कभी ट्राफी निर्गत नहीं की गई।
विजिलेंस ने अपनी रिपोर्ट में किशन चन्द के खिलाफ गुलदार की खाल से ट्राफी बनाने के पुख्ता सबूत न होने की बात कहते हुए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को आधार पर सतर्कता विभाग ने किशन चन्द की भूमिका को भी संदिग्ध माना था और पद की गरिमा के अनुरूप कार्य न करने का दोषी ठहराया था।
विजिलेंस ने अपने निष्कर्ष में यह भी अंकित किया कि मृत गुलदार को नष्ट करते वक्त किशन चन्द ने एच-2 केस जारी नहीं किया तथा न ही देहरादून अंचल के वन्य जीव प्रतिपालक को मौके पर बुलाया, जिनका वन्य प्राणियों के अपराध से संबंधित घटनाओं का कार्य क्षेत्र था।
फिर कटघरे में किशन चन्द
राज्य गठन के १५ सालों में किशन चन्द रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी राघव लंगर से दो साल पहले की तनातनी के बाद एक बार फिर आरोपों के घेरे में हैं। उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व संगठन सचिव धर्मवीर सैनी ने आरोप लगाया है कि राजाजी राष्ट्रीय पार्क में जमकर गड़बड़ घोटाला हो रहा है। राजाजी टाइगर रिजर्व के वन्य जीवों को रिहाइशी इलाकों में घुसने से रोकने के लिए शासन से ३५ करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे।
सैनी ने पार्क के अधिकारियों पर आरोप लगाया है कि इन कार्यों में अधिकारियों द्वारा ठेकेदारों से ६० प्रतिशत कमीशन लिया जा रहा है। इसके अलावा कार्य की गुणवत्ता भी अत्यंत घटिया दर्जे की है। इसमें राजस्व की चोरी करते हुए पत्थर, बजरी भी आसपास से ही लगाए जा रहे हैं। धर्मवीर सैनी ने बाकायदा शासन को शपथ पत्र देकर आरोप लगाया है कि राजाजी राष्ट्रीय पार्क के अंतर्गत मोहंड से मोतीचूर में बनाई जा रही सुरक्षा दीवार में मानक के विपरीत निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं। इसके अलावा डोईवाला निवासी नितिन गोला ने भी राज्यपाल को पत्र लिखकर राजाजी पार्क में दीवार के निर्माण कार्य को लेकर हो रहे भ्रष्टाचार की जांच कराने का अनुरोध किया है। नितिन गोला ने आरोप लगाया है कि इस निर्माण कार्य में टेंडर प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।
सूत्रों के अनुसार यह दीवार कमीशनखोरी के कारण बेहद कमजोर है। इसे कई स्थानों पर हाथियों ने पहले ही तोड़ दिया है तो कई जगह यह बारिश और आंधी से टूट गई।
पूरे वन विभाग में नीचे से लेकर ऊपर तक कोई भी कर्मचारी अधिकारी किशन चन्द से खुश नहीं है। फिर भी कोई इनकी मनमानियों के खिलाफ जुबान खोलने को तैयार नहीं।
देखना यह है कि घोटालों के ढेर पर बैठे किशन चन्द कब तक संरक्षण प्राप्त कर पाते हैं।
अजय कुमार ने प्रधानमंत्री को संबोधित अपने पत्र में यह भी आरोप लगाया था कि किशन चन्द के पास से उनके आवास पर शेर की खाल छापे के दौरान जांच अधिकारियों को प्राप्त हुई थी तथा कुछ ऐसे साक्ष्य भी मिले, जिससे प्रथम दृष्टया यह सिद्ध हुआ कि इनकी शेर की खालों की दलाली में कुछ विदेशी लोगों से सांठ-गांठ एवं भागीदारी है। वर्तमान में किशन चन्द से संबंधित कई शिकायतें सचिवालय के एक अधिकारी ने जान बूझकर दबा रखी हैं। इन शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं हो पाई। सूत्रों के अनुसार इस अधिकारी ने किशन चन्द से संबंधित सतर्कता की फाइलें भी गायब कर दी हैं।
सियासी संरक्षण के चलते पूरे वन महकमे की छवि पर बट्टा लगाने वाला राजाजी पार्क के उपनिदेशक किशन चन्द का इतना खौफ है कि विभाग की निदेशक नीना ग्रेवाल से लेकर वन मंत्री दिनेश अग्रवाल भी इनके घोटालों पर कुछ कहने-करने के नाम पर ओंठ सिल लेते हैं।
राघव लंगर ने शासन को रिपोर्ट भेजी कि किशन चन्द जिले से अधिकांश समय गायब रहते हैं और तमाम नोटिसों के बावजूद उनकी कार्यशैली में कोई सुधार नहीं आया है। लगातार नोटिसों की अवहेलना से खफा होकर राघव लंगर ने किशन चन्द के वेतन आहरण पर रोक लगा दी थी।
किशन चन्द अपने नाम पर पंजीकृत एक स्कार्पियो में बाकायदा उत्तराखंड सरकार का बोर्ड और गाड़ी के ऊपर लालबत्ती लगाकर घूमते हैं। जिसका नंबर यूके०८ एई-०९०९ है। इसके अलावा इनकी सरकारी गाड़ी पर कांग्रेस पार्टी का झंडा भी शान से फहराता रहता है।
प्रत्यक्षदर्शी सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री निवास पर किशन चन्द अपनी पत्नी के साथ पधारे थे और इस जिद पर अड़े थे कि उन्हें राजाजी पार्क में उप वन संरक्षक के पद पर तैनाती दी जाए। इस दौरान मौके पर मौजूद वन विभाग के अफसरों ने मुख्यमंत्री को राय दी कि ऐसा नहीं हो सकता, लेकिन किशन चन्द ‘मैया मोरी मैं तो चन्द खिलौना लैहोंÓ की तर्ज पर यही पद लेने पर अड़ गए।
अपने खिलाफ कुंभ की गड़बडिय़ों की जांच के बाद भी किशन चन्द की कार्यशैली में कोई सुधार नहीं आया। इसके तुरंत बाद राजाजी पार्क में तैनाती के दौरान वह पेड़ों के अवैध कटान में लीपापोती करने के आरोपों में घिर गए।
राजाजी राष्ट्रीय पार्क के उपनिदेशक किशन चन्द की पहुंच इतनी ऊंची है कि वन मंत्री दिनेश अग्रवाल भी किशन चन्द के कारनामों पर कुछ भी टिप्पणी करने से मना कर देते हैं। काफी कुरेदने और हौसला दिलाने पर सिर्फ यह बयान देने को राजी होते हैं कि यदि कुछ तथ्य मिले तो जांच कराई जाएगी। इस तरह तथ्य मिलने पर कार्यवाही करने की बात कहने की बजाय वन मंत्री भी जांच का बयान देकर पिण्ड छुड़ा लेते हैं।
अकूत संपत्ति का मालिक किशन चन्द
अकूत संपत्ति के मालिक किशन चन्द के पास वर्तमान में बसंत विहार देहरादून और हरिद्वार में आलीशान घर, स्कूल आदि हैं। इसके अलावा वह हरिद्वार और अन्य स्थानों पर सैकड़ों बीघा नामी-बेनामी संपत्ति के मालिक हैं। हरिद्वार में किशन चन्द की पत्नी के नाम से ब्रज इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल भी संचालित किया जाता है।
किशन चन्द के पास हरिद्वार में बेटे अभिषेक कुमार सिंह के नाम से पिछले साल जुलाई में खरीदी गई ४५ बीघा भूमि है। इस पर बेटे के ही नाम पर एक स्टोन के्रशर व उपखनिजों का भण्डारण लाइसेंस भी है। साथ ही हरिद्वार के ही बंदरजोट और हजाराग्रांट, खेड़ी शिकोहपुर व तेलीवाला में किशन चन्द ने सौ बीघा से अधिक भूमि खरीदी है।
किशन चन्द के बेड़े में कई नामी-बेनामी ऑडी और बीएमडब्ल्यू जैसी लक्जरी गाडिय़ां शामिल हैं। अक्सर इनके घर की पोर्च में थार, ऑडी जैसी गाडिय़ां खड़ी दिख सकती हैं। सभी इनके करीबियों के नाम पर भी हैं। शौक इतना है कि किशन चन्द अपने नाम पर पंजीकृत एक स्कार्पियो में बाकायदा उत्तराखंड सरकार का बोर्ड और गाड़ी के ऊपर लालबत्ती लगाकर घूमते हैं। जिसका नंबर यूके०८एई-०९०९ है। इसके अलावा इनकी सरकारी गाड़ी पर कांग्रेस पार्टी का झंडा भी शान से फहराता रहता है। राजपत्रित अधिकारियों को हर साल अपनी संपत्ति का ब्यौरा विभाग में देना पड़ता है। यदि इनके द्वारा घोषित संपत्ति की जांच की जाए तो पता चल जाएगा कि जितनी संपत्ति वर्तमान में किशन चन्द के पास है, उतनी उनके वेतन से सात पुश्तों में भी नहीं खरीदी जा सकती, किंतु इनकी पहुंच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शासन में आय से अधिक संपत्ति की जितनी भी शिकायतें पहुंची, उन पर कभी कोई कार्यवाही ही नहीं हुई।
बंदर की बला तबेले के सर
बेखौफ किशन चन्द के हौसलों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी क्षेत्र के चुनाव क्षेत्र रानीपुर विधानसभा के अंतर्गत पडऩे वाला बेरीवाला के ऐतिहासिक बंगले को तोड़कर इसके पीछे के किस्से को पंचायत के लिए जगह बनाई। इस बात का पता जब विभाग के आला अधिकारियों को लगा तो रेंजर अनुराग शर्मा का जवाब तलब किया गया, पर ऊंची पहुंच के चलते मामला रफा-दफा कर दिया गया। वन तस्करों से सांठ-गांठ भी इनके लिए कोई नई बात नहीं है। हाल ही में मोहंड से ३० किमी. की दूरी पर हरिद्वार की ओर वन तस्करों द्वारा काफी पेड़ काटे गए, जिन्हें रेंज अधिकारी द्वारा पकड़ा गया, परंतु किशन चन्द के फोन आने पर इन्हें छोड़ा गया। पिछले दिनों राजाजी पार्क में चल रहे जंगलराज को रोकने की तमाम कोशिशों के बावजूद जब पार्क के डायरेक्टर नीना ग्रेवाल जब चाह कर भी कुछ न कर सकी तो उन्होंने पार्क के सात रेंजरों को चार्जशीट जारी करके अपने दायित्व की इतिश्री कर दी।
रेंज अधिकारी
१. चीला सुभाष घिल्डियाल
२. रवासन प्रमोद ध्यानी
३. मोतीचूर गिरी
४. हरिद्वार दिनेश उनियाल
५. बेरीवाड़ा अनुराग शर्मा
६. कांसरो अनूप बिडोला
७. धौलखण्ड सूर्य मोहन
किशन चन्द पर सतर्कता अधिष्ठान द्वारा सिद्ध किए गए दोष
उत्तर प्रदेश सरकार के सतर्कता अधिष्ठान देहरादून सेक्टर के अपर पुलिस अधीक्षक माता प्रसाद ने १४ सितंबर २००० को किशन चन्द के अपराधों की जांच करके अंतिम आख्या उत्तर प्रदेश शासन को सौंप दी थी। इसमें किशन चन्द से क्षतिपूर्ति की वसूली करने सहित दंडित किए जाने की भी संस्तुति की गई थी, किंतु इस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। ९ नवंबर २००० को राज्य बनने पर उत्तराखंड के अफसरों ने किशन चन्द से मिलीभगत कर जांच की फाइल दबा दी। प्रस्तुत है विजिलेंस जांच द्वारा किशन चन्द पर सिद्ध किए गए दोषों का संक्षिप्त विवरण:-
१. ११ जनवरी १९९७ को हरिद्वार के हजारा बीट में वनविद् प्रेम प्रकाश ने वन तस्करों के खिलाफ जुर्म काटा और अवैध कटान की सूचना उच्चाधिकारियों को दी। वन तस्कर यह कटान तत्कालीन उपनिदेशक किशन चन्द के संरक्षण में ही कर रहे थे। बौखलाए किशन चन्द ने प्रेम प्रकाश का नाम बाद में राजकीय अभिलेख में कूट रचना कर अपराधियों में अंकित कर दिया। इस अपराध में किशन चन्द को ४२०, ४६७, ४६८, १२०बी के तहत दोषी पाया गया।
२. किशन चन्द की दैनिक डायरी से पता चला कि वह ११ जनवरी से १५ जनवरी १९९७ तक उसी क्षेत्र में थे, जहां कटान हुआ। उन्हें अवैध कटान की जानकारी हुई, किंतु उन्हें शासनादेशों के अनुसार यह कटान दर्ज किया, न इसकी सूचना उच्चाधिकारियों को दी, न ही कोई कार्रवाई की। उन्हें १९ वृक्षों के अवैध कटान से हुई राजकीय संपत्ति की क्षतिपूर्ति के रूप में ४८,९५० रुपए की क्षतिपूर्ति देने के आदेश दिए गए।
३. २४ जनवरी १९९२ को खानपुर रेंज में गुलदार मृत पाया गया। इस दौरान छापे में उनके राजकीय घर से हिरन व सांभर की ट्राफी लगी पाई गई।
४. २४ जनवरी १९९२ को उन्होंने मृत गुलदार की सूचना न तो उच्चाधिकारियों को भेजी, न वन्य जीव प्रतिपालक को बुलाया, न ही दैनिक डायरी में इसका उल्लेख किया, बल्कि पशु चिकित्सक को मौखिक अनुरोध से बुलाकर गुलदार को दफना दिया। इसके लिए उपरोक्त सभी कार्यवाही जरूरी थी। साथ ही अनिवार्य रूप से जारी किए जाने वाला एच-२ केस भी जारी नहीं किया।
इसके लिए उनके खिलाफ भा.दं.वि. की धारा १९३/१९६/२११/२१८/४६६/४६७/४६८/४७१/१०९/ तथा १२० बी में अभियोग पंजीकृत कराने की संस्तुति की गई।
5. विजिलेंस ने पाया कि किशन चन्द १९८८ में सीधी भर्ती से सेवा में आए और उन्होंने मात्र ७-८ वर्ष की अवधि में ही लाखों रुपए की संपत्ति अर्पित कर ली।
किशन चन्द द्वारा रुड़की में २४-२५ बीघा भूमि, ३००० वर्ग फीट में त्रिपाठी नर्सिंग होम, जूते चप्पल की एजेंसी, मारुति कार यूपी१०सी-४७७०, फिएट कार यूआरएम २३८८, रायफल, बंदूक, रिवाल्वर के साथ ही बहुमूल्य घरेलू शानो-शौकत के सामान होने की जांच की गई थी। इनके पिता विजय पाल सिंह, पत्नी बृजरानी, पुत्र अभिषेक के नाम पंजाब नेशनल बैंक के विभिन्न खातों में अकूत धन जमा होने की पुष्टि हुई थी।
इसके मद्देनजर वन मंत्री के अनुमोदन पर सतर्कता विभाग ने संस्तुति की थी कि इनकी तैनाती हरिद्वार में न की जाए और अगर करनी पड़े तो दूरस्थ असंवेदनशील स्थान पर ही की जाए। सतर्कता ने अपने निष्कर्ष में यह भी लिखा कि किशन चन्द भ्रष्ट आचरण की प्रवृत्ति वाले अधिकारी हैं।
६. किशन चन्द को वन्य प्राणी की ट्राफी अपने पास रखने के अपराध में वन्य जंतु संरक्षण अधिनियम की धारा ५१ के अंतर्गत दंडनीय अपराध का दोषी पाया गया।
७. अवैध कटान और वन्य जंतुओं की मृत्यु की सूचनाएं सक्षम अधिकारियों को न देकर अपने स्तर से ही रफा-दफा करने पर उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली के नियम ३ के उल्लंघन और पद की गरिमा के विपरीत कार्य करने का दोषी पाया गया।
विजिलेंस ने किशन चन्द के घर छापा मार कर ये ट्रॉफियां दीवार पर लगी पाई थी। नरेश कुमार के आरोपों को इसलिए भी बल मिला कि तमाम अभिलेखों की जांच में सतर्कता विभाग को ऐसे कोई साक्ष्य या रिपोर्ट नहीं मिली, जिससे यह लगे कि खाल नष्ट कर दी गई थी। इसके अलावा किशन चन्द को पार्क की ओर से कभी किसी प्राणी की ट्रॉफी उपलब्ध भी नहीं कराई गई थी। इसकी विभागीय जांच राजाजी पार्क के तत्कालीन उपनिदेशक जोगा सिंह कर रहे थे, जो अभी भी लंबित हैं।
११ जनवरी १९९७ को हरिद्वार के हजारा बीट में वनविद् प्रेम प्रकाश ने वन तस्करों के खिलाफ जुर्म काटा और अवैध कटान की सूचना उच्चाधिकारियों को दी। वन तस्कर यह कटान तत्कालीन उपनिदेशक किशन चन्द के संरक्षण में ही कर रहे थे। बौखलाए किशन चन्द ने प्रेम प्रकाश का नाम बाद में राजकीय अभिलेख में कूट रचना कर अपराधियों में अंकित कर दिया।
किशन चन्द का रुतबा
किशन चन्द के सियासी रसूख का समीकरण यह है कि इनकी पत्नी बृजरानी उत्तर प्रदेश के समय वर्ष १९९६ में हरिद्वार की जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। इस दौरान किशन चन्द के घर छापा पडऩे पर पंचायत सदस्यों ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया। इस कारण बृजरानी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी।
बृजरानी वर्ष २०१२ में हरिद्वार के रानीपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थी, किंतु भाजपा विधायक आदेश चौहान से वह हार गई। हरिद्वार के लोकसभा उपचुनाव में सर्वाधिक वोट कांग्रेस को बृजरानी के क्षेत्र से ही मिले थे। बृजरानी के सियासी रसूख और मुख्यमंत्री कार्यालय के कुछ बड़े नेताओं के संरक्षण के चलते किशन चन्द का जंगलराज बदस्तूर जारी है। सूत्र बताते हैं कि किशन चन्द को राजाजी नेशनल पार्क का जिम्मा इसीलिए सौंपा गया है, ताकि इस क्षेत्र में इन नेताओं के एक दर्जन से अधिक स्टोन क्रेशर धड़ल्ले से अवैध खनन का कारोबार कर सकें।
किशन चन्द महंगी पार्टियों के भी शौकीन हैं। ऊंचे रसूख के लोगों को महंगे होटलों में दी जाने वाली इनकी पार्टियों का बिल लाखों रुपए प्रतिमाह आता है।